आर्यावर्त से लेकर भारत तक राष्ट्र विभाजन के कारक ?

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हमारे देश का संवैधानिक नाम भारत है। इसके साथ-साथ भारत के कई अन्य नाम भी हैं जिनमें हिंदुस्तान और इंडिया नाम भी शामिल है। परंतु भारत का प्राचीन नाम आर्यावर्त है।

हमारे भारत देश के जितने भी नाम है उन सभी नामों के पीछे अपनी अपनी एक कहानी है।
‘वृहद भारत’ का एक नक्शा, जो दुनिया के उन क्षेत्रों से मिलकर बन है जो प्राचीन भारत द्वारा सांस्कृतिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक रूप से प्रभावित रहे हैं।

‘सिंधु’ से बना ‘हिंदू’ हमारे भारतवर्ष में सिंधु नाम की एक नदी है। जो विभाजन के बाद और पाकिस्तान का हिस्सा है। इतिहास के अनुसार ईरानी व पारसियों की भाषा में ‘स’ शब्द का उच्चारण ‘ह’ हो जाता है। उदाहरण के तौर पर आप हफ्ता (ईरानी/फारसी/अरबी शब्द) और सप्ताह (हिंदी शब्द) को देखकर समझ सकते हैं।अब ईरानीयों और पारसियों को ‘स’ शब्द के उच्चारण में दिक्कत होती थी। अतः परिणाम स्वरुप वह सिंधु नदी को हिंदू नदी कहते थे। इसी सिंधु नदी के कारण भारत का नाम हिंदुस्तान पड़ा। परंतु इस बात में कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता है। यह केवल एक अनुमान मात्र है।

हिंद महासागर के नाम पर भारतवर्ष का नाम हिंदुस्तान पड़ा और हिमालय से लेकर हिंद महासागर के बीच रहने वाले लोगों को हिंदू कहा जाने लगा।

कई लोगों का मानना है कि ईरानी और अरबों ने भारतवर्ष के लोगों को हिंदू नाम दिया तथा भारतवर्ष को हिंदुस्तान का नाम दिया। परंतु यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि हिंद महासागर के नाम पर भारतवर्ष का नाम हिंदुस्तान पड़ा और हिमालय से लेकर हिंद महासागर के बीच रहने वाले लोगों को हिंदू कहा जाने लगा। क्योंकि यहां पर हिमालय और हिंद महासागर शुरू से ही इसी नाम से प्रचलित है।

  • ऋग्वेद में आर्यों के निवास स्थान को ‘सप्त सिंधु’ प्रदेश कहा गया है। ऋग्वेद के नदीसूक्त (10/75) में आर्यनिवास में प्रवाहित होने वाली नदियों का वर्णन मिलता है।
  • जिनमें यह नदियां प्रमुख है: कुभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती (गोमल), सिंधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा।
  • उपनिषद काल में आर्यावर्त की सीमा काशी तथा विदेह (वर्तमान में बिहार का एक जिला) जनपदों तक फैली थी।
  • मनुस्मृति में आर्यवर्त सीमा क्षेत्र का वर्णन पूर्वी समुद्र तट से लेकर पश्चिमी समुद्र तट तक और उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विंध्याचल तक मिलता है।
  • पतंजलि के अनुसार गंगा और यमुना के मध्य में स्थित संपूर्ण क्षेत्र आर्यावर्त है।
  • पुराणों के अनुसार संपूर्ण भारतवर्ष तथा भारत वर्ष से जुड़े अन्य भूभाग आर्यावर्त क्षेत्र में आते हैं।

कुछ इतिहासकार आर्यों को विदेशी मानते हैं। परंतु वे कभी यह नहीं बता पाते हैं कि यदि आर्य विदेशी हैं लेकिन वे ये नहीं बताते कि तब यूरोप आर्यावर्त का अंग था जिसे प्लक्ष द्वीप और केतुमाल कहा जाता था। (जबकि वेद पुराण पहले से बताते आये हैं और अब तो विज्ञान विज्ञान ने भी मान लिया कि मानव सभ्यता का आरंभिक विकास हिमालय की तलहटी में हुआ, और अंतिम सभ्यता भी वहीं बचेगी, जिसे कलाप ग्राम कहा जाता है) लेकिन खुद के धर्म को सही साबित करने के लिए इन्हें दूसरे के धर्म को गलत साबित करना होता है, इसी के फलस्वरूप इन्होंने समाज में इन सभी भ्रांतियों को फैलाया। लेकिन सच्चाई कभी न कभी सामने आ ही जाती है।

आर्य और द्रविड़:

कई स्थानों पर आर्य और द्रविड़ पर विवाद उत्पन्न होता है। परंतु उत्तर एवं दक्षिण भारतीय एक ही पूर्वजों की संताने हैं। हमारे संस्कृति एवं समग्रता को तोड़ने हेतु कुछ इतिहासकारों ने हमारे सनातन संस्कृति को ही बदल कर रख दिया। अमेरिका के हार्वर्ड में विशेषज्ञों और भारत के विश्लेषकों ने भारत की प्राचीन जनसंख्या के जीनों के अध्ययन के पश्चात यह पाया कि संपूर्ण भारतीयों के जिनमें एक प्रकार का अनुवांशिक संबंध है। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि आर्य एवं द्रविड़ दोनों अलग अलग नहीं है, यह दोनों एक ही है।

इससे संबंधित एक शोध में सीसीएमबी अर्थात सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मोलेक्यूलर बायोलॉजी (कोशिका और आणविक जीवविज्ञान केंद्र) के पूर्व निदेशक और इस अध्ययन के सह-लेखक लालजी सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि हमारे शोध में जो नतीजे मिले हैं उसके बाद इतिहास को पुनः लिखने की आवश्यकता पड़ सकती है। उन्होंने बतलाया कि उत्तर और दक्षिण भारतीयों के बीच कोई अंतर नहीं रहा है।
वर्तमान भारतीय जनसंख्या वास्तव में प्राचीनकालीन उत्तरी एवं दक्षिणी भारत का मिश्रण है। ऐसा हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड एमआईटी तथा सीसीएमबी के विशेषज्ञों द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार पता चला। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि भारतीयों में जो अनुवांशिक बीमारियां होती है वैसी बीमारियां दुनिया के अन्य व्यक्तियों से अलग होती है।

आर्यावर्त से लेकर भारत तक

हमारे देश का संवैधानिक नाम भारत है। इसके साथ-साथ भारत के कई अन्य नाम भी हैं जिनमें हिंदुस्तान और इंडिया नाम भी शामिल है। परंतु भारत का प्राचीन नाम आर्यावर्त है। विडम्बना देखिये हमें जब डार्विन बताते हैं कि मनुष्य बंदर के वंशज हैं तो खुश होते हैं लेकिन हमारे वेद विज्ञान और १९ अरब साल पुराने धर्म ग्रंथ बताते हैं कि हम सब ऋषि मुनियों के वंशज हैं तो तुरन्त कुछ तत्व मनुवादी कहने लगेंगे। वस्तुतः भगवान मनु सतयुग के आदि पुरुष रहे जिन्होंने पहलीबार सामाजिक और राज कजअ का नुशासन प्रतिष्ठित किया। हमारे भारत का संविधान उस समग्र अनुशासन का एक छोटा सा पैराग्राफ है। ठीक उसी तरह भारतवर्ष की एकाकार संस्कृति जब जब खंडित हुई देश टूटता चला गया गो भक्षियों की आसुरी शक्तियों का प्रभुत्व बढ़ता रहा। इसलिए पुन: भारत की पुनर्प्रतिष्ठा आवश्यक है। (साभार)
आर्यावर्त पर समूर्ण जानकारी आप इस पोस्ट के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। https://bit.ly/aryavart