गैरसैंण केवल खूबसूरत स्थान नहीं बल्कि उत्तराखंडी जन भावनाओं की अभिव्यक्ति और विकास की चाबी है

 हरीश मैखुरी 

अनेक राजनीतिक दलों का स्थाई राजधानी गैरसैंण बनाने की पक्ष में मंतव्य अभी तक साफ नहीं है इस मुद्दे पर यदि सरसरी निगाह से देखा जाए तो कांग्रेस इस दिशा में धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है पूर्व में कांग्रेस के कार्यकाल में विजय बहुगुणा और सतपाल महाराज के प्रयास से गैरसैंण स्थाई राजधानी की दिशा में पहली बार गैरसैंण में सत्र आयोजित किया गया उसके बाद भराड़ीसैंण में राजधानी भवन की नींव रखी गई। हरीश रावत के मुख्यमंत्री काल में भी गैरसैंण में टेंटों पर सत्र आयोजित किए गए और गैरसैंण (भराड़ीसैंण) में स्थाई भवन तैयार किया गया। लेकिन इससे पहले  खंडूड़ी सरकार में स्थाई राजधानी की दिशा में कुछ काम नहीं हो पाया था और अबकी त्रिवेंद्र रावत सरकार ने गैरसैंण कन्नी काट ली है यहां तक कि सत्र कराने की दिशा में भी सरकार निष्क्रिय बनी हुई है। इसी को लेकर हरीश रावत ने अब गैरसैंण में 1 दिन का सांकेतिक उपवास उस दिन रखा जिस दिन देहरादून में उत्तराखंड का विधानसभा सत्र शुरू हुआ। उत्तराखंड क्रांति दल ने भी गैरसैंण के पक्ष में कई बार धरने प्रदर्शन किए, उत्तराखंड महिला मंच भी गैरसैण को स्थाई राजधानी बनाने के लिए अनेक बार जबरदस्त आंदोलन कर चुका है। इस बीच  चर्चा तो ये भी है कि उत्तराखंड के भारी-भरकम मंत्री सतपाल महाराज ने प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर उत्तराखंड को शीतकालीन पर्यटन डेस्टीनेशन के रूप में विकसित करने और उत्तराखंड की स्थाई राजधानी गैरसैण बनाए जाने के संदर्भ में चर्चा की है, और हो सकता है कि मोदी इस पर भी कुछ बड़ा निर्णय ले लें।
इससे लग रहा है कि गैरसैंण राजधानी बनाने की दिशा में सहमति बन सकती है। इतिस में देखें तो गैरसैंण इतनी खूबसूरत जगह है कि यह जगह भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को भी पसंद थी और वे तो यहां देश की राजधानी बनाने की की पहल कर रहे थे। यह उत्तराखंड का दुर्भाग्य ही है कि पर्वतीय राज्य होने के बावजूद इसकी नकली राजधानी देहरादून को उत्तराखंड पर थोपा गया है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने उत्तराखंड राज्य अवश्य बनाया लेकिन इसकी राजधानी का मसला लटकाकर उत्तराखंड के लोगों की भावनाओं का निरादर भी किया। अभी भी भारतीय जनता पार्टी के पास समय है और वह इस दो ढाई साल के कार्यकाल में स्थाई राजधानी की दिशा में कोई निर्णय ले तो इसका राजनीतिक लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है, क्योंकि आने वाले समय में स्थाई राजधानी का मुद्दा गहन राजनीतिक मुद्दा बनने वाला है। उत्तराखंड की लड़ाई जिन मूलभूत उद्देश्यों के लिए लड़ाई गई लड़ी गई थी वे मुद्दे आज भी बने हुए हैं और यह तब तक बने रहेंगे जब तक उत्तराखंड की स्थाई राजधानी गैरसैंण शिफ्ट नहीं हो जाती, क्योंकि गैरसैंण केवल एक स्थान नहीं बल्कि उत्तराखंड की भावनाओं की अभिव्यक्ति और उत्तराखंड के विकास की चाबी है। देर सबेर गैरसैैंण को उत्तराखंड की स्थाई राजधानी बनाना ही पड़ेगा और उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों की सातों विधायक सीटें भी परिसीमन में वापस बहाल करनी होंगी।
इधर उत्तराखंड क्रांति दल के केन्द्रीय मुख्य प्रवक्ता सतीश सेमवाल ने कहा कि नेता सदन और नेता प्रतिपक्ष ठंडे मौसम का बहाना बनाकर गैरसैण में बिधान सभा सत्र नहीं चलाना चाहते जिससे साफ भाजपा कांग्रेस गैरसैंण राजधानी के पक्ष में नहीं है उत्तराखंड क्रांति दल पूर्व अध्यक्ष त्रिवेंद्र सिंह पंवार के नेतृत्व मे 4 दिसम्बर से 5 दिसम्बर तक कार्यकर्ताओं के साथ भराडीसैण मे 24 घण्टे का उपवास कर गैरसैण राजधानी के सघर्ष को और मजबूत करेगा। 
     इधर गैरसैण उपवास में हरीश रावत के साथ पूर्व काबीना मंत्री राजेंद्र भंडारी सहित भारी संख्या में आम लोग और कांग्रेसी जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे।