जापान की राजधानी टोक्यो के रेनकोजी मंदिर में रखी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियों को भारत लाना चाहती हैं उनकी बेटी

नेता जी सुभाष जी की पुत्री

अनिता बोस फाफ (अंग्रेजी: Anita Bose Pfaff, जन्म: नवम्बर 1942 वियेना) एक जर्मन अर्थशास्त्री हैं। वह ऑग्सबर्ग यूनीवर्सिटी में प्रोफेसर रह चुकी हैं। इस समय वह अपने पति प्रो मार्टिन फाफ के साथ उनकी जर्मन सोशल डिमोक्रेटिक पार्टी में सक्रिय रहती हैं।

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी नेता सुभाष चन्द्र बोस और उनकी ऑस्ट्रियन पत्नी एमिली शेंकल की एकमात्र सन्तान हैं। जब उनके पिता सन् 1934 में वियेना अपना इलाज कराने गये थे उस समय उन्हें वहाँ काफी समय तक ठहरना पड़ा। उन दिनों एक किताब लिखने के लिये उन्हें अंग्रेजी जानने वाली एक महिला सचिव की जरूरत हुई। इसके लिये उन्होंने जून 1934 में एमिली शैंकल को अपना सचिव नियुक्त कर लिया।

बोस और एमिली एक दूसरे के नजदीक आ गये और उन्होंने आपस में शादी कर ली। उनसे अनीता का जन्म हुआ। अगस्त 1945 में जब बोस का विमान दुर्घटना में देहान्त हुआ उस समय अनीता बहुत छोटी बच्ची थी। दुर्घटना से पूर्व सुभाष अपनी पुत्री को देख आये थे। अनिता बोस नाम उन्होंने ही दिया था, परन्तु सुभाष अनिता की परवरिश न कर सके इस कारण वियेना में लोग उसे अनिता शेंकल फाफ के नाम से जानने लगे।

संक्षिप्त जीवनी

अनिता का जन्म नवम्बर 1942 में ऑस्ट्रियन महिला एमिली शैंकल और भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के नेता सुभाष चन्द्र बोस की पुत्री के रूप में वियेना में हुआ था। अनिता के पिता भारतीय राजनीति में दुर्घटना के शिकार हो गये जिस कारण उसकी पूरी देखरेख माँ एमिली शैंकल की छत्रछाया में हुई। माँ के साथ रहने के कारण वियेना में लोग उसे अनिता शेंकल फाफ (अं: Anita Schenkl Pfaff) के नाम से जानने लगे।

अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद अनिता ने प्रोफेसर मार्टिन फाफ के साथ विवाह कर लिया। उनके पति बुण्डेस्टैग जर्मनी की संसद के सदस्य थे और जर्मन सोशल डिमोक्रेटिक पार्टी से सम्बन्ध रखते थे। उन दोनों के एक बेटा व दो बेटियाँ कुल तीन बच्चे हैं। बेटे का नाम है पीटर अरुण और बेटियों का थॉमस कृष्णा व माया कैरीना। अनिता अपने पति की जर्मन सोशल डिमोक्रेटिक पार्टी में सहयोग करती रहती हैं।
अर्थशास्त्र की प्रोफेसर अनीता बोस वर्षों से अपने पिता सुभाष चंद्र बोस की अस्थियां भारत लाने इच्छा पाले हैं। बता दें कि नेताजी की अस्थियां जापान की राजधानी टोक्यो के रेनकोजी मंदिर में सहेज कर रखी गई हैं। (साभार) सौजन्य – सच्चिदानंद सेमवाल