चीनी सीमा विवाद के रहते राज्य के पहाड़ों से पलायन बहुत खतरनाक

मदनमोहन ढोंडियाल

चीन ने दुबारा भारत को धमकी दे डाली है कि वह डोकलाम के मुद्दे को ले कर भारत से बदला लेगा और भारत के बिरूद्ध 1962 का इतिहास फिर दोहराएगा। साफ है यह चीन की हार है और वह डोकलाम की हार से बौखलाया है। फिर भी भारत को इस भौंकते जानवर से सावधान तो रहना ही होगा , क्योंकि साफ है ड्रैगन अपनी चाल वही रखेगा जो पहले थी। इसके लिए जो पहले वाला सुरक्षा में ढीलापन कई जगहों पर रहा है उससे बचना पड़ेगा। आज चीन की सोशल मीडिया पर ग्लोबल टाइम्स के अकॉउंट पर कई टिप्पणियां थी जो चीनी नागरिकों ने लिखी थी। विषय डोकलाम व भारत चीन सीमा बिवाद से जुड़ा था। हजारों चीनियों ने भड़काऊ टिप्पणियां लिखी थी। इन टिप्पणियों में भारत और वीयतनाम को कुत्ता कहा गया था। इस प्रकार अगर भविष्य में सीमाओं पर तनातनी होती है तो भारत के हिमालयी राज्यों से लगती चीनी सीमा का भारत को ध्यान देना होगा।

हिमालयी राज्यों विशेषकर उत्तराखंड से हुवा पलायन चीन के पक्ष में जाता है क्योंकि हजारों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जो सीमाओं से लगता है पलायन के कारण सुनसान पड़ा हुवा है और चीन की घुशपैठ के लिए बहुत आसान है। पहले स्थानीय चरवाहों और लोगों की चहल पहल से चीन की हलचल का पता भारत के सुरक्षा बलों को आसानी से प्राप्त हो जाता था , तेजी से बढ़ रहे पलायन ने इस पर पानी फेर दिया है। इसका खामियाजा देश की सुरक्षा को भुगतना पड़ेगा। मैंने पहले भी मळंपतेंपद पब्लिक ग्रुप के माध्यम से लिखा था कि चीन पश्चिम नेपाल में अपना अच्छा खासा नेटवर्क स्थापित कर चुका है और यहीं से उसकी अगली भारत बिरोधी गतिविधियां प्रारम्भ होंगी। ध्यान रहे उत्तराखंड और पश्चिम नेपाल का आपस में रोटी बेटी का रिश्ता भी है। दूसरी तरफ पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनो के खतरनाक एजेंटों की गतिविधियां भी पश्चिम नेपाल में जोरों से बढ़ी है। पश्चिम नेपाल, नेपाल का एक बहुत पिछड़ा क्षेत्र है और यहाँ के लोग बड़ी संख्या में उत्तराखंड पर रोजगार के मामले में आश्रित रहते हैं।

तीसरा पहलू भारत की सुरक्षा और राजनीती का दोगलापन है जो एक दिन सबको चित करेगा। देहरादून में बैठे नेताओं और अधिकारियों तथा उनके स्टाफ को देहरादून से गैरसैण शिफ्ट करने में बहुत परेशानियां हैं क्योंकि सबके वही अपने अपने जुगाड़ हैं।गैरसैण में वह सुविधाएँ पैदा करनी पड़ेंगी जो उन्हें देहरादून में आसानी से मिलती रहती हैं। पहाड़ खाली हो रहे हैं और एक दिन पूरे उत्तराखंड के पहाड़ों में पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों के एजेंट होंगे या चीनी जासूस व उनके अपने लोग अड्डा बना चुके होंगे। आज जिस तेजी से पहाड़ खाली होने की रफ्तार पकड़ रहे हैं वे यही संकेत देते हैं। इस विषय पर मैं कई बार सोशल मीडिया और समाचार पत्रों से जनता को अवगत करा चुका हूँ।

सरकारों के पास क्या फीड बैक आती है वह तो सरकार और उनकी फीडबैक देने वाले ही जाने ,यह मेरा अकेले का सर्वेक्षण नहीं है स्थानीय लोग जो जागरूक हैं उन्हें भी इस विषय का अहसास है लेकिन सुनने वाले अपने लाभ में मस्त हैं । केंद्र सरकार को राष्ट्र की सुरक्षा के मध्य नजर तुरन्त देहरादून से गैरसैण उत्तराखंड की स्थाई राजधानी पर राज्य सरकार को आदेश देने चाहिए ताकि देश की सुरक्षा और विकास में माफिकवाद कब्जा न जमा सके। जनता को पता है माफिया तंत्र सिर्फ अपना लाभ देखता है अंततः स्थानीय लोगों और देश के सुरक्षा तंत्र को ही दुश्मनो से मुकाबला करना पड़ेगा। जय भारत जय उत्तराखंड।