देहरादून। आपदाकाल में मदद करने के बजाय आम आदमी पार्टी बेवजह धरने प्रदर्शन कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का प्रयास कर रही है।
उक्त बात लोक निर्माण मंत्री श्री सतपाल महाराज ने बुधवार को उनके सुभाष सुभाष रोड स्थित कार्यालय पर आम आदमी पार्टी द्वारा किये प्रदर्शन के जवाब में कही।
श्री महाराज ने कहा कि अतिवृष्टि की वजह से अत्यधिक पानी आने के कारण रानीपोखरी स्थित जाखन नदी पुल क्षतिग्रस्त होने के मामले में आम आदमी पार्टी द्वारा बेवजह हो हल्ला कर जनता को गुमराह करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस मामले में पहले ही उनके व मुख्यमंत्री द्वारा जांच के आदेश देने के साथ-साथ अधिकारियों को वैकल्पिक मार्ग खोलने के भी निर्देश दे दिए गए हैं।
लोनिवि मंत्री ने कहा कि हम पहले से ही सजग हैं, इसीलिए मॉनिटरिंग करवाई जा रहा है। जनपद पौड़ी में आयोजित बैठक में भी अधिकारियों को सभी रास्ते खोलने के निर्देश दिए जा चुके हैं।
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं पर किसी का नियंत्रण नहीं है। सरकार पूरी मुस्तैदी के साथ इन आपदाओं से निपटने का प्रयास कर रही है। जबकि आम आदमी पार्टी प्रदेश में आई आपदा के समय संकट की घड़ी में मदद करने के बजाय अपनी संकीर्ण मानसिकता का परिचय देते हुए राजनीतिक रोटियां सेंक रही है। ऐसा करके वह संकटकाल में मदद करने के बजाय प्रदेश की जनता को गुमराह करने का काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी अपने जिस दिल्ली मॉडल का पूरे देश में राग अलाप रही है उसकी धज्जियां उड़ चुकी हैं। इसलिए उसे यह भली-भांति समझ लेना चाहिए कि उत्तराखंड की जनता उसके आचरण और चरित्र से पूरी तरह से वाकिफ है। इन ओछे हथकंडों से उनकी यहां दाल गलने वाली नहीं है।
✍️*निशीथ सकलानी*
उत्तराखंड के स्वास्थ एवं उच्च शिक्षा मंत्री डा धनसिंह रावत के कृत्रिम बारिश संबंधित बयान का मजाक वही उड़ा रहे हैं, जिन्हें कृत्रिम रूप से बारीस या सूखा करने की तकनीक एप्लीकेट किये जाने का संज्ञान न हो। इसे क्लाउड सीडिंग तकनीक कहा जाता है, दुनियां के अनेक देश इस तकनीक का पहले से उपयोग कर रहे हैं। चीन ने वर्ष 2008 ओलंपिक खेलों के उद्घाटन के समय वहां बारिश की संभावनाओं को देखते हुए इस तकनीक का उपयोग किया। यहां तक कि भारत में भी यह तकनीक अनेक बार उपयोग की जा चुकी है। डॉ धनसिंह रावत ने तो उसके व्यापक उपयोग की संभावनाओं पर चर्चा की है। शब्दों के अपने हिसाब से प्रस्तुतिकरण करने से पहले उच्च शिक्षा मंत्री के भाव जानने आवश्यक हैं।
परम्परागत रूप से भी उत्तराखंड के डाल्या़ बारीस और ओलावृष्टि की डाल़ पलटते रहे हैं। पहले हमारे बचपन में बारीस निकालने देवताओं के पास जाते थे, और भीषण गर्मी और सूखे में तब निश्चित रूप से बारीस होती भी थी। हमें लुप्त हो रही इस तकनीक को पुनर्जीवित करने की कोशिश करनी चाहिए।
फ्री राशन के चक्कर में उत्तराखण्ड के लोग परम्परागत रूप से उगाये जानेवाले अपने ‘बारा नाजा’ सैकड़ों तरह के मेडीसिनल अनाजों से भी वंचित हो चुके हैं। लुप्तप्राय इन अनाजों को बचाने के लिए हेंवलघाटी टिहरी जनपद के बीज बचाओ आंदोलन के वयोवृद्ध विजय जड़धारी दशकों से प्रयासरत हैं। लेकिन उन्हें सरकारी स्तर पर भी सहयोग की आवश्यकता है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जब कोदा झंगोरा सोयाबीन प्रमोट किया और भांग की खेती को प्रयोग के तौर पर शुरू करने की बात की तब भी लोग व्यंग्य कस रहे थे, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के द्वारा भी भांग की खेती को एक प्रयोग के तौर शुरू करने पर भी फब्तियां कसी गयी। लेकिन हम समझते हैं कि भांग के मेडीसिनल प्रयोग होने चाहिए, इससे उत्तराखंड के बंजर खेतों को जंगली जानवरों की छति का दंस नहीं झेलना पड़ेगा और किसानों की आय बढ़ सकती है। उत्तराखंड को अपने प्रयोगधर्मी नेतृत्वों का मजाक बनाने की आदत भी त्यागनी होगी। -✍️हरीश मैखुरी
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