मानव संसाधन विकास मंत्री डाॅ रमेश पोखरियाल निशंक ने बदल दी भारतीय शिक्षा प्रणाली की दशा दिशा

डाॅ हरीश मैखुरी

*मानव संसाधन विकास मंत्री डाॅ रमेश पोखरियाल निशंक ने बदल दी भारतीय शिक्षा प्रणाली की दशा दिशा*(Human Resource Development Minister Dr. Ramesh Pokhriyal Nishank changed the direction of Indian education system) 

 

पिछले सतर सालों में भारतीय शिक्षा व्यवस्था जिस रसातल में पहुंच गई थी उसी का परिणाम रहा भारत में  पढ़े-लिखे बेरोजगारों की अप्रत्याशित संख्या। अब करीब 34 साल के लंबे अंतराल के बाद भारतीय शिक्षा व्यवस्था में जिस आमूलचूल परिवर्तन की कल्पना की जाती थी वह भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने कर दिखाया है। करीब डेढ़ साल के कार्यकाल में ही मानव संसाधन भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री डॉक्टर पोखरियाल के निर्देशन में समाज के सभी पक्षों और तबकों से राय सुमारी सुझाव व शोध के आधार पर तैयार किया गया है। इस नई श‍िक्षा नीति को मोदी कैबिनेट ने बुधवार को मंजूरी दे दी है ये श‍िक्षा जगत में परिवर्तन के लिए लाने के उद्देश्य से लाई गई है। 

इसके साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है. नई शिक्षा नीति में *10+2* के फार्मेट को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है,

इससे भारतीय शिक्षा व्यवस्था को अब तोता रतंट प्रणाली के माध्यम से काले अंग्रेज बनाने की घिसी पिटी व्यवस्था से बाहर निकाल कर एक व्यवहारिक भारतीय परंपरा, परिदृश्य भाषा, संस्कृति तथा आवश्यकताओं के अनुरूप लचीला बनाकर ढालने का कार्यक्रम बनाया गया है। शिक्षा व्यवस्था को अब निश्चित तौर पर एक नॉनफॉरमल सिस्टम के अंतर्गत विकसित किया जाएगा। जिसमें विद्यार्थियों के ऊपर सूचनाओं का बोझ लादने की बजाए उन्हें लर्निंग प्रोसेस दी जायेगी। अब बच्चे स्कूलिंग की बजाय लर्निंग प्रोसेसिंग में रहेंगे। विद्यार्थियों पर बोर्ड का टेंशन नहीं होगा वह सेमेस्टर सिस्टम से जब चाहे तब परीक्षा दे सकेंगे और जब चाहे तब छोड़ सकेंगे। समूचे भारत में पठन-पाठन की भाषा भले मातृभाषा होगी लेकिन विद्यालयी पाठ्यक्रमों में आवश्यक रूप से एक रूपता होगी इससे अंग्रेजी स्कूलों के अलग पैटर्न का तिलिस्म भी नहीं रहेगा। यही नहीं अब परीक्षार्थी पर अंग्रेजी का भूत भी सवार नहीं होगा क्योंकि भारतीय शिक्षा प्रणाली में स्थानीय भाषा को प्रमुखता से जोड़ा जाएगा और स्थानीय भाषा में ही ज्यादातर कामों को संपन्न कर दिया जाएगा। जैसा कि चीन अपनी भाषा में ही अपने काम करता है अपने सॉफ्टवेयर करता है और पूरी दुनियां पर राज करता है, चीन ने कभी प्रमुखता से अंग्रेजी नहीं सीखी। उसी तरह से भारत भी एक विशाल संस्कृति संपन्न देश था और संस्कृत ही देश की मुख्य भाषा थी जो पूरे देश में बोली पढ़ी लिखी जाती थी। लेकिन भारत के पहले शिक्षा मंत्री एक विदेशी मौलाना ने भारत की संस्कृति को नेस्तनाबूद करने में जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसी के साथ ईसाई मिशनरियों ने जिस तरह भारतीय शिक्षा प्रणाली को ठिकाने लगाया और नयी पीढ़ी को जमीन हीन संस्कृति व संस्कार विहीन निकम्मा काला अंग्रेज बनाया, उसका दंश भारत ने इन सतर सालों तक झेला। लेकिन अब शिक्षा नीति में परिवर्तन के बाद ऐसा लग रहा है कि भविष्य में शिक्षा का ढांचा पूरी तरह से बदल जाएगा। सबसे बड़ी बात लोगों के दिमाग से अंग्रेजी शिक्षा का भूत उतर जाएगा और अंग्रेजी शिक्षा की दुकानों में लूटने वाले गांव के गरीबों के दिन भी बहूरेंगे। गांव के जो लोग अपनी खेती बाड़ी पशुपालन कुटीर उद्योग अपने धंधे छोड़कर मोटी रकम लुटा कर महंगी अंग्रेजी शिक्षा की दुकानों में बेरोजगार बनने के लिए अभिशप्त थे उनको भी मुक्ति मिलेगी। पाश्चात्य शिक्षा के जाल से भारतीय जनमानस को छुड़ाने की दिशा में भी यह शिक्षा पद्धति कारगर सिद्ध होगी। अब तक भारतीय शिक्षा व्यवस्था में राज्यों की अपनी भाषा में भी अंग्रेजी और उर्दू के शब्द जबरदस्त जबरन ठूंसे जाते थे उस कठिनाई से भी भारतीय जनमानस अब मुक्ति पाएगा। वह अपनी शिक्षा को अपनी भाषा में अपने अनुसार समझ सकेगा उसका प्रयोग कर सकेगा और शिक्षा व्यवस्था से लाभ ले सकेगा। शिक्षा व्यवस्था सीधे तौर पर अपनी मातृभाषा और रोजगार से जुड़ने जा रही है। अब फेल होने का झंझट भी खत्म हो सकेगा या बीच में शिक्षा छोड़ने पर जो हानि होती थी उससे भी बचा जा सकेगा अब हाई स्कूल इंटर के बाद 1 साल पढ़ लिया तो वह सर्टिफिकेट कोर्स होगा 2 साल की पढ़ाई करेंगे तो वह डिप्लोमा कोर्स होगा और 3 साल की पढ़ाई से ही डिग्री मिलने लगेगी। बोर्ड केवल बारहवीं में होगा और एमफिल जैसी फालतू की डिग्री की आवश्यकता भी नहीं रहेगी शिक्षा का माध्यम अपनी मातृभाषा होगा। शिक्षा सुविचारित स्वविचारित और स्थानीय जरूरतों के अनुसार ढाली जा रही है। हमारे विद्यार्थी जीवन में कुछ वामपंथी मित्र नारे लगाते थे “शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो” आज उनकी भी इच्छा पूरी हो गई। एक उच्च शिक्षित मानव संसाधन विकास मंत्री ने भारत को जो नई शिक्षा व्यवस्था दी है, उसे पुराने ढांचे से नए सांचे में ढालने में थोड़ा समय जरूर लगेगा, लेकिन यह शिक्षा व्यवस्था भारत की तकदीर बदलने वाली होगी। अब छात्र विज्ञान के साथ इतिहास भी पढ़ सकेंगे और भूगोल के साथ विज्ञान भी पढ़ सकेंगे संस्कृत के साथ भी विज्ञान पढ़ सकेंगे इतिहास पढ़ सकेंगे और अपनी रूचि के अनुसार विषय चुन सकेंगे। भारतीय शिक्षा व्यवस्था का यह बदलाव भविष्य में बेरोजगारों के लिए एक स्वर्णिम अवसर लेकर आ सकता है। ठीक वैसे ही जैसे कम्पूटर और मोबाईल ने नये रोजगार भी पैदा किए और जीवन को विकसित भी किया। उसी प्रकार अब कृषि पशुपालन पर्यावरण वन संरक्षण खुशी संरक्षण जैव विविधता फलोत्पादन मत्स्य पालन कुकुट पालन यह सब भी कोर्स में आने से पढ़ने लिखने वाले जमीन से जुड़ सकेंगे। आम आदमी के लिए विज्ञान और गणित के निष्प्रयोज्य सूत्रों का बोझ भी नहीं रहेगा। गहन कोर्स अब विषय विशेषज्ञों की विशेषज्ञता के लिए रह जाएंगे। बच्चों पर होमवर्क का बोझ समाप्त होगा लेकिन उन्हे खेल संगीत कम्प्यूटर फोटोग्राफी कृषि आदि किसी एक क्षेत्र में निपुणता अनिवार्य हो सकती है। ऐसी कोई शिक्षा व्यवस्था भविष्य में नहीं रहेगी जो कक्षाओं में पढ़ा तो है परंतु काम नहीं आ रहा हो। उच्च शिक्षा में जाने के लिए विशेषज्ञों को तैयार किया जाएगा, जिससे भारतीय शिक्षा व्यवस्था विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर होगी। डाॅ रमेश पोखरियाल निशंक पौड़ी के एक गांव से निकले और सरकारी विद्यालय से पढ़े, शिशु मंदिर में शिक्षक रहे। उत्तर प्रदेश में तीन बार विधायक एवं पर्वतीय विकास मंत्री रहे पहाड़ का बजट दुगना किया। धर्मस्व मंत्री रहते हुए संस्कृति के विकास हेतु कार्य किया। उत्तराखंड के स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए 108 सेवा और नए डॉक्टरों की नियुक्ति हेतु प्रयास किए, मुख्यमंत्री रहते हुए केंद्र से बहुत सी योजनाओं को लाने और जनकल्याण की योजनाओँ को समाज के अंतिम छोर तक पहुंचाने का सफल कार्य किया। दो बार सांसद रहते अपने दायित्वों के प्रति जवाबदेही, कठोर परिश्रम, संवेदनशील कार्यशैली से प्रधानमंत्री मोदी टीम सदस्य के रूप में 2019 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय का दायित्व सम्भाला। आज भारत में मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ने नवीनतम शिक्षा व्यवस्था नींव रखी जिससे आने वाले समय में भारत का स्वर्णिम इतिहास लिखा जाएगा। आज देश के साथ-साथ उत्तराखण्ड के लिए भी यह गौरवशाली पल है। उम्मीद है कि आगे IAS, PCS आदि सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में भी इन्ही नये पाठ्यक्रमों से प्रश्न आयेंगे। 

सरसरी निगाह से इसके मुख्य बिंदुओं को समझने का प्रयास करें तो अब इसे *10+2* से बांटकर *5+3+3+4* फार्मेट में ढाला गया है. इसका अर्थ है कि अब स्कूल के पहले पांच साल में प्री-प्राइमरी स्कूल के तीन साल और कक्षा 1 और कक्षा 2 सहित फाउंडेशन स्तर  होंगे। फिर अगले तीन साल को कक्षा 3 से 5 की तैयारी के चरण में विभाजित किया जाएगा। 

इसके बाद में तीन साल मध्य चरण (कक्षा 6 से 8) और माध्यमिक अवस्था के चार वर्ष (कक्षा 9 से 12). इसके अलावा स्कूलों में कला, वाणिज्य, विज्ञान स्ट्रीम का कोई कठोर पालन नहीं होगा, छात्र अब जो भी पाठ्यक्रम चाहें, वो ले सकते हैं। 

-शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावकों को भी जागरूक करने पर जोर। 

-प्रत्येक छात्र की क्षमताओं को बढ़ावा देना प्राथमिकता होगी। 

-वैचारिक समझ पर जोर होगा, रचनात्मकता और महत्वपूर्ण सोच को बढ़ावा मिलेगा। 

-छात्रों के लिए कला और विज्ञान के बीच कोई कठिनाई, अलगाव नहीं होगा। 

-नैतिकता, संवैधानिक मूल्य पाठ्यक्रम का प्रमुख हिस्सा होंगी। 

*नई शिक्षा नीति के कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलू*

-2040 तक सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को मल्टी सब्जेक्ट इंस्टिट्यूशन बनाना होगा जिसमें 3000 से अधिक छात्र होंगे। 

-2030 तक हर जिले में या उसके पास कम से कम एक बड़ा मल्टी सब्जेक्ट हाई इंस्टिट्यूशन होगा। 

संस्थानों का पाठ्यक्रम ऐसा होगा कि सार्वजनिक संस्थानों के विकास पर उसमें जोर दिया जाए। 

संस्थानों के पास ओपन डिस्टेंस लर्निंग और ऑनलाइन कार्यक्रम चलाने का विकल्प होगा। 

उच्चा शिक्षा के लिए बनाए गए सभी तरह के डीम्ड और संबंधित विश्वविद्यालय को सिर्फ अब विश्वविद्यालय के रूप में ही जाना जाएगा। 

-मानव के बौद्धिक, सामाजिक, शारीरिक, भावनात्मक और नैतिक सभी क्षमताओं को एकीकृत तौर पर विकसित करने का लक्ष्य। 

नई शिक्षा नीति में संगीत, दर्शन, कला, नृत्य, रंगमंच, उच्च संस्थानों की शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल होंगे. स्नातक की डिग्री 3 या 4 साल की अवधि की होगी. एकेडमी बैंक ऑफ क्रेडिट बनेगी, छात्रों के परफॉर्मेंस का डिजिटल रिकॉर्ड इकट्ठा किया जाएगा. 2050 तक स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणाली के माध्यम से कम से कम 50 फीसदी शिक्षार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा में शामिल होना होगा. गुणवत्ता योग्यता अनुसंधान के लिए एक नया राष्ट्रीय शोध संस्थान बनेगा, इसका संबंध देश के सारे विश्वविद्यालय से होगा। डाॅ निशंक की नयी शिक्षा नीति मेकाले शिक्षा प्रणाली का स्थान लेगी और युवाओं के लिए न केवल रोजगारपरक होगी बल्कि देश की युवा शक्ति के लिए कौशल विकास को सुनिश्चित दिशा देने में सफल होगी, जिससे भारत और भारतीय दोनों शशक्त होंगे।