चन्द्र बल्लभ पुरोहित चले परम धाम यात्रा

 

चन्द्र बल्लभ पुरोहित चले परम धाम की यात्रा पर 

 

कृष्ण कुमार सेमवाल लिखते हैं  ” बहुत कम लोग होते है जो अपनी आयु भी पूरी करते है और चिता तक जाने जाने तक युवा भी रहते है ..पत्रकारिता साहित्य और जडी बूटी के जादूगर आज भले की महा प्रयाण कर गये हो पर अपने निजी जीवन के कष्टों के बावजूद किस तरह से जीवन को जिंदादिली से जिया जाता है उसकी एक मिसाल थे आप पर प्रभात की इन चंद लाईनो ने जो वक्त हमने चंद्र बल्लभ जी के साथ गुजारा था उस बीते वक्त को फिर से जीवंत कर दिया यूं तो उनकी कई रचनाये थी पर जब हम लोगो से मिलते थे तो उनकी रचनाये *चलो प्रिये श्री बद्रीधाम* और एक और रचना की फरमाईश तो हमारे युवा साथी जरूर करते थे.*गोरी हो या काली हो एक अदद साली हो*”

 डॉ हरीश मैखुरी लिखते हैं ” हे राम।। चन्द्र बल्लभ पुरोहित जी सदैव परहित थे। वे जितने सुन्दर सहज,  गुणवान और चिर युवा व्यक्ति थे उसका सानी नहीं, बस एक सुन्दर युग था जो गुजर गया, एक चलती फिरती गूढ़ ज्ञान की लाइब्रेरी थी जो सदा के लिए बंद हो गई। ऐसे महामना आध्यात्मिक पुरुष को श्रध्दांजलि”

रमेश पहाड़ी लिखते हैं “संस्कृत और भेषज के अप्रतिम विद्वान चंद्रबल्लभ पुरोहित से मेरी मुलाकात जनवरी 1972 में हुई थी। तब मैं नागपुर-महाराष्ट्र से घर आया था और चमोली जिले में काम की तलाश कर रहा था। चंद्रबल्लभ जी चमोली में बगवाड़ी जी की प्रेस में मैनेजर थे और वहीं उनसे भेंट हुई थी।धीरे धीरे घनिष्टता इतनी अधिक बढ़ गई थी कि हफ्ते में मुलाकात न होती तो बेचैनी जैसी होने लगती और मैं ही उनसे मिलने चमोली चला जाता। 977 में मैंने अनिकेत के प्रकाशन की तैयारी की तो उन्हें अनिकेत का प्रबंध संपादक बनाया गया। साल भर अनिकेत में काम करने के बाद उन्होंने गढ़वाणी पाक्षिक का प्रकाशन शुरू किया उसकी छपाई भी कई वर्षों तक मैं ही करता रहा। चंद्रबल्लभ जी के देहावसान से चमोली जिले ने एक सच्चा-अच्छा इंसान, बहुमुखी प्रतिभा के धनी विद्वान खो दिया, जिसकी पूर्ति निकट भविष्य में तो बिल्कुल संभव नहीं। जीवन में 3 पुत्रों, एक पुत्री तथा पत्नी का शोक सहन करते हुए भी वे जिस जिंदादिली से लोगों से मिलते थे, हँसते-मुस्कराते हुए बातें करते थे, वह उनके ऋषित्व का अनुपम उदाहरण कहा जा सकता है। आज ही अलकनंदा-नंदाकिनी के संगम नंदप्रयाग में उनके पैतृक घाट पर उनका अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में पत्रकारों, साहित्यकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और मित्रों-परिजनों ने उन्हें अंतिम विदाई दी। लगभग 46 वर्षों की मित्रता की यह डोर आज टूटकर विदीर्ण हो गई है, जो अत्यंत दुःखद है”

प्रभात पुरोहित लिखते हैं  “क्या बच्चे क्या जवां और क्या बुजुर्ग हर कोई आपके हँसमुख स्वभाव सरलता के साथ जीने के सलीके का दीवाना था तुम तो बहुमुखी प्रतिभा के दर्पण थे तुम पत्रकार भी थे कलाकार भी थे शायर भी थे तो साहित्यकार भी और इससे अलग एक हुनर और भी था आपका आप पहाड़ की बेशकीमती जड़ी बूटियों के जानकार भी थे जिसके चलते आपने कई लोगो के असाध्य रोगों को दूर किया”

राजा तिवारी लिखते हैं” चन्द्रबल्लभ पुरोहित जी किताब नहीं ग्रन्थ थे, हिंदी अंग्रेजी गढवाळी कुमाउनी नेपाली जानते थे, आयुर्वेद की गूढ़ जानकारी, लोक संस्कृति का पौराणिक तथ्यों के साथ जानकारी। रॉजनीति में स्वय को प्रधान से जिला पंचायत तक बेहतर राजनीतिज्ञ भी साबित किया। बीमार होने से पूर्व तक बिन चश्मे के पूरा अखबार पढ़ते थे।
आघातों के बाद आनन्द उनके जीवन को एक लाइन में अनुकरणीय कहा जा सकता है। किंतु कठिन है अनुकरण कर पाना”

इसके अलावा क्रान्ति भट्ट राजपालसिंह बिष्ट, शेखर रावत  देवेन्द्र रावत, प्रकाश कपरुवाण,  कमल नयन सिलोड़ी, अंशू रावत, संदीप आर्य, मंगला कोठियाल , पुरुषोत्तम असनोड़ा , जीतेन्द्र पंवार, ललिता प्रसाद लखेड़ा,गोविंद सिंह रावत, सुरेन्द्र सिंह लिंगवाल, अनुसूया प्रसाद भट्ट, भुवन नौटियाल, सुशील रावत, चन्द्र सिंह नेगी,  पूर्व विधायक डॉ अनुसूया प्रसाद मैखुरी, राजेन्द्र सिंह भंडारी, प्रो. जीतराम,   प्रेम बल्लभ भट्ट, हरीश पुजारी, विनोद भट्ट भवान सिंह चौहान, विधायक महेन्द्र प्रसाद भट्ट, सुरेन्द्र सिंह नेगी  मुन्नीदेवी सहित चमोली जिले के सभी पत्रकारों व साहित्य कारों ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की