रावल के न पंहुचने की स्थिति में वृत्तिधारी अविवाहित डिमरी आचार्य बद्रीनाथ का पुजारी हो सकता है

 डॉ हरीश मैखुरी 

बद्रीनाथ धाम के कपाट ३० अप्रैल को प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में खुलेंगे। कोरोना राष्ट्रीय आपदा के चलते इस बार कपाट खुलने के अवसर पर कम ही लोगों को अखंड जोत देखने का सौभाग्य मिल सकेगा, ऐसा १०० साल बाद हो रहा है बद्रीनाथ के धर्माधिकारी श्री भुवन उनियाल के अनुसार देश में हैजा महामारी के चलते १९२० में भी बहुत कम लोग अखंड ज्योत के दर्शन करने आ पाए थे। इधर मुख्य पुजारी के यथा समय नहीं पहुंचने की अटकलों के बीच बद्रीनाथ के कपाट खोलने का मुहूर्त और वहां पूजा पाठ को लेकर मीडिया ट्रायल भी शुरू हो गया है समाचार माध्यमों में तरह तरह की बातें उठाई जा रही हैं। लेकिन ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी महाराज ने लाॅकडाउन की तारीफ करते हुए कहा कि कहा कि बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि पर निर्बाध पूजा-अर्चना की व्यवस्था सुनिश्चित कराने के लिए सरकार व्यवस्था बनाये। उन्होंने कहा कि उज्जैन महाकाल में तो कर्फ़्यू में भी मंदिर में पूजा चलती है। बद्रीनाथ के पूर्व धर्माधिकारी पंडित जगदम्बा प्रसाद सती का कहना है कि सरकार निश्चित तिथि तक रावल को लाने का प्रयास करे। अथवा कपाट खुलने की तिथियों पर पुनर्विचार की व्यवस्था करे ताकि शंकराचार्य के प्रतिनिधि रावल परम्परा बनी रहे। बद्रीनाथ के पुजारियों में रहे डिमरी परिवार के स्व अंबिका दत डिमरी की पुस्तक “धरोहर श्री बदरीनाथ धाम पुष्प वाटिका” के अनुसार बद्रीनाथ में रावल की अनुपस्थिति में वृत्तिधारी सरोला डिमरी परिवार का अविवाहित आचार्य बद्रीनाथ का पुजारी हो सकता है। यही बात डिमरी पंचायत के पूर्व अध्यक्ष राकेश कुमार डिमरी ने भी कही साथ ही उन्होंने कहा कि संभव है कि रावल बद्रीनाथ पंहुचें। भितला बड़वा (अन्दर के पुजारी) डाॅ सुरेंद्र प्रसाद डिमरी का कहना है कि “परंपराओं के अनुसार सरोला डिमरी समुदाय का कोई भी अविवाहित व्यक्ति भगवान की श्रृंगार और अभिषेक पूजाऐं कर सकता है वैसे रावल के साथ डिमरी ही पुजारी होते हैं।” श्री पंकज डिमरी के अनुसार सरोला डिमरी ब्राह्मण योगध्यान मंदिर पाण्डुकेश्वर, नरसिंह मंदिर जोशीमठ, भविष्य बदरी सुभाई ,वृद्ध बदरी अणिमठ ,ध्यान बदरी उर्गम, वासुदेव मंदिर जोशीमठ, सीता.मंदिर चाई,नर्सिंग मंदिर दाणिमी गांव,नर्सिह मंदिर पाखी,लक्ष्मी नारायण मंदिर डिम्मर, मातामूर्ति मदिर बदरीनाथ, लक्ष्मी मंदिर बदरीनाथ ,लक्ष्मी नारायण मंदिर कुलसारी के भी मुख्य अर्चक होते हैं ।

वहीं राजकीय पोस्ट ग्रेजुएट कालेज गोपेश्वर राजनीतिक विज्ञान के विभागाध्यक्ष और बदरीश क्षेत्र के मर्मज्ञ शोधकर्ता
डाॅ भगवती प्रसाद पुरोहित ने कहा कि “आदि शंकराचार्य द्वारा जोशीमठ पीठ के शंकराचार्य को पूजा हेतु नियुक्त किया गया था जो 2000 साल से पूजा करते चले आ रहे थे। पिछले 250 वर्ष मुगलकाल में किसी कारण शंकराचार्य नहीं आ पाये तो टिहरी नरेश द्वारा योग्य डण्डी सन्यासी के न मिलने पर आदि शंकराचार्य के वंशज नम्बूदरी ब्राह्मण को पूजा के लिए रखा गया। बीच में कुछ षड्यंत्रों के कारण वह नम्बूरी वंशज भी नहीं आ पाये तब भगवान के भोगमंडी के मुखिया डिमरी पूजा में कुछ महीने रहे। लेकिन अनेक कारणों से तत्काल ही गढ़वाल राजा के लोग केरल से नम्बूरी ब्राह्मण को ले आये। तब से परम्परा चली आ रही है। आज जबकि केरल से पुजारी के आने पर संदेह है तो तत्काल शंकराचार्य से बद्रिकाश्रम में पूजा व्यवस्था हेतु सम्पर्क किया जाना चाहिए! इस बात का ज्ञान मन्दिर समिति या वहां से जुड़े लोगों का लुप्त क्यों हो गया है।
आज भी पुजारी के रूप में वहां शंकराचार्य की गद्दी है। तथा जब मजबूरी में दण्डि सन्यासी की जगह पूजा का दायित्व नम्बूरी ब्राह्मण को सौंपा गया तो उसमें भी डण्डी सन्यासी के संस्कारों की प्रतिष्ठा की जाती है तथा पुजारी के लिए दंडी सन्यासी वाला आचरण ही अंगीकृत करना होता है। भगवान नारायण के अर्चक वैष्णव का आचरण क्या होता है इस बात का संज्ञान लुप्त होता जा रहा है। जिसमें नारायण की प्रतिष्ठा होती है वही बदरी नारायण का अर्चक हो सकता है। नारायण की प्रतिष्ठा की पात्रता दण्ड सन्यास है जो बहुत कठिन तप है। इसीलिए इस परीक्षा में पास हुए नैष्ठिक ब्रह्मचारी में ही नारायण की प्रतिष्ठा हो सकती है। इसलिए उन्हीं को दण्ड सन्यास दिया जाता है। पूरे देश में 108 डण्डी सन्यासी नहीं हैं। सनातन धर्म के यह शोक की स्थिति है यहां के पुजारी को धर्माचार्य (शंकराचार्य) कहते थे, प्राचीन सनदों में भी यही नाम है।
इस मामले में बद्रीनाथ के विधायक महेंद्र भट्ट ने कहा है कि “उत्तराखंड के चारों धामों के कपाट हर्षोल्लास के साथ के खुले इसके लिए सरकार व्यापक व्यवस्था बनाएगी। धार्मिक अनुष्ठान का श्रद्धा पूर्वक पालन होगा,तथा रावलों, मुख्यपुजारियों को सादर पूर्वक मंदिरों तक पहुँचाने के लिए  सरकार प्रयासरत है। उन्होंने मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मांग की कि चारधाम यात्रा राज्य की आर्थिकी का श्रोत है, इसको ब्यवस्थित रूप प्रदान करना होगा।कोरोना के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए यात्रा चालू रहे इसके प्रयास करने होंगें, भट्ट ने बताया कि 3 मई से पूर्व चार धाम यात्रा पर जाने वाले यात्रियों की संख्या प्रत्येक धाम के लिए निर्धारित की जा सकती हैं।और उनके जाने, खाने,तथा रात्रि रहने, के लिए गाईड़ लाइन तैयार करनी होगी।
 विधायक महेंद्र भट्ट ने मुख्यमंत्री को एक पत्र भी लिखा
“मैं बद्रीनाथ का विधायक होने के नाते आपका आभारी हूँ, धामों के रावलों को धाम तक लाने के लिए देश के प्रधानमंत्री जी एवम ग्रह मंत्री श्री अमित शाह जी से ब्यक्तिगत वार्ता भी करनी पड़े तो आप अवश्य करेंगे,ऐसा मुझे विश्वास है। कोरोना से चारधाम यात्रा प्रभावित होगी मैं समझता हूँ, लेकिन मेरा सुझाव है कि उत्तराखंड के 9 जिले जो कोरोना से प्रभावित नही है, वहाँ के नागरिकों को हम सामाजिक डिस्टेन्स में रखते हुए यात्रा हेतु आमंत्रित कर सकते हैं, जिससे यात्रा रूट पर निर्भर ब्यापारियों को लाभ पहुचाया जा सके। उत्तराखंड के इन 9 जिलों के यात्रियों को सभी नियमों के तहत सुबिधा देना हमारा नैतिक दायित्व होगा। 3 मई के बाद अन्य राज्यो से आने वाले यात्रियों के आने,रहने,खाने की ब्यवस्थाओ को भी कोरोना के दिशा निर्देशों पर करने की आवस्यकता रहेगी जिससे यात्रा बन्द न हो,आज हम ऑनलाइन यात्रा बुकिंग को प्रमुखता देकर यात्रियों की आवश्यकता अनुसार प्रबंधनधन आवश्यक रूप से कर सकते हैं।
वहीं भगवान केदारनाथ के कपाट भी अपनी निश्चित तिथि २९ अप्रैल २०२० खुलने हैं नांदेड स्थित केदारनाथ के रावल लिंगायत भीमाशंकर जी से दूरभाष पर हुई बातचीत के अनुसार सरकार द्वारा उन्हें यथासंभव उखीमठ पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। बता दें कि इस बार बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति भंग है और उसकी जगह चारधाम देवस्थानम बोर्ड उत्तराखंड के चारों धामों की व्यवस्था देखेगा।