ठंडे मौसम में सर्वश्रेष्ठ पहाड़ी डिश कंडाली भुज्जी

सर्दी की सर्वश्रेष्ठ पहाड़ी डिश कंडाली का साग Best hill dish Kandali Bhujji in cold weather

पुराने समय में जब सब कुछ बर्फ के नीचे दबकर नष्ट हो जाता था, तो एक चीज थी जिसपर बर्फ का कोई असर नहीं होता था वह थी कंडाली/ बिच्छू घास(Nettle Leaf) जिसका वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा है।

औषधीय गुणों से भरपूर

कंडाली हमारे उत्तराखण्ड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बहुतायत में पाई जाती है। एक दशक पहले तक जब सर्दियों में सब्जी नहीं होती थी, तो कंडाली का साग इस कमी को दूर करता था। यह कंडाली अभी भी होती है लेकिन इसके गुणों को पहचानने वाले और खाने वाले कम हो गए हैं।
कंडाली एक साधारण तरह की घास नहीं है यह ब्लड क्लॉटिंग और हृदय रोगों के उपचार की रामवाण औषधि है। इसके अलावा एंटीबायोटिक होने के साथ-साथ पेट के अल्सर, बुखार आने, शरीर में कमजोरी होने, पित्त दोष, गठिया, शरीर के किसी हिस्से में मोच, जकड़न और मलेरिया जैसे बीमारी को दूर भागने में उपयोग करते हैं. स्वाद की बात करें, तो यह पालक के साग की तरह ही स्वादिष्ट भी होती है। इसमें विटामिन A,B,D, आइरन (Iron ), कैल्सियम और मैगनीज़ प्रचुर मात्रा में होता है।

कंडाली का साग बनाने की विधि:

पत्थरों के बीच उगी छोटी-छोटी कंडाली को निकालने के लिए अपने साथ एक टोकरी, चिमटा और चाकू रखें। इसके स्पर्श से झनझनाहट होती है, इसलिए चिमटे से इसकी टहनी के कोमल पत्ते वाले सिरे को पकड़कर चाकू से काटें और टोकरी में जमा करते जांय।
उन टहनियों को घर में लाकर अच्छी तरह से साफ करें। उनके साथ नमक, थोड़े से चावल के कनक अथवा झंगोरा डालें और लोहे की कढ़ाई में थोड़ा पानी डालकर ढक्कन रखते हुए खूब पकायें। कुछ देर बाद मोटी लकड़ी के टुकड़े से उसको कढ़ाई में कूटें।
जब यह सब्जी की तरह पक जाय, इसको अलग बर्तन में निकालें। कढ़ाई में छोंकें। इसमें आवश्यकतानुसार पानी व मसाले डालें। लाल मिर्च भूनकर साथ में खाने से और भी मजा आता है। इसको प्रायः भात के साथ खाया जाता है। इसके स्वाद इतना अच्छा होता है कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
कितनी भी ठंड हो इसको खाने से शरीर में गरमी आ जाती है।

कंडाली की चाय भी लाजवाब

नेटल चाय की कीमत 290 रुपये प्रति सौ ग्राम:

कंडाली यदि बदन पर लग जाए तो करंट टाईप झसाक के मारे जान निकल जाती है, लेकिन यह जानकर आश्चर्य होगा  कि यदि करनाली की झसाक – छपाक  5 साल से कम उम्र के बच्चों को जीवन में एक दो बार लग जाए तो यह डायबिटीज का एकमात्र टीका बन जाता है। कंडाली की सटाक लगने से हमारे बदन में उन रोग कारक फैटी सेल्सों के बनने की प्रक्रिया रूक जाती है जोो थायराइड और शुगर कारक केे रूप में पजाने जाते हैं। अब तो कंडाली घास की चाय भी बिकने लगी है। कंडाली की चाय को यूरोप के देशों में विटामिन और खनिजों का पावर हाउस माना जाता है, जो रोग प्रतिरोधक शक्ति को भी बढ़ाता है। इस चाय की कीमत प्रति सौ ग्राम 150 रुपये से लेकर 290 रुपये तक है। कंडाली से बनी चाय को भारत सरकार के एनपीओपी (जैविक उत्पादन का राष्ट्रीय उत्पादन) ने प्रमाणित किया है।

बताता चलूं, छोटे बच्चों को इसकी झपाक लगाकर दण्ड देने का यह कभी सबसे खतरनाक तरीका था। बच्चे इसके नाम से ही डर जाते थे। (सच्चिदानंद सेमवाल की वाल )