सृष्टि की उत्पत्ति काल और वैदिक नव वर्ष का महात्म्य

 संकलन – हरीश मैखुरी

*” वैदिक नववर्ष, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रमी संवत् 2077 (25 मार्च, 2020)” की आप सभी को शुभकामनाएँ।*🌹…||Genesis of world and great significance of Vedic New Year *पञ्चाङ्ग–दर्शन*||….🌹

*श्रीशुभ वैक्रमीय सम्वत् २०७७ || शक-सम्वत् १९४२ || सौम्यायन् || प्रमादी नाम संवत्सर|| वसन्त ऋतु || चैत्र शुक्लपक्ष || चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अपराह्न ५:२६ || चान्द्रवासर || चैत्र सौर १२ प्रविष्ठ || तदनुसार २५ मार्च २०२० ई० || नक्षत्र पौष्ण (रेवती) || मीनस्थ चन्द्रमा || नव-संवत्सरारम्भ|| वासन्तीय नवरात्रारम्भ, घट-स्थापन||*📖 ✍
*चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेSहनि।*
*शुक्लपक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति।।*
📝 *भावार्थ*चैत्रमास के शुक्लपक्षकी प्रतिपदा तिथिसे *नवसंवत्सरका* आरम्भ होता है, यह अत्यन्त पवित्र तिथि है। इसी तिथिसे पितामह ब्रह्माने *सृष्टिनिर्माण* प्रारम्भ किया था। युगोंमें प्रथम *सत्ययुगका* प्रारम्भ भी इसी तिथिको हुआ था। इसी दिन सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्यने *शकोंपर* विजय प्राप्त की थी और उसे चिरस्थाई बनानेके लिए *विक्रम-संवत्* का प्रारम्भ किया था।
वैदिक साहित्य के अनुसार इसी दिन ‪1960853121 वर्ष पूर्व इस पृथिवी के तिब्बत – हिमालय क्षेत्र में युवावस्था में मनुष्यों की उत्पत्ति हुई, इस कारण यह मानव उत्पत्ति संवत् है।
मनुष्योत्पत्ति के दिन ही अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा नामक चार महर्षियों ने ब्रह्माण्ड में अनेक प्रकार के  Vibrations के रूप में व्याप्त वैदिक ऋचाओं (मंत्रों) को अपने योग बल से ग्रहण करके सृष्टि के रचयिता निराकार सर्वज्ञ ब्रह्म रूप चेतन तत्व की प्रेरणा से उनका अर्थ भी जाना, जो ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के रूप में सृष्टि में विख्यात हुआ। इन्हीं चार ऋषियों ने महर्षि ब्रह्मा (आद्य) को सर्वप्रथम चारों वेदों का ज्ञान दिया। इस कारण यह वेद संवत् भी है।
यह संवत् संसार के सभी धार्मिक पवित्र मानवों के लिए है-
*चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व :*
*1.:-इसी दिन 1,97,29,49,121 वर्ष पुर्व सूर्योदय के साथ ईश्वर ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की।इसलिए यह सृष्टि संवत है
*2:-प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है। वाल्मीकीय रामायण के अनुसार इसी दिन वेद-वेदांग-विज्ञान के महान् ज्ञाता मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम ने आततायी महाबली रावण का वध किया। ध्यातव्य है कि श्रीराम व रावण का अन्तिम युद्ध चैत्र की अमावस्या को प्रारम्भ हुआ और दो दिन चला। प्रचलित दशहरे (विजयादशमी) का रावण वध से कोई सम्बन्ध नहीं है।
महाभारत के अनुसार इसी दिन धर्मराज युधिष्ठिर की अधर्म की प्रतिमूर्ति दुर्योधन पर विजय हुई। दुर्योधन की मृत्यु के समय योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण जी ने कहा था- ‘प्राप्तं कलियुगं विद्धि’, इस कारण यह दिन किसी भी युग का प्रारम्भिक दिन भी होने से युग संवत् भी है। युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन 5121 वर्ष पूर्व हुआ था इसलिए यह युधिष्ठिर संवत है ।
3:-समस्त भारतीयों के लिए यह दिन इस कारण महनीय है क्योंकि इसी भारत भूमि पर मनुष्य, वेद, भगवान् श्रीराम, धर्मराज युधिष्ठिर सभी उत्पन्न हुए तथा इसी का सम्बन्ध सम्राट् विक्रमादित्य से भी है, जिनके नाम से इस दिन को विक्रम संवत् का प्रारम्भ भी मानते हैं। यह 2077 वां वि.सं. है।  सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।
*4:-विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने 1942 वर्ष पूर्व हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना था इसलिये यह शक संवत है
5:-146 वर्ष पूर्व स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन को आर्य समाज की स्थापना दिवस के रूप में चुना।*आर्य समाज वेद प्रचार का महान कार्य करने वाला संगठन है।
हिमाद्रि ज्योतिष का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में एक श्लोक आता है
*‘चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि।*
*शुक्लपक्षे समग्रन्तु, तदा सूर्योदये सति।।’* इसका अर्थ है कि चैत्र शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय के समय ब्रह्मा ने जगत की रचना की। प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य भास्करार्चा रचित ‘‘सिद्धान्त शिरोमणि” का एक श्लोक *‘
*लंकानगर्यामुदयाच्च भानोस्तस्यैव वारं प्रथमं बभूव।*
*मघोः सितादेर्दिनमासवर्षयुगादिकानां युगपत्प्रवृत्तिः।।’* है। इसका भावार्थ है कि लंका नगरी में सूर्य के उदय होने पर उसी सूर्य के वार अर्थात् आदित्यवार को चैत्र मास, शुक्ल पक्ष के आरम्भ में दिन, मास, वर्ष व युग आदि (अर्थात् सृष्टि संवत्सर) एक साथ आरम्भ हुए।
*वैदिक नववर्ष का प्राकृतिक महत्व :*
*1.* वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
*2.* फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।