अर्नब की बेल और उच्चतम न्यायालय का शख्त संदेश

उच्चतम न्यायालय ने अर्नब को छोड़ने का आदेश दिया साथ ही कहा जिसे चैनल पसंद नहीं वो न देखे, लेकिन प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा हम नहीं तो और कौन करेगा? उसकी विचारधारा जो भी हो, मैं तो उसका चैनल भी नहीं देखता। लेकिन ‘इस’ मुद्दे पर अगर संवैधानिक न्यायालयों ने आज हस्तक्षेप नहीं किया, हम बिलकुल ही बर्बादी की राह पर चल पड़ेंगे। आज हम सभी हाई कोर्ट को भी एक संदेश देना चाहते हैं: अपने न्यायाधिकार का प्रयोग वैयक्तिक स्वतंत्रता के बचाव में कीजिए। एक के बाद एक केस में हाई कोर्टों ने निजी स्वतंत्रता को नकारा है। क्या कोई आर्थिक चिंता से घिरा हुआ है और आत्महत्या कर लेता है तो हम उसे आत्महत्या के लिए उकसाना मान लें? आत्महत्या के लिए उकसाने और सीधे प्रेरित करने के साक्ष्य होने चाहिए।
 “अगर अदालत आज हस्तक्षेप नहीं करती है, तो हम विनाश के रास्ते पर यात्रा कर रहे हैं” : जस्टिस चंद्रचूड़ .
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और इंदिरा बनर्जी की एक अवकाश पीठ वर्तमान में रिपब्लिक टीवी एंकर अर्नब गोस्वामी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट के 9 नवंबर के आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें उन्हें अन्वय नाइक की आत्महत्या मामले में अंतरिम जमानत से इनकार कर दिया था। सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने आश्चर्य व्यक्त किया कि क्या आत्महत्या के उकसाने के लिए अपराध को पैसे का भुगतान न करने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है, गोस्वामी की हिरासत और उच्च न्यायालय द्वारा अंतरिम राहत से इनकार करने के खिलाफ कड़ी मौखिक टिप्पणियां भी कीं।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा,- “आत्महत्या के एक मामले के लिए सक्रिय रूप से उकसाना और प्रोत्साहन देना पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति पर पैसा बकाया है, तो क्या यह आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला है? ए का ही पर बकाया है। वित्तीय तनाव के कारण बी ने आत्महत्या कर ली, क्या ये आत्महत्या के लिए उकसाना है ? यह धारा 306 आईपीसी के तहत अपराध को आकर्षित करता है? हम यहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ काम कर रहे हैं और क्योंकि उन पर पैसा बकाया था, नाइक ने वित्तीय तनाव के कारण आत्महत्या कर ली। क्या यह हिरासत में पूछताछ के लिए मामला है?”
वो इतने पर भी नहीं रुके, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने भी टिप्पणी की: “यदि एफआईआर लंबित है, जमानत नहीं दी जाती है तो यह न्याय का मखौल होगा।” उन्होंने पूछा, “अगर हम एक संवैधानिक अदालत के रूप में कानून नहीं बनाते हैं और स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करते हैं तो कौन करेगा?” उच्च न्यायालय ने अधिकार क्षेत्र का त्याग किया न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने निराशा भी व्यक्त की कि उच्च न्यायालय एक नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने में विफल रहा।

यदि भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध का गठन किया जाता है, तो उच्च न्यायालय ने उस पहलू से निबटा नहीं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, “हाईकोर्ट ने हैबियस के सुनवाई योग्य ना होने पर टनों पन्नों लिख दिए जबकि ये प्रार्थना वापस ले ली गई थी।

उन्होंने कहा, “अगर यह अदालत आज हस्तक्षेप नहीं करती है, तो हम विनाश के रास्ते पर यात्रा कर रहे हैं। इस आदमी (गोस्वामी) को भूल जाओ। आप उनकी विचारधारा को पसंद नहीं करते तो अपने आप को अलग रखें। अगर मुझ पर छोड़े तो मैं उनका चैनल नहीं देखूंगा। सब कुछ अलग रखें। अगर हमारी राज्य सरकारें ऐसे लोगों के लिए यही करने जा रही हैं, जिन्हें जेल भेजना है, तो सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना होगा।”
जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, “हाईकोर्ट को एक संदेश देना होगा- कृपया व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करें। हम मामले के बाद मामलों को देख रहे हैं। न्यायालय अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में विफल हो रहे हैं। लोग ट्वीट के लिए जेल में हैं! ” न्यायाधीश ने एक हालिया मामले का भी उल्लेख किया जहां राज्य सरकार के खिलाफ ट्वीट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में एक महिला को कोलकाता में पेश होने के लिए जारी किए गए पुलिस समन को रोक दिया था।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, “हमारा लोकतंत्र असाधारण रूप से मजबूत और लचीला है। सरकारों को ट्वीट्स को अनदेखा करना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए। यह वह आधार नहीं है जिस पर चुनाव लड़ा जाता है।” उन्होंने टिप्पणी की, “अगर आपको कोई चैनल पसंद नहीं है तो उसे न देखें।” जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी टिप्पणी की, “किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अस्वीकार करने के लिए तकनीकी आधार नहीं हो सकता। यह आतंकवाद का मामला नहीं है।”
“किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अस्वीकार करने के लिए तकनीकी आधार नहीं हो सकता। यह आतंकवाद का मामला नहीं है।” वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे गोस्वामी के लिए उपस्थित हो रहे हैं। महाराष्ट्र राज्य का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अमित देसाई कर रहे हैं। वरिष्ठ वकील चंदर उदय सिंह अन्वय नाइक नाइक की पत्नी और FIR में शिकायतकर्ता अक्षता नाइक का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
अर्नब की जमानत से कथित कॉमेडियन कुणाल कामरा, लिबरल्स के ‘दुग्गल साहब’ ध्रुव राठी हों या फिर JNU की फ्रीलांस प्रोटेस्टर शेहला रशीद, जैसे लिबरल्स इस जमानत पर व्यथित नजर आ रहा है। लेकिन 
अर्नब की बेल के माध्यम से उच्चतम न्यायालय का शख्त संदेश यही है कि राज्य सरकारें अपनी शक्तियों का दुरूपयोग बदले की भावना या दुर्भाग्यपूर्ण उद्देश्य से न करें। विशेष रूप से मीडिया की स्वतंत्रता को राज्य अंकुशित नहीं कर सकते हैं। राज्य को यदि दिक्कत है तो उनके लिए भी न्यायालय के द्वार खुले हैं 
यही नहीं करीब 15 दिन पहले घटी एक ऐतिहासिक घटना सुप्रीम कोर्ट का एक ऐतिहासिक निर्णय पता नहीं क्यों किसी टीवी चैनल पर नहीं आया 
 
इसी तरह दिल्ली की रहने वाली एक 22 साल की लड़की ने एक वीडियो ट्वीट किया और  वीडियो अपने फेसबुक वॉल पर डाला और लिखा कि” लॉकडाउन के समय में भी देखिए कोलकाता के बाजार में कैसी अव्यवस्था है” 
 
दरअसल वीडियो में सब बांग्ला में बोर्ड लगे थे वह वीडियो ढाका का था लेकिन वह लड़की समझ नहीं पाई और उसने उसे कोलकाता का बताकर पोस्ट कर दिया
 
 इतनी सी बात पर बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने उसे 22 साल की बच्ची के विरुद्ध 3 क्रिमिनल धाराओं में केस दर्ज कर लिया जिसमें से दो धाराएं गैर जमानती थी और उसे गिरफ्तार करने के लिए 15 पुलिस की एक टुकड़ी दिल्ली आ गई 
 
दिल्ली में जब लोगों से उसके मोहल्ले के लोगों से एड्रेस का पूछताछ कर रही थी तभी किसी मोहल्ले वाले ने उस लड़की के घर पर खबर कर दिया और वह लड़की घर छोड़कर अपने एक रिश्तेदार के यहां छुप गई
 
 दिल्ली के कुछ स्थानीय अखबारों में यह बात  छपी की एक 22 साल की लड़की को कोलकाता पुलिस 3 दिन से दिल्ली में डेरा डालकर खोज रही है जिसने सिर्फ ढाका के वीडियो को कोलकाता का बताकर पोस्ट किया और सिर्फ इतना लिखा लॉकडाउन में क्या हो रहा है
 
 इस खबर को देश के जाने-माने वकील राम जेठमलानी के बेटे महेश जेठमलानी ने पढ़ा 
 
वह तुरंत सुप्रीम कोर्ट गए और सीधे चीफ जस्टिस की बेंच में याचिका दायर की बंगाल सरकार हिल गई बंगाल सरकार ने देश के जाने-माने वकील कपिल सिब्बल को अपना वकील बना कर पेश किया महेश जेठमलानी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि महोदय क्या यह क्रिमिनल केस बन गया और उस बच्ची ने ढाका का वीडियो डाला जो की गलतफहमी थी क्योंकि बोर्ड में ढाका में भी बंगला चलती है कोलकाता में भी बंगला चलती है तो क्या उसके लिए आप बच्ची को दिल्ली से उठाकर कोलकाता ले जाकर पूछताछ करेंगे  ?  और उसने कोई इतनी बड़ी गंभीर बात नहीं लिखी जिससे यह गैर जमानती जुर्म हो जाए 
 
दोनों पक्षों की चली लंबी बहस के बाद चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा बंगाल सरकार और बंगाल पुलिस का इरादा बेहद दुर्भावनापूर्ण है कोलकाता पुलिस एक तानाशाह की तरह व्यवहार कर रही है अगर ऐसे ही हो जाए देश की सभी राज्य सरकार दूसरे प्रदेशों से लोगों को उठाकर अपने यहां लाकर पूछताछ करें अपने हाथ जेलों में बंद करें इसका सीधा मतलब है कि भारत में अब न्याय का राज खत्म हो चुका है भारत में अराजकता फैल गई है और यह अराजकता राज्य सरकार फैला रही है 
 
कल को मणिपुर सरकार झारखंड से किसी को मणिपुर लाएगी झारखंड सरकार बंगाल से किसी को लाएगी बंगाल सरकार दिल्ली से किसी को लाएगी मतलब कि आप लोग देश में अराजकता का माहौल बनाना चाहते हैं 
 
चीफ जस्टिस ने अपने आदेश में कहा ऐसी कौन सी पूछताछ है जो आप उसे यही नहीं कर सकते क्या यह जरूरी है कि आप उसे कोलकाता ले जाकर ही पूछताछ करें कपिल सिब्बल ने अदालत में बंगाल पुलिस कोलकाता पुलिस की तरफ से माफी मांगी बल्कि अपनी गलती स्वीकार की
✍🏻जितेंद्र प्रताप सिंह
 
एक और रुचिपूर्ण केस मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का भी था देखिये  – 
 
चुनाव प्रचार ख़तम हो गया – कमलनाथ के खिलाफ जो सुप्रीम कोर्ट देखेगा, वो पहले हाई कोर्ट को देखने दीजिये –
 
इसे मैं अदालत के समय की बर्बादी ना कहूं तो क्या कहूं —
 
–चुनाव आयोग ने 30 अक्टूबर को कमलनाथ को कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की लिस्ट से हटा दिया क्यूंकि उसके इमरती देवी को “आइटम” कहने को आचार संहिता का उल्लंघन माना था;
 
–31 अक्टूबर को कमलनाथ ने चुनाव आयोग के आदेश को सीधे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी बिना हाई कोर्ट जाये जबकि 1 नवम्बर यानि, रविवार को चुनाव प्रचार बंद हो जाना था;
 
— 2 नवम्बर को प्रधान न्यायाधीश
 एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन पीठ से निर्वाचन आयोग के वकील ने कहा कि कमलनाथ की याचिका अब निरर्थक हो गयी है क्योंकि इन सीटों के लिये चुनाव प्रचार बंद हो गया है और वहां कल मतदान है –
 
लेकिन पीठ ने कहा  ‘‘हम इस पर रोक लगा रहे हैं –
 
मतलब चुनाव आयोग के जिस आदेश के खिलाफ याचिका निरर्थक हो गई, उस पर अदालत ने रोक लगा दी –
 
इसका मतलब शीर्ष अदालत इस बात की जांच करना चाहती है कि क्या कमलनाथ को इमरती देवी को “आइटम” कहना उचित था या नहीं और क्या ऐसा कहना किसी आचार संहिता का उल्लंघन था या नहीं —
 
इसके अलावा शायद अदालत ये भी देखना चाहती है कि चुनाव आयोग को कमलनाथ को स्टार प्रचारक पद से हटाने के अधिकार
 था या नहीं –
 
लेकिन जब चुनाव प्रचार ही ख़त्म हो चुका है तो सुप्रीम कोर्ट को हर बिंदु पर फैसला करने के लिए पहले मध्यप्रदेश हाई कोर्ट को भेजना चाहिए –
 
अभी हाल ही में अर्नब गोस्वामी को सुप्रीम कोर्ट ने पहले हाई कोर्ट जाने के लिए कहा था ये कह कर कि बिना हाई कोर्ट के फैसला लिए हमारा मसले पर सुनवाई करना उचित नहीं होगा –किसी विषय पर कोई मापदंड और किसी पर कोई मापदंड नहीं होना चाहिए –
 
वैसे कमलनाथ के मसले पर अब माथापच्ची करना अदालत का समय बर्बाद करने के सिवाय और कुछ नहीं है मगर वो सुप्रीम कोर्ट
हैं, उन्हें कोई क्या कह सकता है —
 
इसके पहले चुनाव आयोग ने भी कमलनाथ को नोटिस का जवाब देने के लिए 48 घंटे का टाइम दिया था….. योगीजी को तो हर नोटिस पर 24 घंटे का टाइम देते रहे हैं —
✍🏻सुभाष चन्द्र
“मैं वंशज श्री राम का”