मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह के आधार भूत सुधार जिनके उत्तराखंड के लिए दूरगामी सुफल होंगे

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह की कार्यशैली दिखावे और प्रोपेगैंडा से हटकर है, त्रिवेंद्र सिंह के दिमाग में रात दिन उत्तराखंड का विकास और उत्तराखंड के लिए योजनाएं दौड़ती हैं। मोटर सड़कें पेयजल, डाक्टर ग्रामीण शिक्षा जैसे रूटीन योजनाओं पर तो निरन्तर काम चल ही रहे हैं  वर्षों से आधे अधूरे पड़े कार्यो पर भी त्रिवेंद्र सिंह ने तेजी से काम किया, जो काम बजट के अभाव में सालों से लटके पड़े थे उन्हें पूरा करा दिया, यह एक मौलिक सुधार है। देहरादून के फ्लाईओवर हों सिमली का बेस अस्पताल हो दून मेडिकल कॉलेज का प्रशासनिक और ओपीडी भवन एम्स में हैली पैड हो त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पूरे करवाये।

२४ सालों से लटका टिहरी प्रताप नगर चांटी डोबरा पुल हो २० सालों से रूके हरिद्वार – देहरादून रोड़ और भानियां वाला के फ्लाईओवर, आसन बैराज परियोजना हो लच्छीवाला बाई पास के साथ ही पहाड़ी क्षेत्र में सैकड़ों आधे अधूरे काम त्रिवेंद्र सिंह ने बजट आवंटित कर समय रहते पूरा करा रहे हैं। मसूरी जाम से मुक्ति के लिए रोपवे,  देहरादून ऋषिकेश हरिद्वार मोनो ट्रेन, योजना, देहरादून स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट, ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन, चार धाम मोटर मार्ग योजना, गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी, चारधाम देवस्थानम बोर्ड और कोरोना काल में राज्य के लोगों को चिकित्सा सुविधा और खाद्यान्न उपलब्ध कराना उनकी प्राथमिकताओं में है। वन्य पशुओं से किसानों की फसलों की रक्षा भी अब त्रिवेंद्र सिंह की प्राथमिकता में आ गया है, समझा जा रहा है कि निकट भविष्य में इसके अच्छे परिणाम गांव वासियों को देखने को मिलेंगे। अल्मोड़ा जनपद में अच्छे परिणाम आने के बाद आजिविका परियोजना में भी अब अन्य कार्यों को छोड़कर गांवों में जालीदार तार की बाड़ करना मुख्य कार्य हो सकता है। बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए त्रिवेंद्र सिंह सरकार ने होमस्टे और छोटे पावर प्रोजेक्ट की योजना शुरू की है। चमोली के घेस जैसे पिछड़े इलाके में भी त्रिवेंद्र सिंह सरकार ने ना केवल बिजली पहुंचाई बल्कि व्यावसायिक खेती-बाड़ी के लिए वहां उत्तम माहौल बनाया है। लेकिन इन सबसे हटकर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जो बड़ा काम किया वह था सचिवालय और विधानसभा में बाहरी दलालों गुंडों ठेकेदारों के कॉकस को धीरे धीरे निष्क्रिय करना और इस बात में कोई संदेह नहीं रहा कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की मेहनत रंग लाई आज विधानसभा और सचिवालय में दलालों की घुसपैठ लगभग बंद और उनका धंधा पूरी तरह से ठप हो गया है। इसलिए त्रिवेंद्र सिंह रावत का राज इन्हें याद रहेगा, जो सत्ता में न होते हुए भी सत्ता अपनी उंगलियों पर नचाता रहता था। त्रिवेंद्र राज में भाव नहीं मिलने से सत्ता के गलियारों में वर्षों से धंधा जमाने वाले अब बुरी तरह हताश हैं। यही कारण है कि उन्होंने सोशल एवं इलैक्ट्रानिक मीडिया के एक धड़े को साथ लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत को नाॅन परफार्मिंग मुख्यमंत्री दिखाने में कसर नहीं छोड़ी।

वर्ष २०००में राज्य गठन के बाद इस राज्य में खनन, शराब, ट्रांसफर-पोस्टिंग, टेंडर व सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द करने वाले माफियाओं का धंधा खूब फला फूला, सचिवालय व मंत्रालयों में ऐसे लोग मोटी फाइलें लेकर माल समेटा करते थे। कुछ हाई प्रोफाइल दलाल तो बड़े नेताओं, मंत्रियों व बड़े अफसरों के रिटायरिंग रूम में बेखौफ पड़े रहते थे। वर्ष 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में आयी त्रिवेंद्र सरकार भी ऐसे लोगों ने सरकार में दखल के लिए पूरी ताकत झोंकी। माफिया यहां के खनन, शराब, टेंडर और ट्रांसफर पोस्टिंग जैसे कामों को पहले ही उद्योग का रूप दे चुका था, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शपथ लेते ही दलालों की कमर तोड़ने का पूरा मन बना लिया था। इसलिए उन्होंने सरकार बनाते ही कुछ ऐसे निर्णय लिया जिसने दलालों व माफिया के कैंप में खलबली मच गई। त्रिवेंद्र रावत ने कुर्सी संभालते ही ट्रांसफर एक्ट बनाया। इससे ट्रांसफर-पोस्टिंग में होने वाला न्यारा-वारा रुक गया। एक्ट में जरूरतमंद कार्मिकों के लिए धारा-27 का प्रावधान रखा, ताकि बीमार व अन्य कोई पारिवारिक मजबूरी वाले कार्मिकों को राहत देने का रास्ता बना रहे, लेकिन पैसा लेकर मनमाफिक जगहों दिलाने के लिए सत्ता के गलियारों में घूमने वाले दलालों को करारा झटका लगा। लेकिन ट्रांसफर एक्ट आने के बाद इन ट्रांसफर दलालों की कमर टूट गयी। त्रिवेंद्र सरकार ने टेंडर की प्रक्रिया को भी मैनुअल से हटा कर ई-टेंडरिंग कर दी। जिन दलालों ने टेंडर दिलवाने के काम के ठेके ले रखे थे वेभीभी बेनकाब हो गये। खनन में हर साल अरबों-खरबों का कारोबार होता है। माफिया और दलाल इस पूरे खनन के कारोबार पर एकाधिकार करके सरकारी खजाने को तो चूना लगा रहे थे आम आदमी को इस क्षेत्र में नहीं घुसने दे रहे थे। खनन पट्टों का अलाटमेंट शासन स्तर से होने के कारण दलालों के यह आसान होता था कि पट्टे किसे दिलाये जाएं। त्रिवेंद्र सिंह सरकार में खनन के पट्टे जिलाधिकारी के स्तर से आवंटित होते हैं। जिलाधिकारी को इसमें होने वाली हर तरह की गड़बड़ी के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराते हुए पट्टे निरस्त करने का अधिकार भी सरकार ने दे दिया है। रेरा के अन्तर्गत भू-माफियाओं पर नकेल कसते हुए त्रिवेंद्र सरकार ने सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द करने वाले दलालों के कारनामों पर अंकुश लगाते हुए जमीनों की अवैध खरीद-फरोख्त का धंधा ठप्प कर दिया। इसके अलावा जनहित के नाम पर कब्जाई गई हजारों एकड़ जमीन सरकार में निहित करवाई। देहरादून में अंगेलिया सोसाइटी की ११०० एकड़ जमीन सहित डोईवाला में सैकड़ों एकड़ जमीन और ऊधमसिंह नगर में पराग फार्म की जमीन सहित कई अन्य अरबों-खरबों की जमीनों को राज्य सरकार में निहित करवा दिया। त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस सफाई अभियान से मुख्यमंत्री कार्यालय और मंत्रालयों को भी आज एक हद तक दलाली से मुक्ति मिल चुकी है। अब न तो कोई आईएएस पैसा देकर डीएम बनता है और न ही कोई आईपीएस कप्तान बनने के लिए पैसा देता है। वर्ना कई दलाल सीएम कार्यालय को अपनी उंगलियों पर नचाना चाहते थे और खनन तथा आबकारी नीति को अपने हिसाब से बनवाने से लेकर अनेक विभागों में अफसरों की पोस्टिंग, पावर प्रोजेक्ट आवंटन व सरकार के बड़े ठेकों को दिलाने में भी हस्तक्षेप करतेे थे, त्रिवेंद्र रावत ने इन सबके मंसूबों पर पानी फेर दिया। अत्यंत सरल और सौम्या प्रकृति के त्रिवेंद्र सिंह रावत इतने कठोर फैसले लेते होंगे कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। एक सबसे बड़ी खासियत यह है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत सामान्य तौर पर नेताओं की तरह किसी काम के लिए केवल हां हांनहीं बोलते बल्कि उन्होंने कोई जिम्मा लिया तो वह निश्चित रूप से ही उसे पूरा करते हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत निजी जीवन में स्वयं भी धीर गंभीर प्रवृत्ति के मितभाषी व्यक्ति हैं लेकिन निर्णय लेने की उनकी क्षमता अद्भुत है यही कारण है कि शुरू शुरू में जो ब्यूरोक्रेट्स त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपने रिमोट से चलाना चाह रहे थे उन्होंने अपने प्रभाव में लेने की कोशिश भी की लेकिन अब वे भी समझ गए हैं कि जनतंत्र में सरकार सर्वोपरि होती है।