मां की गोद से गुलदार ने तीन वर्षीय बालक को छीन कर मार डाला, ऐसी खबरें पर्वतीय क्षेत्र के लिए मानव जनित संकट हैं❗

हरीश पुजारी जिला एवं सत्र न्यायालय चमोली गोपेश्वर (उत्तराखंड) में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं, वे उच्च न्यायालय नैनीताल में स्टैंडिंग काउंसिल भी रहे हैं, तथा बहुगुणा विचार मंच के राष्ट्रीय संयोजक हैं।  और समय समय पर उतराखंड, विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों की ज्वलंत समस्याओं पर न्यायिक दृृष्टि से लिखते रहे हैं। इस बार उन्होंने उत्तराखंड में हिंसक जंगली जानवरों द्वारा की जाने वाली मानवीय क्षति पर “बाघबटि” रिपोोर्ट के माध्यम से सरकार एवं नीति नियामकों का ध्यान आकर्षित करते हुए लिखा है कि आये दिन जंगली जानवरों द्वारा की जाने वाली मानव हत्या समस्या नहीं बल्कि दुनिया में अपनी तरह का मानव जनित संकट है और इस संकट के निदान हेतु व्यवहारिक सुझाव भी रखे हैं — संपादक 

बाग-बट्टी का खेल:

बचपन में बाघ-बट्टी का खेल देखा व खेला इसमें पत्थरों की छोटी-छोटी बट्टीयां बकरी बनायी जाती व एक अपेक्षाकृत बड़ा पत्थर बाघ बनाया जाता, ज्यों ज्यों खेल आगे बढ़ता बाघ बकरियों को खाता जाता था।
आज वही खेल हम पहाड़ में जीवंत (LIVE) देख रहे हैं।
हर रोज खबर आती है कि गुलदार ने बच्चे को मार डाला, बकरियां खा दी, अभी आज के अखबार में खबर है कि कुमाऊँ में बेरीनाग इलाके में रात को मां की गोद से गुलदार ने तीन वर्षीय बालक को छीन कर मार डाला, ह्रदय विदारक ऐसी खबरें पर्वतीय छेत्र में आम है, खबर पढ़ते हैं फिर दूसरे दिन दूसरी इसी प्रकार की खबर का इंतजार करते हैं। इसकी खबर आज आयी कि कर्णप्रयाग में पूड़ियानी गांव में भालू ने महिला को अधमरा कर दिया है।
इस विषय पर चर्चा होनी चाहिए कि हिंशक जंगली जानवरों के लिये सरकार अभ्यारण बनाती चली आ रही है जहां की उन्हें कोई खतरा नहीं, उनका कोई शिकार न कर सके। राजाजी नेशनल पार्क, जिम कार्बेट नेशनल पार्क समेत अनेक अभ्यारण उत्तराखंड व पूरे देश में हैं, जहां शेर, चीते, बाघ, गुलदार आराम से जीवन व्यापन कर रहे हैं, व दूसरी ओर हमारे छोटे-छोटे बच्चों,महिलाओं व पुरुष लगातार गांवों में इनके शिकार बनते जा रहे हैं।
वन्य जीव संरक्षण कानून के चलते इन बाघ, शेरों का शिकार करना गंभीर अपराध बनाया गया है, परन्तु यदि बाघ हमारा शिकार करे तो इस पर चर्चा क्यों नहीं।
हम अपनी जान को जोखिम में डालकर इन शेर, बाघों के संरक्षण कर रहे हैं, ताकि विश्व में शाबाशी मिले की उत्तराखंड में बाघों की संख्या में वृद्धि, भारत में बंगाल टाइगर दिखे, गुजरात में सफेद शेरनी ने तीन शावकों को जन्म दिया, परन्तु हमारा संरक्षण इन हिंसक जानवरों से कैसे हो। सरकार समाज, पर्यावरणविद चुप हैं। विदेशी पर्यटक पिछड़े देशों में आकर अपने बच्चों को शेर, चीता दिखायें परन्तु अपने देश में वे हिंसक जानवरों को पनपने ही नहीं देते, वहां इनका नामो निशान नहीं मिलता।
मैंने सुना है कि न्यूयॉर्क से नियाग्रा फॉल लगभग 700KM घने जंगल का रास्ता है ऐसा घना जंगल की सूर्य की रोशनी भी मुश्किल से दिखे, रास्तों पर हिरन दौड़ते-पड़ते नजर आते हैं, परन्तु पूरे जंगल में एक भी शेर, बाघ, चीता, भालू नहीं है। हिरनों की तादात इतनी बढ़ जाती है कि न्यू जर्सी इलाके में घरों तक बड़े-बड़े हिरन सुबह-शाम घुस जाते हैं, सरकार को हर 6 माह में इनको मारने का आदेश जारी करना पड़ता है, परन्तु वहां शेर, चीता क्यों नहीं है इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
वहाँ घरों में पालतू कुत्तों-बिल्लियों के नाखून निकाल दिये जाते हैं कुतों के गलों का ऑपरेशन तक कर दिया जाता है ताकि वे भौंक न सके, क्योंकि भौंकने से उन लोगों की शांति भंग हो जाते है।
और इन्हीं लोगों के लिये भारत, अफ्रीका में जंगल सफारी बनायी गयी है ताकि वे विदेश से यहां भ्रमण करें तो हम उन्हें बाघ, चीता, शेर दिखा सकें वह भी जंगलों में।
हम नहीं कहते कि उन्हें गोली मारकर समाप्त कर दो परन्तु हम यह कहते हैं कि ये जंगली जानवर हमें न मारे इसकी गारन्टी होनी चाहिए। बाघ-बकरी का खेल समाप्त होना चाहिये। बाघों(आदमखोर) से पहाड़ के लोगों विशेषकर बच्चों व महिलाओं को मुक्ति मिलनी ही चाहिये। (फोटो सौजन्य – गजेंद्र नौटियाल) – हरीश पुजारी