होम्योपैथिक विभाग में ज्वाइंट डारेक्टर पद पर पदोन्नति में अधिकारियों की उतावली सवालों के घेरे में!

.

उत्तराखण्ड में होम्योपैथिक विभाग इन दिनों दैनिक वेतन भोगी से विभाग में आए, एक डाॅक्टर को संयुक्त निदेशक बनाने के लिए अधिकारी उतावले हैं। बताया जाता है कि इस व्यक्ति के खिलाफ विभाग में 3 महिला चिकित्सकों ने अभद्रता व उत्पीड़न संबंधित शिकायतें की हैं जो विभाग में लंबित हैं, और विभाग ने इन शिकायतों को दबाया हुआ है, जबकि एक ड्राइवर द्वारा जानबूझकर नुकसान पहुंचाने और सेवा संबंधी उत्पीड़न की शिकायत भी विभाग झेल चुका है। बताया जाता है इनकी डाॅक्टर के रूप में प्रथम नियुक्ति में ही भारी खामी है, यह डाॅक्टर एक गैर सरकारी संस्था यमुना परियोजना चिकित्सालय में दैनिक वेतन भोगी के रूप में पहली बार कार्यरत हुआ, और उसके बाद जैसे-तैसे सरकारी नियमों को तोड़-मरोड़ करवाके दैनिक वेतन भोगी से सरकारी चिकित्सालय में तदर्थ व्यवस्था पर नियुक्ति पाने की जुगाड़ में सफल रहा।

यह भी जानकारी मिली है कि आज तक विभाग के पास इसकी न तो कोई पत्रावली है और न ही इसके हाईस्कूल व इण्टरमीडिएट की मार्कशीट व सर्टिफिकेट हैं। बताया जाता है कि नियुक्ति के समय से आज तक इसने किसी भी अधिकारी को न तो अपने मूल प्रमाण पत्र दिए और न ही किसी अधिकारी ने इसके मूल प्रमाण पत्रों को देखने व जांच करने की जहमत उठाई। सूत्र बताते हैं कि इनकी इण्टरमीडिएट की मार्कशीट व सर्टिफिकेट में भी घपला है जब इसके इण्टर पास के दस्तावेज गड़बड़ है तो बीएचएमएस कैसे हो सकता था, इसलिए इन्होंने बिजनौर के जिस निजी काॅलेज में दाखिला लिया वह काॅलेज दूसरे वर्ष आते-आते बंद हो गया तब इस काॅलेज के सभी बीएचएमएस छात्रों को मुरादाबाद के के0जी0के0 कालेज भेजा गया लेकिन इस डाॅक्टर ने बीएचएमएस की जो डिग्री विभाग को दी है वह मोहन काॅलेज लखनऊ की है।

यही नहीं आज तक इस डाॅक्टर के कोई सहपाठी डाॅक्टर उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में नहीं मिले, इसलिए यह डिग्री भी जांच के दायरे में आती है। जब से यह डाॅक्टर एक जिले में बतौर जिला होम्योपैथिक अधिकारी बने, तब से इनका अधिकांश समय देहरादून में गुजरने की खबर है लेकिन जब से रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने जिले के सभी अधिकारियों की उपस्थिति पर लगाम कसनी शुरु की तब से ये साहब मेडिकल लेकर अपनी पदोन्नति के चक्कर में अक्सर निदेशालय और सचिवालय में देखे जाते हैं।

बताया जाता है कि यद्यपि अभी इनका प्रमोशन एक महीने बाद होना है लेकिन आयुष सचिव इनकी पदोन्नति में विशेष रुचि ले रहे हैं और सब कुछ इस जुगाड़ के अनुरूप रहा, तो मुन्नाभाई होम्योपैथिक विभाग के संयुक्त निदेशक बन सकते हैं। तब ऐसे अधिकारियों के कार्याें की कल्पना की जा सकती है, और अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि इस तरह के तिकड़मबाज उत्तराखण्ड होम्योपैथिक विभाग का कितना भला करेंगे। विभाग को चाहिए कि पहले इनकी सभी अंक व प्रमाण पत्रों, बीएचएमएस डिग्री की जांच के साथ ही 3 महिला चिकित्सकों की लंबित शिकायतों का निस्तारण करते, तब इनकी पदोन्नति प्रक्रिया अमल में आती। लेकिन जिस तरह से आयुष सचिव इनकी पदोन्नति में रुचि ले रहे हैं वह भी सवालों के घेरे में है।

इस संबंध में जब सचिव आयुष से फोन पर बात करनी चाही तो उनका फोन बंद आया। जबकि निदेशक होम्योपैथिक विभाग उत्तराखंड का कहना है कि इस संबंध में विभागीय कार्रवाई नियमानुसार की जाएगी। जिला होम्यापैथिक अधिकारी को संयुक्त निदेषक बनाने के मामले में होम्योपैथिक निदेषालय की भूमिका भी संदेह के घेरे में है एक तरफ निदेषक होम्योपैथिक विभाग में कभी इस व्यक्ति की पत्रावली और षिक्षा संबंधी प्रमाण पत्रों के जांच की जहमत नहीं उठाई और दूसरी तरफ सालों से इस व्यक्ति के खिलाफ महिला चिकित्साकों की षिकायतों को विभाग में ही दबाके रखा है अब जब मामला मीडिया में आया तो निदेषक ने आनन-फानन में इस व्यक्ति के विरूद्ध एक जांच कमिटी तो बना दी लेकिन इससे पहले ही इसकी डीपीसी के लिए इस डाॅक्टर के विरूद्ध विभाग में कोई षिकायत पैडिंग नहीं होने का प्रमाण पत्र भी जारी कर दिया।

और षासन ने भी इस व्यक्ति को सयुक्त निदेषक बनाने के लिए करीब एक महिने पहले ही पलक पावड़े बिछाते हुए डीबीसी के लिए पत्र जारी कर दिया। और यदि इस तिकड़मी डाॅक्टर का पव्वा ठीक लगा तो बहुत जल्दी ही ये उत्तराखंड के होम्योपैथिक विभाग में सयुक्त निदेषक नियुक्त भी हो जाएगें।