आदि शंकराचार्य ही हैं भारतवर्ष को विश्व गुरू एवंसमृद्धिशाली बनाने वाले शिल्पी

 

*आदि शंकराचार्य के  507 ईसवी पूर्व व 2508 वीं जयंती, प्राकट्य (वैशाख शुक्ल पंचमी ईसवी)। दिवस है। आधुनिक भारत के महानतम आध्यात्मिक महर्षि जिन्होंने शैव वैष्णव,शाक्त, गणपति, सौर आदि अनेक मत मतान्तरों में बिखरे सनातन धर्म को एकजुट कर पँचपूजा के स्मार्त परम्परा में प्रवृत्त किया।  हिन्दुधर्म के शिल्पी और संस्थापक, भारतीय राष्ट्रीयता के वाहक ईसा से 507 ईसवी पूर्व जन्में रुद्रावतार भगवान नारायण के अनन्य भक्त आदि गुरुशंकराचार्य  आदि शंकर भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। उन्होंने अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार प्रदान किया। उन्होने सनातन धर्म की विविध विचारधाराओं का एकीकरण किया। उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। इन्होंने भारतवर्ष में चार मठों की स्थापना की थी जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी*’शंकराचार्य’*कहे जाते हैं। ये चारों स्थान ये हैं-*ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम*,*श्रृंगेरी पीठ,**द्वारिका शारदा पीठ* और*पुरी गोवर्धन पीठ।* भगवान शंकर के अवतारमाने जाते हैं। उन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही विशद और रोचक व्याख्या की है। 

*नीतिदर्शन……………………*✍*ईर्ष्यी घृणी त्वसंतुष्ट: क्रोधनो नित्यशंकितः।**परभाग्योपजीवी च षडेते दुःखभागिनः।।*📝 *भावार्थ* *ईर्ष्या* करनेवाला, *घृणा* करनेवाला, सदैव *क्रोध* करनेवाला, सदा *असन्तुष्ट* रहनेवाला, सदा *शंका* करनेवाला तथा *दूसरेके भरोसे* जीनेवाला ये छः सदा दुःख भोगते हैं।

शंकरं शंकराचार्यं केशवं बादरायणम् ।
सूत्रभाष्यकृतौ वन्दे भगवन्तौ पुनः पुनः ।।

आप सभी सनातन धर्म प्रेमियों को शिवावतार आद्य जगतगुरु शंकराचार्य भगवान के
प्राकट्य दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ