नागा साधुओं का देश की सुरक्षा और सनातन धर्म की रक्षा के लिए योगदान

 
आपको अगर ऐसा लगता है कि हमारे संत समाज ने भारत माता के लिए कोई लड़ाई नहीं लड़ी है तो यह बहुत बड़ी भूल है.
 भारतीय इतिहास से बड़ी चालाकी से नागा साधुओं के युद्ध पराक्रम और वीरता को हटा दिया गया. लेकिन वास्तव में ये नागा साधु शंकराचार्य जी द्वारा मलेच्छ आक्रांताओं से सनातन धर्म और देश को बचाने के लिए तैयार किए थे, नागा साधुओं की यह फौज  सनातन धर्म की रक्षा के लिए  इतनी मुस्तैद और  न्यूनतम संसाधनों में  काम करने वाली थी कि इन्हें तन पर कपड़ों की आवश्यकता भी नहीं थी और यह  कम से कम भोजन में  ज्यादा से ज्यादा समय तक  समाज की रक्षा कर सकें  उसी के लिए तैयार रहते थे। यह बात आज भी  नागा साधु अच्छी तरह से  जानते और समझते हैं। ठीक वैसे ही जैसे गुरु गोविंद सिंह जी ने म्लेच्छ आक्रांताओं से सनातन धर्म और देश को बचाने के लिए पंज प्यारे तैयार किए थे जिनमें आज निहंग और पगड़ी धारी सिक्ख मुख्यरूप से हैं। लेकिन बहुत चिंतन का विषय है कि अब नागा साधुओं को केवल कुंभ स्नान का पात्र समझा जाता है जिनकी तस्वीरें अनाप-शनाप ढंग से इन्टरप्रेट की जाती रहती हैं। 
नागा साधुओं का युद्ध जिसमें भारत माता की रक्षा के लिए 2000 साधू संत तो शहीद हो गये थे. लेकिन दुश्मन 4 कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया था.
कुछ लेखक बताते हैं कि तब नागा साधुओं के एक हाथ में तलवार थी और दूजे हाथ में शास्त्र (धार्मिक किताबें) थीं. संतों को धर्म भी बचाना था और देश भी. ये था नागा साधुओं का युद्ध ! उस वक़्त अफगानी शासक अगर आगे बढ़ जाते तो लाखों लोगों का कत्लेआम हो सकता था. हिन्दू मंदिर तोड़ दिए जाते, लेकिन हर साधू ने अपनी बहादुरी का परिचय दिया और मरने से पहले एक-एक साधू ने सैंकड़ों दुश्मनों को धूल में मिला दिया था.
जोधपुर को बचाया था सन्यासियों ने
जब काबुल और बिलोचिस्तान की और से आक्रमण कर म्लेच्छ आक्रमणकारी जोधपुर पर आये तो चारों तरफ हाहाकार था. मंदिर तोड़े जा रहे थे और कत्लेआम हो रहा था. इन म्लेच्छ शासकों ने हर व्यक्ति पर भारी कर लगा दिया था. तब अटल सन्यासियों ने इनको परास्त किया था.
वैसे यह नागा साधुओं का युद्ध इतना छोटा था कि किसीकी भी इस पर नजर नहीं पड़ती है. इसके बाद क्रूर अहमदशाह अब्दाली से साधू संतों और वह भी नागा साधुओं ने जो युद्ध लड़ा है वह युद्ध हर भारतीय को पता होना चाहिए.
सबसे पहले तो आपको बता दें कि आप इस युद्ध की विश्वसनीयता को जांचने के लिए कुछ पुस्तकें पढ़ सकते हैं. इनमें सर्वप्रमुख पुस्तक है- भारतीय संघर्ष का इतिहास, लेखक डा. नित्यानंद.
जब क्रूर अहमदशाह अब्दाली ने किया था भारत पर आक्रमण
वैसे आपको बता दें कि दशनामी अखाड़ों का जन्म ही धर्म और देश की रक्षा करने के लिए हुआ था. मुस्लिम शासक एक के बाद एक भारत पर आक्रमण कर रहे थे और लोगों पर जुल्म कर रहे थे. तब साधू संतों ने हथियार उठा लिए थे.
ऐसा ही कुछ तब हुआ था जब अहमदशाह अब्दाली दिल्ली और मथुरा पर आक्रमण करता हुआ गोकुल तक आ गया था. लोगों को काटा जा रहा था. महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे थे और बच्चे देश के बाहर बेचे जा रहे थे. तभी गोकुल में अहमदशाह अब्दाली का सामना नागा साधुओं से हो जाता है. कुछ 5 हजार साधुओं की सेना कई हजार सैनिकों से लड़ गयी थी. पहले तो अब्दाली साधुओं को मजाक में ले रहा था किन्तु तभी अब्दाली को एहसास हो गया था कि यह साधू अपनी भारत माता के लिए जान तक दे सकते हैं. लेखक लिखता है कि इस युद्ध में 2000 नागा साधू वीरगति को प्राप्त हुए थे. लेकिन सबसे बड़ी बात यह रही थी कि दुश्मनों की सेना चार कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाई थी. जो जहाँ था वहीं ढेर कर दिया गया था या फिर पीछे हटकर भाग गया था.
तबसे कई विदेशीययवन शासक जब यह सुनते थे कि युद्ध में नागा साधू भाग ले रहे हैं तो वह लड़ते ही नहीं थे. भारत का इससे बड़ा दुर्भाग्य कुछ नहीं है कि आज हमें क्रूरुर औरंगजेब मुहम्मद गौरी गजनवी बाबर को याद हैं, लेकिन ऐसे भारतीय वीर योद्धाओं के बारें में कुछ नहीं जानते हैं जो देश और धर्म की शान हैं.
तो इस प्रकार से साधू संतों ने देश की आजादी के लिए भी कई युद्ध लड़े है और अपनी कुर्बानियां दी हैं. (साभार)