हर गाँव को मोटर सड़क से जोडें वर्ना उत्तराखंड की गद्दी छोडें

 

डाॅ हरीश मैखुरी

उत्तराखण्ड की ये दो घटनायें 17 सालों में उत्तराखंड के नक्कारे नेताओं और निठल्ले नौकरशाहों की कार्यप्रणाली की पोल खोलने के लिए हर दिन घटने वाली प्रतिनिधि घटनायें हैं।

पहली घटना – 8 मार्च की सुबह 5 बजे अचानक प्रेम सिंह धोनी पुत्र श्री दीवान सिंह धोनी ग्राम कुकना, पो जोस्यूड़ा (नैनीताल ) के पेट में तेज दर्द उठता है। आनन फानन में ग्रामवासी डोली में उसे सात किलोमीटर दूर कचलाकोट की ओर लेकर चलते हैं । उबड़ खाबड़ रास्ते पर आधा सफर भी तय नहीं हो पाता कि दर्द से तड़पते प्रेम सिंह दम तोड़ देता है । हताश निराश गाँव वालों को सड़क न होने और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी का दर्द बहुत सालता है कि काश सड़क और स्वास्थ्य सुविधाएं होती तो जान बच पाती, लेकिन इलाज के अभाव में सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। उनकी दो अबोध बेटिया हैं जिनके लालन पालन की जिम्मेदारी दुख से टूट चुकी माँ पर आ गयी। शायद इस घटना की जिम्मेदारी कभी तय नहीं हो सकेगी, इन बेटियों से उनके पिता को छीनने का दोष सरकारी तंत्र को नहीं तो किसे दिया जाय।

दूसरी घटना–जिला पौड़ी रिखणीखाल पट्टी पैनों के अंतर्गत देवी डबराड गाँव के 43 वर्षीय प्रेम सिंह रावत पुत्र स्व श्री भगवान सिंह रावत को 12 मार्च की शाम 4:46 को घबराहट हुई इस से पहले वो खुद कुछ समझ सकते या किसी को सही से बताते मूर्छित हो कर घर की चौक पर गिर पड़े। घर वालों ने व ग्रामीण लोगों की मदद से उन को घर के अंदर लेजा कर लिटाया। अस्पताल 13 किलोमीटर दूर पैदल है और करीब 55 परिवारों के इस गाँव में सुविधा के नाम पर  कुछ नहीं है।

ग्रामीणों ने 4km दूर आकर फोन के सिग्नल खोज कर फोन लगाने की कोशिश करते रहे 1 घण्टे की जद्दोजहद के बाद श्री देवेश से दिल्ली संपर्क हुआ तुरंत हरकत में आते हुए उन्हों ने 108 मेडिकल सेवा को फोन किया कॉलसेंटर ने रिखणीखाल हॉस्पिटल में उन के फोन को ट्रांसफर किया, मगर हॉस्पिटल का जवाब था कि आप मरीज को कोटड़ी सैण लेकर आओ डिंड की सड़क अभी सरकारी मानकों में पास नहीं है और हमें परमिशन नहीं है, डबराड गाँव के लिए सड़क की स्वीकृति को 12 साल हो चुके है मगर सड़क निर्माण अभी तक शुरू नहीं हुआ। देवेश द्वारा cmo पौड़ी DM पौड़ी से संपर्क किया गया वहां से कहा गया कि रिखणीखाल के हॉस्पिटल से ब्यवस्था हो रही है। जो नहीं हो सकी करीब 4 घण्टे चले इस जीवन मौत की लुका छिपी में आखिर रात के 9:12 बजे सन्नाटा फैला गया। शाम 4:46 से सुरु हुई विपत्ति आखिर प्रेम सिंह की मौत की पुष्टि के साथ रात्रि 9:12 शांत हो गई। प्रेम सिंह अपने पीछे 2 बेटी 2 बेटा छोड़ के मात्र 43 साल की उम्र में चला गया है।

ये घटनाएं दिखाती हैं कि पलायन हमारा जन्मसिद्ध विडम्बना बन गया ये पहली घटनाएं नहीं है मगर आखरी कब बन सकेंगी? पता नहीं नहीं। इन दोनों घटनाओं के मूल में कारण है मोटर सड़क और अस्पताल का अभाव। ये दो घटनायें उत्तराखंड के दूरस्थ बसे गांवों की हर दिन घटने वाली वारदातों की प्रतिनिधि घटनायें हैं। चमोली में भी नमक तेल के लिए रोज 27 किलोमीटर पैदल चलने वाले डुमक गांव के पूर्व प्रधान प्रेमसिंह सनवाल का कहना है कि हम राज्य बनने से पहले जैसे थे वैसे ही आज हैं हमारे गाँव को मोटर सड़क से जोडें वर्ना उत्तराखंड की गद्दी छोडें।