नकली घी कैसे बनता है? आप कौन सा घी खाते हैं?

 
चमड़ा सिटी के नाम से मशहूर कानपुर में जाजमऊ से गंगा जी के किनारे 10 -12 किलोमीटर के दायरे में आप घूमने जाओ तो आपको नाक बंद करनी पड़ेगी
यहाँ गंगा जी के किनारे सैंकड़ों की संख्या भट्टियां धधक रही होती हैं। इन भट्टियों में जानवरों (गाय, बैल, कुत्ता, सुअर आदि) को काटने के बाद निकली चर्बी को गलाया जाता है। इस चर्बी से मुख्यतः 3 चीजें बनती हैं। 
1) – एनामल पेंट ( जिसे  हम अपने घरों की दीवारों पर लगाते हैं )
2) – ग्लू ( फेविकोल इत्यादि जिन्हें हम कागज, लकड़ी जोड़ने के काम में लेते हैं )
3) – सबसे महत्वपूर्ण चीज बनती है वो है शुध्द देशी घी जी हाँ ” शुध्द देशी घी”
यही देशी घी यहाँ थोक मंडियों में 250 से 450 रूपए किलो में भरपूर बिकता है।
इसे बोलचाल की भाषा में #पूजा_वाला_घी बोला जाता है। इसका सबसे ज़्यादा प्रयोग #भंडारे कराने वाले करते हैं। लोग 15 किलो वाला टीन खरीद कर मंदिरों में दान करके पूण्य कमा रहे हैं।
     
इस “शुध्द देशी घी” को आप बिलकुल नही पहचान सकते। बढ़िया रवेदार दिखने वाला ये ज़हर सुगंध में भी एसेंस की मदद से बेजोड़ होता है।
औधोगिक क्षेत्र में कोने कोने में फैली वनस्पति घी बनाने वाली फैक्टरियां भी इस ज़हर को बहुतायत में खरीदती हैं। 
अब आप स्वयं सोच लो आप जो वनस्पति घी, रिफाईण्ड खाते हो उस में  क्या मिलता होगा।
आप सब को डराना उद्देश्य नहीं है लेकिन सच्चाई भी यही है कि अधिकांशतया बाजार में देशी घी के नाम पर यही बेचा जा रहा है।