स्वामी विवेकानंद द्वारा 11 सितम्बर 1893 को शिकागो में शून्य पर दिया गया ऐतिहासिक भाषण

Swami Vivekananda’s historic speech delivered in Chicago on 11 September 189311 सितम्बर 1893 #विवेकानंद जी ने आज ही के दिन दिया था #ऐतिहासिक #भाषण … #शिकागो में #शून्य पर बोलने वाले नरेंद्र

देश के युवाओं को आजाद भारत का सपना दिखाने वाले महापुरुष विवेकानन्द का 4 जुलाई 1902 को निधन हुआ था। विवेकानंद के जीवन से जुड़ी तमाम कहानियां आज भी देशभर के कई विद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं। 12 जनवरी, 1863 को एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्म लेने वाले विवेकानंद का पूरा जीवन देश सेवा और भारतीय संस्कृति के प्रसार में समर्पित था। #वेदांत के #विख्यात और एक प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु विवेकानंद ने #वर्ष1893 में #शिकागो में आयोजित #विश्व #धर्म #लेखमहासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व कर पूरी दुनिया में भारत का डंका बजा दिया था
अमेरिका जाने से पहले नरेंद्र नाथ मद्रास में थे। तब उन्होंने अखबारों में शिकागो में हो रही धर्म संसद के बारे में सुना था। कहते हैं नरेंद्रनाथ को उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने सपने में आकर धर्म संसद में जाने का संदेश दिया था लेकिन नरेंद्र नाथ के पास पश्चिम देशों में जाने के लिए पैसे नहीं थे। नरेंद्र नाथ ने खेत्री के महाराज से संपर्क किया और उन्हीं के सुझाव पर अपना नाम स्वामी विवेकानंद रख लिया। महाराजा खेत्री की मदद से ही 31 मई 1893 को स्वामी विवेकानंद, चीन-जापान और कनाडा होते हुए अमेरिका की यात्रा पर निकल पड़े।
धर्म संसद में बुलाए नहीं गए थे विवेकानंद
30 जुलाई 1893 को स्वामी विवेकानंद अमेरिका के शिकागो पहुंचे, लेकिन वो ये जानकर परेशान हो गए कि सिर्फ जानी-मानी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को ही विश्व धर्म संसद में बोलने का मौका मिलेगा। विवेकानंद ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन हेनरी राइट से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें हार्वर्ड में भाषण देने के लिए बुलाया। राइट विवेकानंद से बहुत प्रभावित थे, जब उन्होंने जाना कि धर्म संसद के लिए स्वामी जी के पास किसी संस्था का परिचय नहीं है, तब उन्होंने कहा कि स्वामी जी, आपसे आपके परिचय के लिए पूछना ऐसा ही है जैसे सूरज से पूछा जाए कि स्वर्ग में वो किस अधिकार से चमक रहा है। इसके बाद प्रोफेसर राइट ने धर्म संसद के चेयरमैन को चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने लिखा था कि ये व्यक्ति हमारे सभी प्रोफेसरों के ज्ञान से भी ज्यादा ज्ञानी है। स्वामी विवेकानंद धर्मसंसद में किसी संस्था के नहीं बल्कि भारत के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल किए गए।

11 सितंबर 1893 को शिकागो में धर्मसंसद शुरू हुई। स्वामी विवेकानंद का नाम पुकारा गया। सकुचाते हुए स्वामी विवेकानंद मंच पर पहुंचे। वो घबराए हुए थे। माथे पर आए पसीने को उन्होंने पोंछा। लोगों को लगा कि भारत से आया ये नौजवान संन्यासी कुछ बोल नहीं पाएगा। स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु का ध्यान किया और इसके बाद उनके मुंह से जो बोल निकले, उसे धर्म संसद सुनती रह गई। स्वामी विवेकानंद के पहले शब्द थे #अमेरिका के #भाइयो और #बहनो। ये सुनते ही वहां करीब #दो #मिनट तक #तालियों की गड़गड़ाहट गूंजती रही। इसके बाद स्वामी विवेकानंद ने ज्ञान से भरा ऐसा ओजस्वी भाषण दिया जो इतिहास बन गया।स्वामी विवेकानंद ने अपने ऐतिहासिक शिकागो भाषण में सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार शून्य की व्याख्या करते हुए कहा कि अनंत कोटी ब्रम्हांडों की उत्पत्ति नीलमणि के चिंतन मात्र से होती है जिसे विज्ञान की शब्दावली में ब्लैकहोल अर्थात शून्य कहा जाता है और इन इन सभी अनंत कोटी ब्रम्हांडों का लय भी शून्य में ही हो जाता है। अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक को सनातन धर्म ग्रंथों में महाविष्णु कह गया है वे नीलवर्ण ही अनंत कोटी ब्रम्हांड के उत्पत्ति के कारक हैं जिनके ब्रह्मांड का नाद ॐ है जिसकी लय पर ब्रह्माड गति करता है यह ॐ ब्रह्म का
नाद है, इसीलिए हम नादब्रह्म के उपासक हैं उन्होंने कहा कि जिस सृष्टि को हम देखते हैं यह स्त्रीलिंग पुलिंग और अभय लिंग के परिमाण में व्याप्त है स्त्रीलिंग सृष्टि का पालक और पुलिंग सृष्टि का कारक है जबकि उभय लिंग संचारण करता है। पूरे ब्रह्मांड का आनंदमय कोश भी वहीं नीले रंग का प्रकाश बिंदु है जब वहां से अनंत कोटि ब्रह्मांड की उत्पत्ति होती है तब हम उसे महा विस्फोट कहते हैं और जब उसमें अनंत कोटी ब्रम्हांडों का लय होता है तब हम उसे महा निपात कहते हैं इन ब्रह्मणों की गति विपत्ति व्युत्पत्ति समय काल परिस्थिति भी ‘कैलकुलेटेड’ पूर्व सुनिश्चित और ‘ऐस्टीमेटेड’ परिमाण तय है। जिस धरा धाम पर हम रहते हैं सृष्टि के लाखों लाख पिंडों में यही एक पिंड है जिसमें नीलकांत की सुंदर प्रकृति का संचरण जिसमें होता है। इसलिए हमें इस धरा धाम का सम्मान करना चाहिए इसकी प्रकृति का संरक्षण मनुष्य का पहला कर्तव्य है। सुबह उठकर इस धरती को माता मान कर प्रणाम करना चाहिए और इसकी धूल का तिलक माथे पर लगाना चाहिए। इस धरती के सभी प्राणी इस धरती के आवश्यक अंग हैं यदि एक भी कड़ी टूटेगी तो उसका नुकसान भी अंततोगत्वा हम मनुष्यों को ही भुगतना पड़ेगा। इसलिए चींटी से लेकर हाथी तक और मिट्टी से लेकर वनस्पति तक धरती के सभी प्राणियों को हमें प्यार करना चाहिए और उनके साथ सद्व्यवहार करना चाहिए। युद्धों ने इस धरती का बहुत नुकसान किया है इस धरती की सुरक्षा के लिए शांति सबसे बड़ा हथियार है जिससे हम भी बचेंगे और धरती भी बची रहेगी। मनुष्य यदि सभ्य है तो सभ्यता का एक ही पैमाना है कि वह कितना संस्कारित कितना संयमी कितना अहिंसक और कितना परम कल्याणकारी है। उनके इस ऐतिहासिक भाषण के बाद वहां का सभागार करीब 26 मिनट तक तालियों से गूंजता रहा।  
स्वामी विवेकानंद के भाषण में उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का दिया गया वैदिक दर्शन का ज्ञान था। इस भाषण में दुनिया को शांति से जीने का संदेश छुपा था। इसी भाषण में वो संदेश भी है जिसमें स्वामी विवेकानंद ने कट्टरता और हिंसा की जमकर आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि सांप्रदायिकता कट्टरता और उसी की भयानक उपज धर्मांधता ने लंबे वक्त से इस सुंदर धरती को जकड़ रखा है। ऐसे लोगों ने धरती को हिंसा से भर दिया है। कितनी ही बार उसे मानव रक्त से रंग दिया, सभ्यताओं को तबाह किया और सभी देशों को निराशा के गर्त में धकेल दिया।

इसके बाद जितने दिन भी धर्म संसद चली स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म, और भारत के बारे में दुनिया को वो ज्ञान दिया जिसने भारत की नई छवि बना दी। इस धर्म संसद के बाद स्वामी विवेकानंद विश्व प्रसिद्ध हस्ती बन गए। #हाथ #बांधे हुआ उनका #पोज #शिकागो #पोज के नाम से जाना जाने लगा। स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक भाषण के बाद इसे थॉमस हैरीसन नाम के फोटोग्राफर ने खींचा था। हैरीसन ने स्वामी जी की आठ तस्वीरें ली थीं जिनमें से पांच पर स्वामी जी ने अपने हस्ताक्षर भी किए थे। अगले तीन साल तक स्वामी विवेकानंद अमेरिका में और लंदन में वेदांत की शिक्षाओं का प्रसार करते रहे।
15 जनवरी 1897 को विवेकानंद अमेरिका से श्रीलंका पहुंचे। उनका जोरदार स्वागत हुआ। इसके बाद वो रामेश्वरम से रेल के रास्ते आगे बढ़े। रास्ते में लोग रेल रोककर उनका भाषण सुनने की जिद करते थे। विवेकानंद विदेशों में भारत के आध्यात्मिक ज्ञान की बात करते थे लेकिन भारत में वो विकास की बात करते थे। गरीबी, जाति व्यवस्था और साम्राज्यबाद को उखाड़ फेंकने की।