उत्तराखंड विधानसभा की सुरक्षा पर पड़ा परदा

हरीश मैखुरी

उत्तराखण्ड की विधानसभा भवन के सामने सड़के के दूसरे ओर खड़े इस सात मंजिला भवन की नींव रखी जा रही थी मुझे तभी खटका लगा कि इतने बड़े भवन से तो न केवल विधानसभा के आगे से परदा लग जाएगा। हवा और धूप प्रभावित होगी बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से भी यह इमारत खतरे से खाली नहीं है। इस इमारत में बैठकर आप विधानसभा के अंदर दूरबीन से किसी को भी निशाने पर ले सकते हैं जब मैंने वहां जाकर उनसे पूछा कि यह इमारत किसकी बन रही है तो उन्होंने बताया कि यह इमारत सरकार विधानसभा के सदस्यों और कर्मचारियों के लिए बन रही है तब भी मुझ जैसे सामान्य आदमी के दिमाग में सुरक्षा संबंधी सवाल कौंधने लगे लेकिन उत्तराखण्ड की विधानसभा के अंदर बैठने वाले जनप्रतिनिधियों और लोक सेवकों के दिमाग में क्या यह सवाल उठे ही नहीं।

सात मंजिल बनने तक इस निर्माण पर न तो सुरक्षा एजेंसियों की नजर गई, न जनप्रतिनिधियों की और न ही संबंधित अधिकारियों की यह अपने आप में सबसे बड़ा सवाल है कि क्या उत्तराखण्ड की विधानसभा में बहरे, गूंगे और गैर जिम्मेदार लोग बैठे हुए हैं वहीं सवाल एमडीडीए की कार्यशैली पर भी उठते हैं। आम आदमी को नक्शे पास कराने के लिए भले ही पापड़ बेलने पड़ते हों, लेकिन रसूखदार और पैसों वालों के लिए यह चुटकियों का खेल है। सरकार भले ही भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करे, लेकिन सरकार की नाक के ठीक सामने सारे नियम कायदों को ताक पर रख सात मंजिला भवन खड़ा कर दिया गया। इतना ही नहीं इस मामले में एमडीडीए भी आंखें मूंदे रहा। विधानसभा के ठीक सामने निर्माणाधीन इस भवन का नक्शा कैसे पास हुआ, इसे लेकर अधिकारियों के पास भी जवाब नहीं है।

विधानसभा, सचिवालय समेत सुरक्षा के लिहाज से संवदेनशील तमाम स्थानों के आसपास निर्माण के लिए इन संस्थाओं या विभागों से अनापत्ति लिए जाने का प्रावधान है। इसी के आधार पर निर्माण की अनुमति दी जाती है, लेकिन विधानसभा के ठीक सामने बन रहे सात मंजिला भवन के मामले में विधानसभा से अनापत्ति तक नहीं ली गई। सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील विधानसभा के ठीक सामने यह निर्माण कार्य उस वक्त शुरू किया गया, जब राज्य में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी और विधानसभा में ज्यादा हलचल नहीं थी। इसी का फायदा उठाते हुए भवन खड़ा कर दिया गया। इस मामले में एमडीडीए अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका भी जताई जा रही है। चुनावी व्ययस्तता का लाभ उठाते हुए बिल्डर किस तरह का खेल खेलते हैं, उत्तराखण्ड के मंत्रियों और विधायकों के लिए यह भवन ताजीवन उसका दर्पण है।

बिना विधानसभा से अनापत्ति के सात मंजिला भवन के निर्माण की अनुमति कैसे दी गई और अगर अनुमति सात मंजिला भवन के लिए नहीं थी तो अभी तक इस ओर एमडीडीए ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की, ये सवाल एमडीडीए की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं। अब मामला सामने आने के बाद एमडीडीए में इससे हड़कंप मचा है। विधानसभा सचिव जगदीश चंद्र का कहना है कि इस भवन के निर्माण को लेकर विधानसभा से कोई अनुमति प्राप्त नहीं की गई है। सुरक्षा के लिहाज से यह भवन खतरा साबित हो सकता है। इस मामले पर शहरी विकास एवं आवास मंत्री मदन कौशिक का कहना है कि विधानसभा के सामने सुरक्षा के लिहाज से इतने ऊंचे भवन का निर्माण नहीं किया जा सकता है। इस मामले में एमडीडीए उपाध्यक्ष वी षणमुगम को जांच करने के निर्देश दिए गए हैं। साथ ही इस भवन के नक्शे से जुड़ी फाइल तलब की गई है।

उत्तराखण्ड सुरक्षा की दृष्टि से सबसे संवेदनशील है ऐसे में इसके विधान भवन के आगे इस तरह के भवन का निर्माण न केवल बिल्डरों की मनमानी दर्शाता है बल्कि उत्तराखण्ड के जिम्मेदार लोगों की कारिस्तानी पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।