अबके गर्मियों की छुट्टियों में परिवार के साथ गांव आयें तो औजी का डड्वार और बामण की दक्षिणा दे जाना

मेरे उत्तराखंड के प्रवासी भाइयों और उनकी ब्वारियों! इस बार की गर्मियों में बच्चों समेत अधिक से अधिक संख्या में गांव आना। और अपने साथ डिब्बे का दूध तथा बाजार की पीली दालें लाना न भूलना क्योंकि गांव में भैंसें न के बराबर और खेत बंजर हैं। अपने साथ कपूर की गोलियाँ लाना न भूलना। कुठारों और बक्सों पर बंद आपके कपड़ों पर सिलाप्येंण आ रही होगी। अपने अडो़सियों-पडोसियों, सोरे-भारों के लिए महंगी मिठाई और चायपत्ती लाना न भूलना, जब तुम थके-मांदे गांव पहुंचते हो तो यही लोग आपको सबसे पहले चाय-पानी पूछते हैं। उन्हें आधा किलो मिठाई देकर कई बार आधे महीने तक आप उनके यहाँ राशन डकार जाते हो और शहर के लिए उनके यहाँ से दाल और कोदे का आटा भी ले जाते हो। हल का ठेका और मकान छवाने का काम करने वाले के लिए पक्की की एकाध बोतलें भी लेते आना। ब्रांड कोई भी हो, चलेगा, क्योंकि गांव के सीधे लोग ब्रांड के नहीं, भाव के भूखे होते हैं। मकड़जाले झाड़ने के लिए फूल वाले बांस के डंडे लाने की आवश्यकता नहीं। गांव में रिंगाल की छट्टियां बहुत हैं। इस बार अपने बच्चों को बोलना कि गांव में लोगों से टूटी-फूटी गढ़वाली-कुमाउंनी में ही बात करना। हाँ, देवी-देवताओं के मंडुले-थानों को साफ करना न भूलना। नए उचाणे भी करके जाना। औजी का डड्वार और बामण की दक्षिणा दे जाना। कुछ भी हो आ जाना बस।
           –कुशला नन्द भट्ट