अफसरों की ‘सह’ पर शराब का ‘घोटाला’

दीपक फर्स्वाण

अफसरों की ‘सह’ पर शराब का ‘घोटाला’…

लॉकडाउन घोषित होने से ठेकों में डम्प हुई शराब आबकारी विभाग के अधिकारियों और शराब व्यवसायियों के लिये ‘पैसों का पेड़’ साबित हुई। रात के अंधेरे में प्रदेशभर के शील्ड ठेकों में से ज्यादातर खाली कर दिये गये। चोरी-छिपे ठेकों से निकाली गई लाखों की शराब करोड़ों में बेची गई। तस्करी की तर्ज पर हुए इस खेल में सरकार को न तो नफा हुआ और न ही नुकसान लेकिन अफसरों और ठेकेदारों का गठजोड़ ‘चांदी का काट’ गया। कानून के रखवालों ने ही कानून ताक पर रख दिया और सरकार हाथ मलती रह गई।
बीते 22 मार्च को देशव्यापी बंदी की वजह से शराब के ठेकों (अंग्रेजी और देशी) में बड़ी मात्रा में माल डम्प हो गया। चूंकि लॉकडाउन लम्बा खिंचता चला गया तो शराब व्यवसायियों को चिंता सताने लगी कि 31 मार्च को वित्तीय वर्ष समाप्त होने पर कहीं उनकी ओर से एडवांस में जमा अधिभार (निर्धारित कोटे की कीमत) लैप्स न हो जाये और लॉकडाउन खुलने पर उन्हें डम्प शराब औने-पौने दाम पर न बेचनी पड़े। नुकसान की आशंका से डरे ठेकेदारों ने आबकारी विभाग से मिलीभगत कर ठेको में डम्प शराब बाहर निकालने की योजना बनाई। जब बात बन गई तो रात के अंधेरे में शील्ड ठेकों से अधिकांश माल बाहर निकाल लिया गया। उसके बाद से शराब नशे के लिये छटपटा रहे शैकीनों को ढाई से तीन गुना अधिक दाम पर बेची गई। बेची ही नहीं बल्कि घरों में तक सप्लाई की गई। ये खेल सिर्फ उन ठेकों में नहीं हो पाया जो शहरों में लगे कैमरों की जद में हैं।

निष्पक्ष जांच हुई तो आसानी से पकड में आ जाएगा खेल

देहरादून। शराब के सरकारी ठेकों में संचालक को दो रजिस्टर मेंनटेन करने पड़ते हैं। सेल और स्टॉक रजिस्टर। सेल रजिस्टर जिसे के फोल्डर भी कहा जाता है में रोजाना की सेल (पव्वे से लेकर बोतल तक) की डिटेल भरी होती है जबकि स्टॉक रजिस्टर में सेल के बाद ठेके में मौजूद शराब के स्टॉक का ब्रांड सहित ब्यौरा दर्ज होता है। रोजाना यह जानकारी आबाकरी इंस्पेक्टर को भी दी जाती है। यदि सरकार इन दस्तावेजों को खंगाले तो पूरा खेल सामने आ जायेगा। बशर्ते जांच आबकारी विभाग को न सौंपी जाए।
‘मुझे नहीं लगता कि शील्ड ठेकों से शराब बाहर निकाली जा सकती है, यदि ऐसी कोई शिकायत मिलती है तो कार्रवाई होगी’।_ सुशील कुमार, आबकारी आयुक्त।