दिल्ली चुनाव पर एक तात्कालिक सटीक विश्लेषण

 अनुपम कुमार सिंह
आइए, वोट शेयर की बात करें। जनता को गाली दिए बिना जनादेश की बात करें। उन सभी सवालों के जवाब जानिए, जो आज उठाए जा रहे हैं। काफ़ी लोगों को काफ़ी कुछ लग रहा है, जो उनके अवलोकन और बौद्धिक क्षमता के स्तर पर निर्भर करता है। राजनीति है, सटीक आकलन हर बार कोई नहीं कर सकता। लेकिन, मैं आपको सभी सवालों के जवाब देने का प्रयास करता हूँ क्योंकि मैंने यहाँ की ज़मीनी राजनीति पर नज़र रखी थी और मैं पूरी तरह ग़लत भी नहीं हुआ हूँ। फेसबुक से लेकर बड़े मीडिया पोर्टलों तक, अलग-अलग आकलन पढ़ने मिलेंगे। पहले मैं सवालों के जवाब देने का प्रयास करता हूँ, फिर बाकी चीजों पर चर्चा होगी।
*भाजपा राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ती है। स्थानीय मुद्दों को पार्टी नज़रअंदाज़ कर देती है।
जवाब: भारतीय जनता पार्टी एक राष्ट्रवादी दल है, जिसके कार्यक्रमों की अवधारणा हिंदुत्व की भावना पर टिकी हुई है। जब देश का प्रधानमंत्री रैली करने आएगा तो वो सीएए, एनआरसी,राम मंदिर और तीन तलाक की बात करेगा ही। जहाँ पार्टी 22 सालों से सत्ता में नहीं है, जहाँ उसके मात्र 3 विधायक हैं- वहाँ वो काम के नाम पर कुछ ख़ास नहीं गिना सकती, ये तय है। हाँ, दिल्ली की कॉलनियों को पक्का कर के 40 लाख लोगों को उनके घर की रजिस्ट्री पक्की की गई, जिसकी चर्चा पीएम मोदी ने हर रैली में की। इसका फ़ायदा नहीं मिल पाया। शाहीन बाग़ मुद्दा बना, केजरीवाल भाजपा की पिच पर खेले भी, लेकिन इससे भी भाजपा को कोई बड़ा लाभ नहीं हुआ। (शाहीन बाग के प्रायोजकों का खुलासा राष्ट्रीय हित में जरूरी है और यह भी पता लगाया जाना चाहिए कि कंही यह पीएफआई जैसे चरमपंथियों की शाजिस तो नहीं) 
मीडिया में प्रधानमंत्री ये पार्टी अध्यक्ष के बड़े बयान ही चलाए, जाते हैं- इसका मतलब ये नहीं कि वो स्थानीय मुद्दों की बात नहीं कर रहे। पीएम ने आयुष्मान भारत, शौचालय निर्माण, आवास योजना और उज्ज्वला की बातें की। उनकी किसी भी रैली को पूरा सुनिए। कॉलनियों के लिए डेवलपमेंट बोर्ड बनाने की बात पीएम ने हर रैली में दोहराई। ईस्टर्न और वेस्टर्न एक्सप्रेसवे के निर्माण का मुद्दा पीएम की सभाओं में छाया रहा। रैपिड रेल सिस्टम और 16 लें सड़कों का निर्माण कार्य लोगों को याद दिलाया गया। ‘दीनदयाल उपाध्याय पार्क’ और ‘भारत वंदना पार्क’ का निर्माण चल रहा है, इस बारे में पीएम ने कइयों बार कहा।
द्वारका में वर्ल्ड क्लास कन्वेंशन सेंटर का निर्माण हो रहा है। छोड़िए, आप बोर हो जाएँगे और ये पोस्ट ही नहीं पढ़ेंगे। सार ये कि मोदी और शाह ने हर रैलियों में दिल्ली में किए गए या हो रहे काम को गिनाया। लेकिन, दिक्कत कहाँ हुई? दिक्कत ये हुई कि ये चुनाव काम को लेकर था। जो भी समझता है कि भाजपा काम न गिनाने के कारण हारी है और AAP काम करने के कारण जीती है, वो मूर्ख है। मुख्यधारा की मीडिया सिर्फ़ राष्ट्रीय बयानों को फ़िल्टर कर के हेडलाइंस बनाती है और लोग उनके झाँसे में आकर समझ लेते हैं कि भाजपा ने स्थानीय मुद्दा उठाया ही नहीं।
*क्यों फ़र्ज़ी मुद्दा न उठाने वाला आरोप?
जवाब: दरअसल, अरविन्द केजरीवाल के पास प्रोजेक्ट्स और काम के नाम पर गिनाने को काफ़ी कुछ था क्योंकि सरकार उनकी ही थी पिछले 5 सालों से, लेकिन उनके पास उपलब्धि के नाम पर कुछ नहीं था। उनका भी अधिकतर समय भाजपा को गरियाने में ही गया। क्या यही है स्थानीय मुद्दा? हिन्दू-मुस्लिम की बातें करना स्थानीय मुद्दा है? AAP नेताओं का अधिकतर समय भाजपा पर आरोप लगाने में गया और दोनों तरफ के आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में काम कहीं था ही नहीं। ये विकास पर हो रहा चुनाव नहीं था, ये Freebies और राष्ट्रवाद की लड़ाई थी, जिसमें पहले वाले की जीत हुई।
*तो क्या दिल्ली की जनता मुफ्तखोर है? क्या लालच में आकर दिल्ली ने केजरीवाल को वोट दिया?
जवाब: नहीं। दिल्ली ने लगातार दो बार सातों सीटें भाजपा की झोली में डाल दी है एमसीडी भी दिया है। पूरे देश की तरह, यहाँ भी सांसदों ने कुछ ख़ास काम नहीं किए। प्रवेश वर्मा ने 2019 में भी ‘भारत माता की जय’ बोल कर वोट माँगे थे। मनोज तिवारी 3 साल बैठे रहे और चौथे साल में अचानक से ज्यादा एक्टिव हो गए, जब शाह ने मोर्चा सम्भाला। दिल्ली का एक गरीब रिक्शा वाला, जो 200 यूनिट से कम बिजली खपत करता है, उसे रुपए नहीं लगते। वो क्यों किसी और की फ़िक्र करेगा? उनके रुपए बच रहे हैं, तो वो बच्चों को पढ़ाएगा, परिवार की बेहतर देखभाल करेगा। हर ग़रीब यही करेगा। मुफ़्त में चीज हर कोई को मिलना चाहिए लेकिन भाजपा ऐसा वादा नहीं कर सकती। ऐसा इसीलिए, क्योंकि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी उसे ऐसा करना पड़ेगा, जो संभव नहीं है। इसीलिए, जनता को मुफ़्तखोर नहीं कहिए। कोई अन्य ऊपर निकालना होगा जनता को ख़ुश करने के लिए।
 *राम मंदिर से ग़रीबों को खाना नहीं मिलता। सीएए से क्या हो जाता है?
जवाब: ये सवाल वही लोग पूछ रहे हैं, जो पहले पूछते थे कि तारीख कब बताएँगे? ‘राम मंदिर पर भाजपा धोखा कर रही है’- ऐसा कहने वाले अब कह रहे हैं कि राम मंदिर मुद्दा है ही नहीं। बनवा ही दिया तो क्या उखाड़ लिया? ऐसा ही होता है। मजबूत इच्छाशक्ति के साथ जब कोई आकर 500 सालों का अटका कार्य यूँ करा देता है तो एक छोटी सी हार से उसे उसका श्रेय लेने से वंचित कर दिया जाता है। 2019 में जनता ने इसीलिए वोट दिया है मोदी को, भले दिल्ली में ये नहीं चल पाया। इसीलिए, भाजपा को अपने कोर मुद्दों से कभी नहीं भटकना चाहिए। ऐसे सवाल वही कर रहे हैं, जो परिस्थिति देख कर बदल जाते हैं।
*मनोज तिवारी ने भाजपा को डुबो दिया। ‘रिंकिया के पापा’ ने मेहनत नहीं की।
जवाब: ये सवाल उतना ज्यादा फ़र्ज़ी नहीं है क्योंकि मनोज तिवारी अभी भी सेलेब्रिटी वाले आवरण से बाहर नहीं निकले हैं, मैं पहले भी कह चुका हूँ। कौन है उनके टक्कर का? प्रवेश वर्मा भी उसी किस्म का आदमी है। विजय गोयल ने तो ख़ुद का ही नाम आगे कर दिया था पिछली बार, वो भी सही चॉइस नहीं हो पाता डॉक्टर हर्षवर्धन सही उम्मीदवार होते लेकिन केंद्रीय कैबिनेट में उनके जैसे चेहरों की ज़रूरत है। लेकिन, उन्हें जिम्मेदारी दी जा सकती थी। बाकी दिल्ली भाजपा में गुटबंदी चरम पर थी और मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने से आपसी लड़ाई कम हुई थी। 
ये ट्रेंड रहा है। भाजपा के हर राज्य में जो भी चेहरा हो उसे बदनाम किया जाता है। शिवराज सिंह चौहान सामान्य वर्ग का विरोधी है, रमन सिंह से कार्यकर्ता ख़ुश नहीं है, रघुबर दास बाहरी है, वसुंधरा राजे अहंकारी हैं, मनोज तिवारी नचनिया है, सुशील मोदी आलाकमान के कारण टिका हुआ है, फडणवीस को मिला कर चलना नहीं आता और येदियुरप्पा भ्रष्टाचारी है। इनमें से कुछ बातें सत्य हैं, कुछ झूठ। लेकिन मोदी-शाह को निशाना न बना के स्थानीय चेहरे को टारगेट करना विपक्ष की नई रणनीति है।
*******
फिर कारण क्या है? भाजपा हारी क्यों? दिल्ली में 8 मुस्लिम-बहुत सीटें हैं, जिनमें से आठों पर AAP जीत रही है। इनमें से 4 पर मुस्लिम उम्मीदवार जीत रहे हैं। जनता को चीजें मुफ़्त में चाहिए क्योंकि उसके पास रुपए नहीं हैं। कोई भी ऐसा ही करेगा। शिक्षा को लेकर AAP ने सच में कुछ किया होता, तो सिसोदिया और आतिशी अंत तक हारते-हारते नहीं जीतते। भाजपा को एक ऐसा बड़ा चेहरा चाहिए, जो गुटबंदी को ख़त्म करे और जनता के बीच जाए लगातार। दूसरे दलों के नेता भी ऐसा ही करते हैं लेकिन दिल्ली में ‘’Party With Difference’ ऐसा करे तो ये समझ नहीं आता।
और हाँ, ये जान लीजिए कि भाजपा ने उतनी गंभीरता से भी नहीं लड़ा है दिल्ली विधानसभा चुनाव। HR के नाम पर सांसदों-विधायकों को लगाया तो गया लेकिन सभी खानापूर्ति कर रहे थे। 2015 में भी इन्हें लगाया गया था, कुछ नया नहीं है। चुनाव दिल्ली में था, मोदी असम में रैली कर रहे थे। अमित शाह काफ़ी देर से उतरे। भाजपा का पूरा जोर पश्चिम बंगाल में Ground Work पर है। बंगाल, बिहार और असम में जीत के साथ ही ये चर्चाएँ ख़त्म 8हो जाएँगी। भाजपा जीतेगी, इसी रणनीति के साथ। भाजपा अब भी  40% के क़रीब वोट के साथ जनता की बड़ी पसंद बनी हुई है, 10-15% वोटों का अंतर है। भाजपा का वोट शेयर बढ़ा भी है।  इसीलिए,पार्टी मजबूत है। कभी भी वापसी कर लेगी
२- एक अन्य विश्लेषक धर्मेन्द्र सिंह के अनुसार
बीजेपी के वोटों में 6-7 फ़ीसदी का उछाल आया बावजूद इसके पार्टी को कुछ ही सीटों का फ़ायदा हुआ।ये बीजेपी की करारी हार है।केंद्र सरकार के नाक के ठीक नीचे एक मक्कार नेता और उसका गिरोह लोगों को मुफ़्तख़ोरी का अफ़ीम खिलाकर, मीडिया को मैनेज करके और सोशल मीडिया में झूठ का रायता फैलाकर आपको हरा देता है तो कमियां आपमें है। आप राज्यों को नाकाबिल नेतृत्व देकर कब तक मोदी के नाम पर वोट माँगेंगे? एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड में हुई ग़लतियों से कुछ नहीं सीखा बल्कि बार बार उसे दोहरा ही रहे हैं। अब अगला नंबर उत्तराखंड का है। इसलिए नहीं कि वहां काम नहीं हो रहा है बल्कि आपके सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का दिमाग़ आसमान पर है और उनका अगर इलाज नहीं किया तो झारखंड की कहानी उत्तराखंड में दोहराई जाएगी। टुकड़े टुकड़े गैंग का हौसला बुलंद है। ग़द्दारों की फ़ौज खुलकर हमले कर रही है। राष्ट्रीवादी पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है।मोदी को गाली देने वाले पत्रकारों की चाँदी कट रही है।मज़बूत सरकार पर एक ऐसा इकोसिस्टम हावी है जो देश को बर्बाद करके खुद आबाद रहना जानता है। ऐसा भी नहीं कि इस चुनावी नतीजे का असर दूर तलक जाएगा। 2015 में तो जीत इससे भी बड़ी थी जो दिल्ली में ही सिमट कर रह गई। अब देश की दशा और दिशा पर नए सिरे से सोचने की ज़रूरत है। टुकड़े गैंग पर ज़ोरदार प्रहार करने का वक्त आ गया है।