आपके टॉयलेट के सेप्टिक टैंक से भी बनेगी बिजली

 

यदि सबकुछ योजना के अनुसार चला तो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) खड़गपुर में मानव अपशिष्ट से बिजली बनाने को लेकर एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। इस बायो इलेक्ट्रिक शौचालय की एक नहीं कई खूबियां हैं। यह मानव अपशिष्ट से बिजली बनाने में तो सक्षम होगा ही, बल्कि अपशिष्ट को जैविक खाद में भी तब्दील कर देगा। इसमें फ्लश के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पानी को रिसाइकल किया जा सकेगा। प्रोजेक्ट को केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से आर्थिक सहयोग मिल रहा है।

प्रो. एमएम घांघरेकर का कहना है कि इस टॉयलेट से जो भी अपशिष्ट टैंक में पहुंचेगा, उसमें मौजूद मिथोजेनिक बैक्टीरिया को यह सिस्टम इलेक्ट्रोजेनिक बैक्टीरिया में बदल देगा। इसका सेप्टिक टैंक एक बड़े सेल की तरह काम करेगा। आइडिया यही है कि टॉयलेट बिजली भी बनाता रहे और अपशिष्ट का भी प्रबंधन करता रहे। यह पानी की बचत करने में भी सक्षम है। पानी को फ्लशिंग के लिए रिसाइकिल कर सकता है। इसमें फ्लशिंग के लिए सामान्य 8 से 10 लीटर की जगह महज एक-दो लीटर पानी ही लगेगा।

प्रतिदिन पांच व्यक्तियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने पर यह टॉयलेट करीब 60 वॉट प्रति घंटा की औसत से बिजली तैयार करेगा। जिससे रात में दो एलईडी बल्ब, एक शौचालय के अंदर और दूसरा बाहर, आराम से रौशन किए जा सकते हैं। दिन के समय मोबाइल या अन्य लो पॉवर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस भी चार्ज किए जा सकते हैं। प्रो. घांघरेकर का कहना है कि बायो टॉयलेट में केवल अपशिष्ट का निस्तारण अथवा अपशिष्ट से विद्युत ऊर्जा तैयार की जाती रही है। उससे एक कदम आगे बढ़ते हुए हमने मानव अपशिष्ट के निस्तारण के साथ ही जल शोधन व विद्युत ऊर्जा तैयार करने की दिशा में काम किया है। बायो टॉयलेट में बनने वाली मीथेन गैस की मात्रा बहुत ही सीमित होने के कारण उसका उपयोग नहीं हो पाता है। दूसरी ओर हमारी तकनीक में मीथेन गैस बनती ही नहीं है। इससे पर्यावरण संरक्षण में भी यह सहयोगी साबित होगा। यदि इस प्रोजेक्ट को सफलता मिली तो वो दिन दूर नहीं जब नदियों पर बनाए जाने वाले बड़े-बड़े बांध अप्रसंगिक लगने लगेंगे।