प्रकाश पुरोहित को याद किए बिना अधूरी रहेगी पत्रकारिता

 हरीश मैखुरी 

प्रकाश पुरोहित को याद किए बिना अधूरी है उत्तराखंड की पत्रकारिता Uttarakhand’s journalism is incomplete without remembering Prakash Purohit

प्रकाश पुरोहित से बतौर पत्रकार मुलाकात 1985 में औली फेस्टिवल में हुई, उन दिनों औली के बर्फीले ढालानों को पहली बार पर्यटन डेस्टिनेशन बनाने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश सरकार का ध्यान गया था। उससे पहले इन ढालानों पर किसी की नजर गई क्यों नही होगी? औली महोत्सव में प्रकाश पुरोहित और हमने दिन भर बर्फीले ढालानों पर खूब स्कींग और हंसी ठिठोली भी की प्रकाश उन दिनों अमर उजाला के लिए काम कर रहा था और मैं नैनीताल समाचार के लिए। प्रकाश के पास निकोन व कैनन  कैमरे थे और मेरे पास हॉट शॉट खूब फोटो खींचे। अगले दिन के अमर उजाला में इस सुंदर ढलान का जो चित्रण किया वो इससे पहले किसी ने नहीं किया था एक ही रात में औली पर्यटन के मानचित्र पर अंकित हो गया, लेकिन इससे ज्यादा चर्चा प्रकाश की फोटोग्राफी और लेखन की थी उसी दिन हमें भी कलम की ताकत का एहसास हो गया। प्रकाश पुरोहित सदा हंसते रहने वाला एक खूबसूरत युवा था। अपने अध्ययन काल के दौरान मैं चिपको आंदोलन की संस्था दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल मंदिर मार्ग गोपेश्वर में रहता था, तब कभी कभार प्रकाश पुरोहित वहां बैठने भी आते थे पद्मश्री चंडी प्रसाद भट्ट , मुरारी लालजी, चक्रधर तिवारी, जगदीश तिवारी और नवीन जुयाल जी उनके जी उनके मित्रों में थे। हमने बेमरू लांजी, द्वींग, तिरोशी, ह्यूंणा, पाडली, डुमक कलगोठ और बछेर गांवों के अनेक चिपको आंदोलन वृक्षारोपण और जन जागरण शिविरों में एक साथ कई बार भाग लिया। प्रकाश पुरोहित और हम इन शिविरों में ढोल दमाऊ भी बजाते थे। प्रकाश का जन्म बदरीनाथ धाम में वैसाखी के दिन सन् १९६२ को हुआ। उनका पैतृक गाँव जनपद चमोली में नंदप्रयाग के समीप सकण्ड था। सकंड के सामने ही सिमार के ममगांई लोग मेरे मामा थे इसलिए मैं प्रकाश के गांव से परिचित था। प्रकाश की प्रारम्भिक शिक्षा जखोली में हुई थी, तब पांचवीं कक्षा की भी बोर्ड परीक्षा होती थी वे पूरे जखोली ब्लॉक में कक्षा-5 की परीक्षा के टॉपर भी रहे। उनके पिता उदयराम पुरोहित लघुउद्यमी और माता कमला एक कुशल गृहणी। मंदिर मार्ग गोपेश्वर पर उदयराम पुरोहित आटा चक्की एक जाना पहचाना नाम था उस जमाने में गोपेश्वर में आटा चक्की तेल पेराई मसाले की चक्की और धान की कुटाई एक साथ उनके उद्यमी पिता के द्वारा स्थापित की गई थी।   मात्र 17 साल की उम्र में ही उनका जयशंकर प्रसाद, सोहनलाल द्विवेदी  सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, विष्णु प्रभाकर, बनारसी दास चतुर्वेदी, जैसे दिग्गज साहित्यकारों से पत्राचार था। एम.ए. हिंदी में गोल्ड मेडलिस्ट जयदीप ने पत्रकारिता, और आर्ट में डिप्लोमा भी किया पर जीवन का उद्देश्य पत्रकारिता को चुना। वे अमर उजाला, हिमालय दर्पण सहित दर्जनों क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं के साथ संवाददाता रहे। साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान, नवनीत, सरिता, मनोरमा,  कादम्बिनी, धर्मयुग, वामा, जैसी पत्रिकाओं में जयदीप के सैकड़ों आलेख, फीचर, यात्रा-संस्मरणों को पाठक बहुत पसंद करते। हम भी प्रकाश पुरोहित के घर जाकर ही अखबार और पत्रिकाएं पढ़ते उनके घर में प्रकाश पुरोहित के लेखों का और स्केच का बहुत सुंदर संग्रह हुआ करता था मैंने उनकी धर्मपत्नी किरण पुरोहित से भी उनके लेखों को संग्रहित करने का अनुरोध किया। समाचारों और लेखों के साथ उन्होंने कहानी एवं कविता जैसी विधाओं में भी लेखन किया। उस समय वे एक तरह से अखबारों के अमिताभ बच्चन थे।
प्रकाश पुरोहित की लेखनी शैली वर्तनी और विषय वस्तु इतनी सुंदर और सुगढ़ होती थी कि हर संपादक आवश्यक रूप से अपनी पत्र पत्रिका में स्थान देता था। प्रकाश पुरोहित को घुमक्कड़ी यायावरी बहुत पसंद थी, वे बिना पैसे के भी हिमालय के एक छोर से दूसरे छोर तक घूमते रहते थे। जहां प्रकाश पुरोहित पहुंच गए वहीं लेखन के विषय उनके पीछे दौड़ते थे। हाथ से लिखने का जमाना था और पोस्ट ऑफिस से या रोडवेज की बसों से लेख या समाचार को संपादक तक पहुंचना होता था तब आज के जैसे मेल फोटो फेसबुक व्हाट्सएप की सुविधा नहीं थी ना मोबाइल था ना मोबाइल के इतने सुंदर कैमरे थे सोचो उस दौर में लेखन कितना कठिन था, लिखने के लिए विषय खोजना है तो मीलों पैदल भी चलना है प्रकाश पुरोहित ने अपने विषयों में पर्यावरण वृक्षारोपण चिड़िया जंगली जीव जंतु बुग्याल तालाब हिमालय यहां के लोग उनकी छोटी-छोटी तकलीफ हैं उनके बड़े-बड़े सपने सब रखे थे। प्रकाश पुरोहित का विवाह रुद्रप्रयाग जनपद की किरण पुरोहित के साथ हुआ किरण भी बहुत जीवट ग्रहणी साबित हुई वह कंधे से कंधा मिलाकर दो दो बच्चियों के साथ लेकर प्रकाश पुरोहित के साथ घुमक्कड़ी करती ही वे प्रकाश पुरोहित के साथ ही दिखती थी, उत्तरकाशी में लंबे समय तक रहे। प्रकाश पुरोहित पूरा उत्तराखंड ऐसे घूमते थे जैसे उनका अपना घर हो हर शहर में उनके ठिकाने और आने जाने के इंतजार में लोग पलक पावडे बिछाये रहते। १९९८  को १२ मार्च होली के दिन प्रकाश पुरोहित के इस धराधाम से जाने के बाद उनकी विलक्षण प्रतिभा का स्थान सदा के लिए रिक्त हो गया है। खुशी की बात है कि प्रकाश पुरोहित ‘जयदीप’ की दोनों बेटियां शिवानी और रागनी अब डाक्टर बन गयी हैं। किरन ने उनके नाम से जयदीप सम्मान की शुरूआत भी की है।