बद्रीकाश्रम शंकराचार्य पद का चयन अवैध

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शंकराचार्य के चयन में आज बड़ा निर्देश दिया है।

शंकराचार्य विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के डबल बैंच में आज आए फैसले का सार –

इलाहाबाद हाईकोर्ट का बडा फैसला

स्वामी वासुदेवानन्द की अपील खारिज

स्वामी वासुदेवानन्द नहीं कर सकेंगे छत्र चंवर दण्ड और सिंहासन तथा शंकराचार्य पदनाम का उपयोग

न्यायालय ने उन्हें सन्यासी भी नहीं माना

64 साल से चल रहे मुकदमें में आया अहम फैसला

5 मई 2015 को इलाहाबाद के सिविल जज ने सुनाया था स्वामी वासुदेवानन्द के विरुद्ध फैसला

खचाखच भरी अदालत में न्याय मूर्ति श्री सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति श्री के एस ठाकर ने सुनाया फैसला

न्यायालय ने कहा कि तीन महीने में तीनों शंकराचार्य मिलकर ज्योतिष्पीठ का नया शंकराचार्य नियुक्त करें। तब तक रहेगी यथास्थिति अर्थात स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज बने रहेंगे ।

जजों ने यह भी कहा है कि कई लोग अपने को शंकराचार्य घोषित कर घूम रहे हैं । अतः सरकार को न्यायालय ने निर्देशित किया कि उन पर अंकुश लगाने के उपाय करे ।और आवश्यक रूप से कानूनी कार्यवाही करे ।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शंकराचार्य पद के लिए स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती व स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के चयन को वैध नहीं माना है। कोर्ट ने इनके चयन को अवैध माना है। अब कोर्ट ने तीन महीने में शंकराचार्य के चयन की प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया है। मामला इलाहाबाद के ज्योतिष पीठ बद्रिकाश्रम का है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति केजे ठाकर की खण्डपीठ ने स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है।

कोर्ट ने कहा है कि अखिल भारत धर्म महामण्डल व काशी विद्वत परिषद को योग्य सन्यासी ब्राह्मण को तीनों पीठों के शंकराचार्यों की मदद से नया शंकराचार्य घोषित करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि इसमें 1941 की प्रक्रिया अपनाई जाय। कोर्ट ने नया शंकराचार्य नियुक्त होने तक यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया है। कोर्ट ने आदि शंकराचार्य द्वारा घोषित चार पीठों को ही वैध पीठ माना है।

कोर्ट ने स्वघोषित शंकराचार्यों पर भी कटाक्ष किया है। कोर्ट ने स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती व स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती दोनों को वैध शंकराचार्य नहीं माना है। कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार से कहा है कि वह भोली भाली जनता को ठगने वाले बनावटी बाबाओं पर अंकुश लगाए। फर्जी शंकराचार्यों व मठाधीशों पर भी अंकुश लगे। मठों की संपत्ति की आडिट करायी जाय। कोर्ट ने स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती को छत्र चंवर सिंहासन धारण करने पर अधीनस्थ कोर्ट की ओर से लगी रोक को जारी रखा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शंकराचार्य पद के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि जब तक तीन माह में चयन प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है, तब तक स्वामी वासुदेवानंद शंकराचार्य के पद पर बने रहेंगे। कोर्ट ने कहा धार्मिक संगठन मिलकर तीन महीन में ज्योतिष पीठ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य के पद पर नए नाम का चयन करें। हाई कोर्ट ने संगमनगरी इलाहाबाद के ज्योतिष पीठ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य पद के मामले में स्वामी वासुदेवानंद को भी शंकराचार्य नहीं माना है। कोर्ट ने नये शंकराचार्य के चयन तक यथा स्थिति कायम रखने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को मठों की आडिट कराने का भी निर्देश दिया है।

कोर्ट ने कहा है कि अखिल भारत धर्म महामण्डल व काशी विद्वत परिषद को योग्य सन्यासी ब्राह्मण को तीनों पीठों के शंकराचार्यों की मदद से नया शंकराचार्य घोषित करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि इसमें 1941 की प्रक्रिया अपनाई जाय। कोर्ट ने नया शंकराचार्य नियुक्त होने तक यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया है। कोर्ट ने आदि शंकराचार्य द्वारा घोषित मात्र चार पीठों को ही वैध पीठ माना है।