पंच वृक्ष या नवग्रह वाटिका लगा कर होती है देवत्व की प्राप्ति

डॉ हरीश मैखुरी

पर्यावरण दिवस विशेष – जो कभी पीपल नहीं लगाते वे पीपल की जड़ में तेल के दिए जलायेंगे और इन पेड़ों पर धागे बाधेंगे मंतर लगा कर कील ठोकेंगे, कतिपय तो पीपल के पेड़ को सीमेंट कंक्रीट के चबूतरे से घेर कर उसे मिट्टी पानी से वंचित करने का पाप भी कर देते हैं। आप किसी भी पीपल के पेड़ के नीचे दिया जलाने वाले या तेल डालने वाले या इस पर डोरे बांधने वाले से पूछो कि तुमने कभी पीपल का पेड़ लगाया तो तुरंत एक सुनी सुनाई बात कहेगा ‘पीपल का पेड़ निसंतान और विधवा दंपत्ति लगाते हैं’ ऐसी शास्त्र विहीन और बिना सिर पैर की बातों से हमारा अंधविश्वासी समाज अटा पड़ा है। पुराने जमाने में लोग शास्त्र सम्मत विधि से पंच वृक्षों का निरूपण और इन पंच वृक्षों की पूजा करते थे। जिसमें मुख्य रूप से आम, बड़, पंया, पीपल, बेल और नीम होते थे ये पेड़ लगभग हर गांव में या गांव की सार्वजनिक जगहों पर लगे हुए रहते थे। नवग्रह वाटिका भी बहुत चलन में थी। इन पेड़ों पर हथियार चलाने और पत्थर मारना निषिद्ध होता था। और हर आंगन में तुलसी के पौधे को लगाना तो प्रत्येक परिवार का आवश्यक दायित्व था। जो ओजोन संरक्षक, रोगप्रतिकारक और जरासीम नाशक पौधा है। पीपल का पेड़ धरती पर क्लाइमेट को ऑटोक्लाइमेट बनाने वाला और नेचर रेगुलेट करने वाला एकमात्र पेड़ है। यह गर्मियों में शीतल हवा छोड़ता है और जड़ों में कुनकुनी हवा देता है। कहा जाता है कि यह दिन में संषलेशण करते समय आक्सीजन और रात को ओजोन O छोड़ता जबकि co2 याने कार्बन डाइऑक्साइड नहीं छोड़ता। विष्णु पुराण में पीपल का पेड़ लगाने का विधान बताते हुए कहा गया है कि पीपल पेड़ का निरूपण इस जन्म और पूर्व जन्म के समस्त पापों का क्षय कर देता है। भविष्य पुराण में कहा गया है कि पीपल का पेड़ निरूपण करने का अर्थ है कि आपने अपने भविष्य की जड़ों का सिंचन कर दिया यह आपको निरोगी संतति देता है। पीपल के बड़े पेड़ के आसपास चीटियों के लिए गेंहूं के आटे का घी के साथ मीठा चूरमा (चूर्ण) बनाकर थोड़ी सी बुबराने का विधान बताया गया है, इससे हजारों चीटियां तृप्त होंगी और वह आपको आशीष देंगी साथ ही पीपल के पेड़ पर लगी हुई फंजाई को चाट कर चीटियां पीपल के पेड़ की उम्र को भी बढ़ाती है इससे पीपल के पेड़ का आशीष भी उन उस व्यक्ति को मिलेगा जिसने चीटियों को आटे का चूरमा दिया। पीपल धरती पर एकमात्र ऐसा पेड़ है जिसके सम्मुख जाकर आप अपने मन की व्यथा कह सकते हैं और वह आप की व्यथा सुनकर आपके दुखों को समन करके आपको मन वांछित आशीष भी देता है, इसीलिए पीपल के पेड़ की जड़ में सदैव पानी डाल कर पूजा का शास्त्रों में विधान बताया गया है। तेल से पेड़ों की जड़ खराब होती है और इसी पूजा निष्फल हो जाती है, यही विधान है। पीपल के पेड़ पर हजारों पशु पक्षियों का वास रहता है वे सभी पशु पक्षी भी पेड़ लगाने वाले को दुआएं देते हैं। ब्रह्म वैवर्त पुराण में कहा गया है कि पीपल के शत वृक्ष निरूपण से व्यक्ति कभी भी शूकर कूकर और सरिसृप योनियों में नहीं जाता और जो पंच वृक्षों अथवा नवग्रह वाटिका लगा कर उनका संरक्षण करता है वही सबसे बड़ा तपस्वी है, इसी से मनुष्य को इसी जन्म में देवत्व की प्राप्ति हो जाती है।