डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक ने प्रो.मुरली मनोहर जोशी से भेंट कर नयीं शिक्षा नीति का प्रारूप देकर परिचर्चा की

डाॅ हरीश मैखुरी

    देश के मानव संसाधन विकास मंत्री (अब शिक्षा मंत्री) डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और बहुत ही विद्वान मनीषि प्रोफेसर मुरली मनोहर जोशी से भेंट कर उनको नई शिक्षा नीति की प्रारूप पुस्तिका भी भेंट की और उन से इस विषय पर गहन परिचर्चा भी की। डॉ निशंक न अपने से बड़ों को भूलते हैं और न छोटों को इग्नोर करते हैं, यह उनकी खासियत है। आज डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी से भेंट करने के बाद डॉ निशंक ने कहा कि “भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता, हम सबके प्रेरणा स्रोत आदरणीय श्री मुरली मनोहर जोशी जी से उनके आवास पर शिष्टाचार भेंट कर उनका कुशल क्षेम जाना। इस अवसर पर उन्हें नई शिक्षा नीति की पुस्तक भेंट कर उनसे नई शिक्षा नीति की विशेषताओं पर चर्चा की।

डाॅ पोखरियाल ने कहा कि यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के दूरदर्शी नेतृत्व में नई शिक्षा नीति 2020 को स्वीकृति प्रदान की गई है जो भारतीय शिक्षा व्यवस्था में ऐतिहासिक परिवर्तन का वाहक बनेगी।

बता दें कि देश के मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने कल जीन्यूज पर दिए एक साक्षात्कार में कहा है कि नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट देश के पक्ष विपक्ष के सांसदों शिक्षाविदों वैज्ञानिकों साहित्यकारों इतिहासकारों वैज्ञानिकों मनोवैज्ञानिक साईक्लोजिस्टों विद्यार्थियों, शोधार्थियों और राज्यों से विस्तृत चर्चा परिचर्चा सुझावों के आधार पर तैयार किया गया है। फिर भी किसी के कोई विशेष सुझाव हों तो इसे पब्लिक डोमेन में डाला हुआ है यहां सभी के सुझावों का स्वागत है। डाॅ निशंक ने कहा कि हम क्षेत्रीय भाषाओं को मजबूत करना चाहते हैं भारत की 26 भाषाओं को आगे बढ़ाना चाहते हैं इसलिए प्राथमिक शिक्षा केवल मातृभाषा में दी जाएगी और अंग्रेजी अब केवल एक विषय के रूप में पढ़ाई जाएगी उन्होंने कहा कि पूरे देश का पाठ्यक्रम (सिलेबस) एक समान होगा। छात्रों को व्यवहारिक ज्ञान व्यवहारिक शिक्षा खेल, संगीत, आर्ट, कम्युनिकेशन साइंस, स्किल डेवलपमेंट टैक्नॉलॉजी आदि सब एक साथ देने की कोशिश की जाएगी और उसके बाद उच्च शिक्षा में छात्र की जिस विषय में रुचि होगी उसी में आगे की शिक्षा और आगे की विशेषज्ञता ले सकता है। लेकिन बेसिक नॉलेज उसे सब चीजों का दिया जाएगा। साइंस विज्ञान कला वाणिज्य संकाय जैसे अलग-अलग विभाग नहीं रहेंगे बल्कि छात्र अपने विषय का चयन खुद कर सकेंगे।उन्होंने कहा कि अब संस्कृत के साथ विज्ञान भी पढ़ सकते हैं।
हमारा सुझाव है कि भारत के प्राचीन वैदिक और पौराणिक इतिहास को निश्चित रूप से बच्चों के छोटे बच्चों के कोर्स में सम्मिलित किया जाए। संस्कृत में बहुत गुणवान चरित्रवान धैर्यवान ज्ञानवान बनाने वाली कथायें हैं उनको प्राथमिक कक्षाओं में निश्चित रूप से पढ़ाया जाए। व्यक्ति की गुणवत्ता उसे गुणवान बनाकर ही विकसित की जा सकती है। कृषि, पशुपालन और ग्रामीण आर्थिकी को प्राथमिकता से पढ़ाया जाए। स्वच्छता वृक्षारोपण पर्यावरण पशुओं से प्रेम जल की शुद्धता, चरित्र निर्माण यह सब कक्षा 12 तक अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाएं। बच्चों को कदापि होमवर्क ना दिया जाए और जो कुछ बच्चों को स्कूल में पढ़ाया जाए वही आगे उनकी प्रतियोगिता परीक्षाओं में भी सम्मिलित हो चाहे प्रतियोगिता परीक्षाएं आईएएस पीसीएस में टेक्निकल हो स्वास्थ्य की हों या लिपिक की सभी में जो बच्चों ने अपनी प्राइमरी से लेकर इंटर तक की परीक्षाओं में पढ़ा है उसी आधार पर पर उनकी परीक्षण व साक्षात्कार संपन्न हो। साक्षात्कार आदि जबतक अंग्रेजी में होगा तो आप छात्रों को यह कैसे कहेंगे कि आप अंग्रेजी मत पढ़ो। इसलिए इंटरव्यू भी उसकी मातृभाषा में हो तो ज्यादा अच्छा नहीं तो हिंदी और राज्य भाषा में हो तब जाकर यह शिक्षा नीति एक व्यवहारिक स्वरूप ले पाएगी, कुछ मित्र व्यावहारिक सुझाव दें तो उनको संकलित संपादित कर एक ड्राफ्ट निशंक जी को भेजने का विचार है। #डाॅ_हरीश_मैखुरी

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