यदि इस काशी के दर्शन नहीं किए तो ये जीवन वृथा ही समझो

————- #श्रावण_मास_विशेष ————–उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में शुरू हो रहे श्रावण का समापन,तीन अगस्त को रक्षाबंधन पर सोमवार के दिन उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की साक्षी में ही होगा। एक माह में पांच सोमवार, दो शनि प्रदोष और हरियाली सोमवती अमावस्या का आना अपने आप में अद्वितीय है। ज्योतिषियों के अनुसार श्रावण मास में ग्रह, नक्षत्र व तिथियों का ऐसा विशिष्ट संयोग बीती तीन सदी में नहीं बना है।

हिंदू धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार जो व्यक्ति सावन के महीने में सोमवार का व्रत रखता है,उसकी मनोकामना भगवान शिव पूरी करते हैं। यही वजह है कि सावन के महीने में शिव भक्त ज्योर्तिलिंगों के दर्शन करने के लिए जाते हैं। इसमें हरिद्वार, काशी, नासिक और उज्जैन समेत कई धार्मिक स्थान शामिल हैं।

तो आइए आप सभी को एक यात्रा पर ले चलतें हैं –

हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक है #अविमुक्त_क्षेत्र
जिसे हम सब काशी ,वाराणसी या बनारस के नाम से जानते हैं ।
वैदिक साहित्य में वाराणसी को अविमुक्त क्षेत्र, आनंद-कानन, महाश्मशान, सुरंधन, ब्रह्मावर्त, सुदर्शन, रम्य, एवं काशी से संबोधित किया जाता रहा है। ऋग्वेद में शहर को काशी या कासी नाम से बुलाया गया है। इसे #प्रकाशित शब्द से लिया गया है, जिसका अभिप्राय शहर के ऐतिहासिक स्तर से है, क्योंकि ये शहर सदा से ज्ञान, शिक्षा एवं संस्कृति का केन्द्र रहा है। काशी शब्द सबसे पहले अथर्ववेद की पैप्पलाद शाखा से आया है और इसके बाद शतपथ में भी उल्लेख है। लेकिन यह संभव है कि नगर का नाम जनपद में पुराना हो। स्कंद पुराण के काशी खण्ड में नगर का विस्तृत उल्लेख है। अथर्ववेद में वरणावती नदी का नाम आया है;जो बहुत संभव है कि आधुनिक वरुणा नदी के लिये ही प्रयोग किया गया हो। अस्सी नदी को पुराणों में असिसंभेद तीर्थ कहा है। स्कंद पुराण के काशी खंड में कहा गया है कि संसार के सभी तीर्थ मिल कर; असिसंभेद के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं होते हैं।अग्निपुराण में असि नदी को व्युत्पन्न कर नासी भी कहा गया है। वरणासि का पदच्छेद करें तो नासी नाम की नदी निकाली गयी है, जो कालांतर में असी नाम में बदल गई। महाभारत में वरुणा या आधुनिक बरना नदी का प्राचीन नाम वरणासि होने की पुष्टि होती है।

ब्रह्म पुराण में भगवान शिव पार्वती से कहते हैं कि- हे सुरवल्लभे, वरणा और असि इन दोनों नदियों के बीच में ही वाराणसी क्षेत्र है, उसके बाहर किसी को नहीं बसना चाहिए। और मान्यताओं के अनुसार ये नगर स्वयं भगवान शिव का प्रिय निवास स्थान है ।।

उत्तर प्रदेश के काशी के दर्शन सभी को करने चाहिए।काफी अरसे पहले हम किसी कार्यवश कर्नाटक में थे, वहाँ हिंदी भाषी एक मित्र थे – मानवेन्द्र शुक्ल जी , निवास स्थान काशी धाम । बात करने के दौरान उनसे जब मैंने ये कहा कि -“शुक्ला जी कहते है कि मृत्यु यदि काशी में हो तो स्वर्ग मिलता है ,कहाँ आप यहाँ कबीर दास बन गए है ,कि जीवन भर काशी में और मरने के लिए मगहर निकल गए , लगता है आप भी उनका ही अनुसरण करेंगे !”

शुक्ला जी ने जवाब दिया कि – ” सर आप समय निकालिये आपको यहीं काशी दर्शन करवा देते हैं, हम काशी से काशी में ही आए हैं , और यहाँ की काशी में शिव और विष्णु दोनों सम्मिलित रूप में निवास करते हैं ।

अब मेरी उत्सुकता चरम पर थी और दर्शन करने की तीव्र उत्कण्ठा ,सारा काम छोड़कर चल पड़े। मार्गदर्शक बने शुक्ला जी के साथ दक्षिण के काशी के दर्शन करने।इतिहास ढूंढने की आदत से मेरी कुछ चीज़ें सामने निकल के आयी जो आप सभी से आज साझा कर रहा हूँ-

हिन्दू धर्म में, विष्णु (हरि) तथा शिव (हर) का सम्मिलित रूप हरिहर कहलाता है। इनको शंकरनारायण तथा शिवकेशव भी कहते हैं। विष्णु तथा शिव दोनों का सम्मिलित रूप होने के कारण हरिहर वैष्णव तथा शैव दोनों के लिये पूज्य हैं। कर्नाटक के हरिहरेश्वर मंदिर में इसी हरिहर देव की पूजा की जाती है । ये मंदिर हरिहर नगर स्थित है ,जो कर्नाटक के दावणगेरे जिले का एक शहर है। मंदिर को बसाल्ट की चट्टानों से काटकर बनाया गया है ।इसका निर्माण पल्लव वंश द्वारा 1223-24 CE (हिजरी सन) में करवाया गया। मंदिर की शैली होयसला वास्तुकला का चमत्कार है , शायद चमत्कार कहना इसका कमतर आँकलन करना होगा;क्योंकि ये उन्नत तकीनीकी का एक विशिष्ट उदाहरण है , और साउंड वेब के 3d मॉडल से इसकी अकल्पनीय समानता इसे सभी मंदिरों से बहुत विशेष बना देती है 

चित्र संख्या 01 और 02 में आप देखिए;ये साउंड वेब के 3d मॉडल हैं।अब चित्र संख्या 03 ,04 और 05 को देखिए और इसकी समानता की तुलना कीजिये और सोचिए कि इसको बनाने का कारण, तरीका कितना उन्नत रहा होगा। वैज्ञानिक कहते हैं कि इसे लेथ मसीन पर डाल कर बनाया गया है ,तो ये सोचिए कि बसाल्ट चट्टानों को तराशना कितना कठिन रहा होगा!!!! उतनी उन्नत और विशाल लेथ मसीन हमारे पूर्वजों ने विकसित कैसे की ?? यदि विकसित कर भी ली तो,इसे तराशा कैसे??? उसे मंदिर स्थापना में कैसे इस्तेमाल किया ??

विशेष –
ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान जब लावा सतह की तरफ फेंक दिया जाता है ,तब लावा के सूखने के बाद इन पत्थरों का निर्माण होता है। शीघ्र ठन्डे होने के कारण इन पत्थरों का क्रिस्टलीकरण नहीं हो पाता। बासाल्ट इस प्रकार का पत्थर है। भारत के प्रायद्वीप भाग में डेक्कन पठार में बसाल्ट पत्थर अधिक मात्रा में मिलते हैं। इन पत्थरों में लोहा, एल्युमीनियम एवं मैंगनीज़ के ऑक्साइड पाए जाते हैं,जिससे इनका घनत्व काफी होता है एवं यह गहरे रंग के होते है। ये पत्थर बेहद मजबूत होने के कारण इन्हें शेप देना एक बेहद कठिन कार्य है फिर इसे आकार देना और उससे भी बढ़कर उसका इस्तेमाल करना ।

अग्रिम यात्रा उत्तर के काशी की ………..(साभार शोशल मीडिया से)