भारत में पढ़ाया जाता इतिहास के नाम पर झूठ का पुलिंदा

डाॅ0 हरीश मैखुरी

धर्म द्रोही बामपंथियों  की मानसिकता धर्म के आधार पर भारत को नीचा दिखाने रही है, इस के लिए वे सदैव मुगल आक्रांताओं के इस्लामीकरण के साथ गलबहियां डाले खडे़ रहते हैं। और भ्रामक बातों का इतिहास रचते रहते हैं।
सत्य यह है कि सातवीं शदी से पहले भारत के 5 लाख गुरुकुल और 8 हजार  नालंदा व तक्षशिला जैसे आवासीय विश्व विद्यालय 100 % साईन्स (शास्त्र) पढा़ते,  तब भारत में 100% साक्षरता थी, विदेशी भी पढ़ने आते थे। वैदिक काल से ही इन गुरु कुलों की व्यवस्था मंदिरों से चलती,  इसलिए मंदिरों में अन्न धन दान देने की परम्परा रही है। त्रेता युग में राम वशिष्ठ विश्वामित्र तथा द्वापर में कृष्ण संदीपनी के गुरुकुल में विद्या गृहण करने गये।  व्यवसाय के आधार पर वर्ण व्यवस्था की स्वतंत्रता थी।  शिक्षण में सब समान थे,  नारी बालक और संत के वर्ण नहीं होते थे । स्त्री गाय ब्राह्मण और बालक जीवन के मूल होने के कारण अबध्य थे। आडंबर पाखंड और जाति व्यवस्था नहीं थी। सत्य और सरलता को महान गुण माना जाता और धन पशुओं का स्थान नहीं था। अफगानिस्तान,  पाकिस्तान,  बांग्लादेश, म्यांमार, लंका, नेपाल, भूटान, तिब्बत, जावा सुमात्रा ये सब अखंड भारत के अभिन्न अंग थे। सातवीं शताब्दी में मुगल आक्रांताओं आने बाद चंगेज खां से लेकर गौरी गजनी अकबर बाबर औरंगजेब जैसे मुस्लिम, डच, व अंग्रेज आक्रांताओं व लुटेरों को महान बताने वाला भारत में पढ़ाया जाने वाला वर्तमान इतिहास रोमिला थापर जैसे अनेक बामपंथियों की देन है। दुनियां में इतिहास बताकर ऐसा झूठ का पुलिंदा कहीं नहीं पढाया जाता है, सातवीं शदी के बाद अब जाकर भारत में फिर से भारतीय संस्कृति व विधान की उम्मीद जग रही है,  हमारी नयी पीढ़ी में देश का सही इतिहास लिखने वाले भी अवश्य पैदा होंगे।