चीन का विकास और भारत का विश्वास

हरीश मैखुरी

भारत में चीन की आधी अधूरी बातें बता कर वहां के विकास के कसीदे पढ़े जाते हैं। चीन में करीब 70 सालों से शख्त जनसंख्या नियंत्रण कानून है। वहां दर्जनों बच्चे खुदा की देन नहीं माने जाते हैं बल्कि एक परिवार का सिर्फ 1 बच्चा। क्योंकि वहां बच्चे परिवार समाज सरकार देश की जिम्मेदारी हैं। चीन में धर्मांतरण पर शख्त नजर रहती है। खासकर इस्लामिक आतंकवाद और रैडिक्लाईजेशन पर कठोर नियंत्रण है। सड़क रेलवे स्टेशन सार्वजनिक जगहों पर मजार मस्जिद अतिक्रमण नमाज पशुओं की हत्या सब बैन है। वहां आतंकवादियों को देखते ही शूट एट दि स्पाट की व्यवस्था है। भारत के जैसे नक्शल और इस्लामिक चरमपंथियों को कोई जगह नहीं है, चीन में कोई देश और सरकार के खिलाफ बोलने या लोकतंत्र की बात सोच भी नहीं सकते हैं। अनाप शनाप झंडे दिखाये तो सीधे कठोरतम सजा या ज्यादा चिल्लपों की तो जहन्नुम। यानी अराजकता से चीन को जूझना नहीं है। और सबसे बड़ी बात न यहां के जैसा विपक्ष न चुनाव का झंझट। भारत के जैसे हर साल चुनावी मोड पर नहीं टंगा रहता है चीन। इसलिए काम और काम ही चीनियों का मूलमंत्र है एक अनुशासित वर्क कल्चर है। अब तो चीन में फिट रहने के लिए भी खर्चीले अंग्रेजी मेडिकल सिस्टम पर डिपेंडेंसी की बजाय योगाभ्यास को प्राथमिकता दी जा रही है, हमारे बहुत से मित्र चीन में योगा टीचर हैं। विस्तार वादी चीन ने तिब्बत हड़प लिया अपने बहुत सारे पड़ोसी देशों की जमीनों पर अवैध कब्जा कर लिया लेकिन वहां के घुसपैठियों को कभी अपने देश में झांकने भी नहीं दिया।इन्हीं सब नीतियों का नतीजा है आज का चीन। भारत की स्थिति इसके ठीक उलट है , अब तक इस्लामिक जिहाद ने अखंड भारत के तीन टुकड़े अलग कर लिए अफगानिस्तान पाकिस्तान व बांग्लादेश। जबकि बचे खुचे भारत को भी सैक्युलर मुखौटे धारी किस ओर ले जारहे सबके सामने है। भारत सरकार उपर की सभी परेशानियों से जूझती है। फिरभी काम और काम कर रही है। नमो नमो ? ?