गोल्फा गांव के 80 परिवारों को वापस लाना चाहते हैं बाला सिंह

पलायन की समस्या से जूझ रहे उत्तराखंड के बुजुर्ग सबसे अधिक आहत हैं। वे अपनी जन्मभूमि छोड़ना नहीं चाहते और युवा गांव में रहने को तैयार नहीं। इसी कशमकश में गोल्फा गांव के बुजुर्ग बाला सिंह ने एक सकारात्मक प्रयास किया है।
जनपद पिथौरागढ़ में दस किलोमीटर के कठिन पैदल रास्ते पर पड़ने वाले गोल्फा गांव के पूर्व प्रधान बाला सिंह को यकीन है कि गांव छोड़कर जा चुके 80 परिवार एक बार फिर गांव लौटेंगे। उन्होंने गांव की खाली पड़ी जमीन पर जड़ी-बूटी उगाना शुरू कर दिया है। इस बगीचे को मोदी गार्डन नाम दिया गया है। बाला सिंह का कहना है कि गोल्फा गांव की जलवायु में हिमालयी जड़ी-बूटियां आसानी से पैदा की जा सकती हैं। यदि गांव में जड़ी-बूटी का बेहतर ढंग से उत्पादन होने लगेगा तो गांव छोड़कर जा चुके लोग फिर से वापसी करने लगेंगे। गोल्फा गांव में पहले 120 परिवार रहते थे। राज्य गठन के बाद जब हालातों में कोई बदलाव नहीं आया तो भारी असुविधाओं से तंग आकर 80 परिवारों ने गांव छोड़ दिया। किसी समय में चहल-पहल से भरे इस गांव में अब वीरानी सी है। गांव में बचे हैं सिर्फ बुजुर्ग कुछ गरीब परिवार और उनमें ज्यादातर बुजुर्ग ही गांव में रहते हैं।

गांव से सड़क तक पहुंचने के लिए दस किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता है। गांव में आलू, राजमा तो पैदा होता है, लेकिन यातायात की सुविधा न होने से वह गांव में ही खराब हो जाता है। अगर इन्हें बाजार तक पहुंचाया जाये तो इनकी आमदनी में इजाफा हो जायेगा। इलाज के लिए लोगों को 150 किलोमीटर की दूरी तय कर जिला अस्पताल जाना पड़ता है। गांव को जोड़ने वाला एकमात्र पैदल पुल 2013 की आपदा की भेंट चढ़ गया था, लेकिन उसके स्थान पर नया पुल नहीं बना। गांव के पूर्व प्रधान बाला सिंह कहते हैं कि गांव छोड़कर जाना समस्या का समाधान नहीं हो सकता। इसके बदले में गांव की जमीन पर जड़ी-बूटी और अन्य प्रकार के पौधों के रोपण का काम उन्होंने शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि जड़ी-बूटी की फसल छह महीने में तैयार हो जाती है।