!!!—: वैदिक पञ्चाङ्ग :—!!!
आधुनिक युग में सभी लोग भारतीय संस्कृति को अंधविश्वास पर आधारित संस्कृति मानकर तिरस्कृत करते हैं और अंग्रेजों के बोगस ज्ञान को वैज्ञानिक आधारित मानकर अंध अनुसरण करते हैं।
नववर्ष पर मेरा यह प्रयास है कि आपको भारतीय पंचांग के महान विज्ञान से अवगत कराया जाये ।
बिना वैज्ञानिक उपकरणों के हमने पूरा ब्रह्माण्ड नाप लिया। क्या अंग्रेजी विज्ञान ऐसा कर सकता है?
पंचांग का अर्थ है पंच+अंग अर्थात पांच अंग। पंचांग के द्वारा चन्द्र मास की गणना की जाती है, जो कि ७ दिनों के ४ सप्ताहों में विभाजित है और आगे चलकर इसी से हमें ग्रहों एवं नक्षत्रों के गुप्त मार्गों की जानकारी मिलती है।
पंचांग के पांच प्रकार के पहलु हैं… दिन (वार) अर्थात सूर्य दिवस, तिथि अर्थात चन्द्र दिवस, नक्षत्र अर्थात तारा-मंडल या तारों का समूह, योग एवं कर्ण।
पंचांग के चक्र को खगोलीय तत्वों से जोड़ा जाता है।
अंग्रेजी संस्कृति को वैज्ञानिक संस्कृति के आधार पर अपनाने और भारतीय संस्कृति को आडंबर के नाम पर तिरस्कृत करने वालों के लिए पंचांग के वैज्ञानिक पहलु जानना अत्यंत आवश्यक है।
जुलाई व अगस्त नाम कैसे पडे?
इस्लामी पंचांग में एक वर्ष ३५५ दिनों में पूरा होता है।
यही कारण है कि उनके पर्व- त्योहार प्रत्येक वर्ष १० दिन पीछे हो जाते है। ग्रेगेरियन कैलेंडर में पहले ३०० दिन का ही वर्ष होता था और १० महीने होते थे। बाद में अगस्टस सीजर एवं जूलियस सीजर ने अपने- अपने नाम पर अगस्त और जुलाई माह का प्रावधान किया। साथ ही सूर्य की परिक्रमा ३६५ दिन और ६ घंटे में पूरा करने के कारण चार वर्ष में एक लीप इयर का प्रावधान किया गया।
भारतीय पंचांग में महीनों के नाम कैसे पडे?
एक साल में १२ महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में १५ दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण। प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं :— उत्तरायण और दक्षिणायन । छह छह मास के ।
इन दो अयनों की राशियों में २७ नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। यह १२ राशियाँ बारह सौर मास हैं।
जिस दिन सूर्य जिस राशि मे प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है।
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र मे होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है।
चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से ११ दिन ३ घड़ी ४८ पल छोटा है।
इसीलिए हर ३ वर्ष मे इसमे एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास कहते हैं।
इन बारह मासों के नाम आकाशमण्डल के नक्षत्रों में से १२ नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं।
जिस मास जो नक्षत्र आकाश में प्राय: रात्रि के आरम्भ से अन्त तक दिखाई देता है या कह सकते हैं कि जिस मास की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है।
(१.) चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास (मार्च-अप्रैल),
(२.) विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास (अप्रैल-मई),
(३.) ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ मास (मई-जून),
(४.) आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास (जून-जुलाई),
(५.) श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण मास (जुलाई-अगस्त),
(६.) भाद्रपद (भाद्रा) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद मास (अगस्त-सितम्बर),
(७.) अश्विनी के नाम पर आश्विन मास (सितम्बर-अक्टूबर),
(८.) कृत्तिका के नाम पर कार्तिक मास (अक्टूबर-नवम्बर),
(९.) मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष (नवम्बर-दिसम्बर),
(१०.) पुष्य के नाम पर पौष (दिसम्बर-जनवरी),
(११.) मघा के नाम पर माघ (जनवरी-फरवरी) तथा फाल्गुनी
(१२.) नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) का नामकरण हुआ है।
महीनों के नाम पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहता है:
चैत्र : चित्रा, स्वाति।
वैशाख : विशाखा, अनुराधा।
ज्येष्ठ : ज्येष्ठा, मूल।
आषाढ़ : पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, सतभिषा।
श्रावण : श्रवण, धनिष्ठा।
भाद्रपद : पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र।
आश्विन : अश्विन, रेवती, भरणी।
कार्तिक : कृतिका, रोहणी।
मार्गशीर्ष : मृगशिरा, उत्तरा।
पौष : पुनर्वसु, पुष्य।
माघ : मघा, अश्लेशा।
फाल्गुन : पूर्वाफाल्गुन, उत्तराफाल्गुन, हस्त।
तिथि :—-एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक की होती है।
चंद्र मास में ३० तिथियाँ होती हैं, जो दो पक्षों में बँटी हैं :—
(१.) शुक्ल पक्ष में एक से चौदह और फिर पूर्णिमा आती है।
पूर्णिमा सहित कुल मिलाकर पंद्रह तिथि।
(२.) कृष्ण पक्ष में एक से चौदह और फिर अमावस्या आती है, अमावस्या सहित पंद्रह तिथि।
नक्षत्र :—आकाश में तारामंडल के विभिन्न रूपों में दिखाई देने वाले आकार को नक्षत्र कहते हैं। मूलत: नक्षत्र २७ माने गए हैं।
ज्योतिषियों द्वारा एक अन्य अभिजित नक्षत्र भी माना जाता है। चंद्रमा उक्त सत्ताईस नक्षत्रों में भ्रमण करता है।
योग :—-योग २७ प्रकार के होते हैं। सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं।
दूरियों के आधार पर बनने वाले २७ योगों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं:- विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातीपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति।
२७ योगों में से कुल ९ योगों को अशुभ माना जाता है
तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी गई है।
ये अशुभ योग हैं: विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतीपात, परिघ और वैधृति।
करण :—-एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में।
कुल ११ करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न।
कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (१४) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है।
विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
पक्ष :—-प्रत्येक महीने में तीस दिन होते हैं। तीस दिनों को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर दो पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है।
एक पक्ष में लगभग पंद्रह दिन या दो सप्ताह होते हैं।
एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। शुक्ल पक्ष में चंद्र की कलाएँ बढ़ती हैं और कृष्ण पक्ष में घटती हैं।
सौरमास :—
सौरमास के नाम : मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन।
सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है।
सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय सौरमास कहलाता है।
यह मास प्राय: तीस, इकतीस दिन का होता है।
कभी-कभी अट्ठाईस और उन्तीस दिन का भी होता है।
मूलत: सौरमास (सौर-वर्ष) ३६५ दिन का होता है।
१२ राशियों को बारह सौरमास माना जाता है।
जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है।
इस राशि प्रवेश से ही सौरमास का नया महीना शुरू माना गया है।
सौर-वर्ष के दो भाग हैं- उत्तरायण छह माह का और दक्षिणायन भी छह मास का। सूर्य के धनुसंक्रमण से मकरसंक्रमण तक मकर राशी में रहता हे।
इसे धनुर्मास कहते है। इस माह का धार्मिक जगत में विशेष महत्व है।
चंद्रमास :— चंद्रमास अर्थात वह काल जिसे हम महीने कहते है।
चंद्रमास के नाम : चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन।
चंद्रमा की कला की घट-बढ़ वाले दो पक्षों (कृष्ण और शुक्ल) का जो एक मास होता है वही चंद्रमास कहलाता है।
यह दो प्रकार का शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर अमावस्या को पूर्ण होने वाला ‘अमांत’ मास मुख्य चंद्रमास है।
कृष्ण प्रतिपदा से ‘पूर्णिमात’ पूरा होने वाला गौण चंद्रमास है।
यह तिथि की घट-बढ़ के अनुसार ही कई बार एक ही तिथि दो बार आ जाती है, तो कई बार किसी तिथि का लोप जान पडता है।
इसकी नकल हमें अंग्रेजी कलैंडर में 31, 30, 28, 29 तारीख के अनुसार दिखती है जो कोरी काॅपी पेस्ट है। बिना अकल की नकल।
नक्षत्रमास :—आकाश में स्थित तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं।
साधारणतः यह चंद्रमा के पथ से जुडे हैं। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र से ज्योतिषीय गणना करना वेदांग ज्योतिष का अंग है।
नक्षत्र हमारे आकाश मंडल के मील के पत्थरों की तरह हैं , जिससे आकाश की व्यापकता का पता चलता है।
वैसे नक्षत्र तो ८८ हैं किंतु चंद्र पथ पर २७ ही माने गए हैं।
चंद्रमा अश्विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है वह काल नक्षत्रमास कहलाता है।
यह लगभग २७ दिनों का होता है इसीलिए २७ दिनों का एक नक्षत्रमास कहलाता है।
नक्षत्रों के गृह स्वामी
केतु : अश्विन, मघा, मूल।
शुक्र : भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़।
रवि : कार्तिक, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़।
चंद्र : रोहिणी, हस्त, श्रवण।
मंगल : मॄगशिरा, चित्रा, श्रविष्ठा।
राहु : आद्रा, स्वाति, शतभिषा।
बृहस्पति : पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वभाद्रपदा।
शनि . पुष्य, अनुराधा, उत्तरभाद्रपदा।
बुध : अश्लेशा, ज्येष्ठा, रेवती।