बाघिन का घातक हमला, विचलित करने वाली तस्वीरें

आलेख एवं फोटो दीप रजवार 

।। बाघिन का घातक हमला।। 

बात कल की है यानी रविवार की जब भरी दोपहरी में क़रीब १२:३० बजे टेड़ा गाँव की तरफ़ उसी बाघिन की टोह लेने गया था क्यूँकि पिछले दो दिनों से टेड़ा नाले के आस पास उसकी गतिविधि नज़र आ रही रही थी और रात्रि में सड़क पर चहलकदम करती हुई उसकी विडीओ किसी के द्वारा सोशल मीडिया पर साझा की गई थी..
और शनिवार को उस जगह पर मोर और कोव्वों की अलार्म कॉल भी थी हालाँकि थोड़ा इंतज़ार करने के बाद अलार्म कॉल को छोड़ और कुछ खास गतिविधि नज़र नहीं आयी तो में वापस लौट गया था..
नाले पर थोड़ा इंतज़ार करने के बाद में टेड़ा चोकी की तरफ़ बढ़ गया तभी वहाँ मेरी मुलाक़ात हमारे बढ़े भाई धसमना जी से हो गई जो वाइल्ड लाइफ़ के क्षेत्र में काफी अनुभवी है और लम्बे समय से अपनी सेवा इस क्षेत्र में दे रहे हैं..
उन्होंने बताया कल रात पाटकोट जाते वक्त मुझे टेड़ा नाले के पास एक बाघ दिखायी दिया था तो मैंने कहा हाँ मैंने विडीओ देखी थी ये वही हैं तीन शावकों वाली बाघिन है जो इस क्षेत्र में काफ़ी समय से दिखायी दे रही है ..
फिर वो रामनगर को चले गये और में टेड़ा चोकी से ऊपर को बढ़ गया.
मुश्किल से ५ मिनट हुए होंगे कि उनका फोन आ गया की दीप जल्दी आ जा नाले पर मैंने अभी उसे सड़क पार करके ऊपर जाते हुए देखा है तो में वही से गाड़ी घुमा जल्दी से वहीं पहुँच गया तो उन्होंने बताया की वो ऊपर की तरफ़ गयी है और वो बोले मुझे इतना अनुभव नहीं है यहाँ का पर वो बड़ी जल्दी में थी तो में बोला कही उसने कोई मवेशी तो नहीं मार दिया और वो अपने शावकों को लेने गई हो तो वो बोले दीप मवेशी तो वहीं पर चर रहे हैं तो में बोला वहीं चलो कुछ गड़बड़ है और हम भाग के वहीं पर आ गये और गाड़ी लगा के खड़े हो गये इस बीच कुछ परिचित भी आ गये तो हम आपस में वार्तालाप करने लग गये तभी मुझे बाघिन दिखी सड़क पर तो में बोला आ गई पर हमारे कैमरा निकालने तक वो आँखो से ओझल हो गई वो फिर दिखी झाड़ियों के बीच से अपना सर ऊपर निकाल के वो मवेशियों के झुंड को देख रही रही थी सारा माजरा समझ में आ गया था कि वो उनका शिकार करने की ताक में थी और सही मौक़े के इंतज़ार में थी वो फिर से ओझल हो गई थी तभी झाड़ियाँ हिली और बिजली की तेज़ी से ऐसा कुछ घटित हुआ कि दिमाग़ को भी समझने में देर लग गई और जब तक दिमाग़ प्रतिक्रिया करता तब तक बाघिन ने अपने तीन शावकों के साथ एकमवेशी पर घातक हमला कर दिया था..
बाघिन ने मोर्चा सम्भाला और बाक़ी तीन शावक भाग के जंगल में ग़ायब हो गये.
हमला इतनी तेज़ी से हुआ था की मेरे कैमरा उठाने से लेकर फ़ोकस करने तक दो शावक ग़ायब हो चुके थे पर में माँ और तीसरे शावक को एक साथ क़ैद करने में सफल रहा.
बाघिन मवेशी पर झपटी पर मवेशी ने भी अपने बचाव में उसे अपने सींगो से मारने का असफल प्रयास कर रही थी पर वो उससे कहाँ पार पा पाती आख़िरकार बाघिन ने उसका गला पकड़ लिया और पूरी ताक़त से उसकी गर्दन तोड़ दी इसी बीच झुंड के और मवेशियों ने उसे बचाने का प्रयास किया पर डर के मारे वो सब वहाँ से भाग लिये.
मुख्य सड़क होने की वजह से और ऊपर से छुट्टी का दिन तो काफ़ी भीड़ भाड़ हो गई थी इसलिए घबराकर बाघिन उसे वहीं अधमरा छोड़ बिजली की फुर्ती से छलांग लगाती हुई जंगल के अंदर ओझल हो गई…
पर वो अपना काम कर गई थी और वो अपनी आँखिरी साँस गिन रही थी
पूरा घटनाक्रम केवल २ मिनट का रहा और इन दो मिनट में वो अपना काम करके ग़ायब भी हो चुकी थी..
पूरे १०-१५ दिनों की शांति के बाद उसने फिर से किसी मवेशी को अपना निवाला बनाया है..
मामला मुख्य सड़क का होने की वजह से सुरक्षा के तहत वहाँ पर वन कर्मियों की गस्त शुरू हो चुकी थी..
शाम तक इंतज़ार करने के बाद भी वो वापस अपने शिकार को लेने नहीं आयी और प्राप्त जानकारी के अनुसार रात्रि में वो अपने शिकार को घसीट के अंदर जंगल में ले गई..

इस साइटिंग का पूरा श्रेय गिरीश दशमाना जी को जाता है जिनकी वजह से में इस दुर्लभ घटना को अपने कैमरे में क़ैद कर पाया..

में जानता हूँ इन तस्वीरों को देखकर मन विचलित हो सकता है पर एक वाइल्डलाइफ़ फोटोग्राफर होने की वजह से ये मेरा फ़र्ज़ बनता है कि में प्रकर्ति के हर रंग को आप लोगों के सम्मुख पेश करू!

मुझे पता है कुछ लोग बोलेंगे कि गाय माता को बचाना चाहिये और में उनकी भावनाओं की कद्र भी करता हूँ पर दुखद पहलू ये है कि लोग गाय को बचाने का सिर्फ़ बहाना करते है अगर ऐसे तथाकथित लोग गाय को बचाने के लिए गम्भीर होते तो गायों की ये दुर्दशा नहीं होतीं..
पहाड़ों में क्या हो रहा है सभी को पता है गाय जब दूध देना बंद कर देती है तो उसे कसाई को बेच दिया जाता है. जंगलो में छोड़ दिया जाता है.
बछड़ा होने पर उसकी आँखो में कपड़ा डाल कर नवजात बछड़े को जंगल में फ़ेक दिया जाता है तड़प तड़प के मरने को तब इनकी संवेदनाएं कहाँ मर जाती है..

संवेदनाएं केवल दिखावा मात्र बन के रह गई है और सोशल मीडिया उनका एक अच्छा माध्यम…

सावधानी बरतें और सुरक्षित रहें….

इसी रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए राजेन्द्र रावत ने लिखा है :-

प्रकृति के नियम के हिसाब से गाय कहीं से भी बाघ का भोजन नहीं है, बाघ का भोजन हिरण सांभर सुवर खरगोश मुर्गे सेही मगरमच्छ घड़ियाल हैं जिनमें वंश वृद्धि दर गाय से दुगनी तिगुनी चौगुनी है और जिन पर अंकुश लगाने के लिए ही शेर बाघ चीता तेंदुआ हैं या अन्य बड़े बूढ़े और विकलांग जंगली जानवर है जिनको बीमार होने से पहले ही डकार लेना चाहिए नहीं तो बीमारी के फैलने के चांस होते हैं,

अतः गाय को हर हाल में बचाया जाना चाहिए था, लेकिन क्या करें पेट सिर्फ बाघिन और उसके बच्चों को नहीं फोटोग्राफर और उसके बच्चों का भी तो भरना चाहिए.. इसलिए तो एक शिकारी ने दूसरे शिकारी को शिकार करने दिया” (साभार)