रै संग्रांद / हरेला पर्व / श्रावण संक्रांति का महात्म्य जानें, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने प्रदेश वासियों को दी बधाई

🌹………..|| *पञ्चाङ्गदर्शन* ||……….🌹
*श्रीशुभ वैक्रमीय सम्वत् २०७७ || शक-सम्वत् १९४२ || याम्यायन् || प्रमादी नाम संवत्सर|| वर्षा ऋतु || श्रावण कृष्णपक्ष || तिथि एकादशी || गुरुवासर || श्रावण सौर संक्रान्ति || तदनुसार १६ जुलाई २०२० ई० || नक्षत्र कृत्तिका अपराह्न ६:५४ तक उपरान्त धाता || वृषस्थ चन्द्रमा ||

 रै-संग्रांद /हरेला संक्रांति/ मौल्द्या संगराँन्द||*
💐 *सुदिनम्*💐
📖 *नीतिदर्शन…………………..*✍
*चलत्येकेन पादेन तिष्ठत्येकेन बुद्धिमान्।*
*मा समीक्ष्य परं स्थानं पूर्वमायतनं त्यजेत्।।*
📝 *भावार्थ* बुद्धिमान एक पाँव से चलता है तथा एक पाँव से स्थित रहता है। बिना दूसरे स्थान के देखे पहला स्थान नहीं छोड़ना चाहिये।
💐*सुदिनम्* 💐

भगवान शिव के सावन मास की एक गते को उत्तराखंड गढ़वाल में रै-संग्रांद के नाम से जाना जाता है कुमांयूं में हरेला पर्व के नाम से। उत्तराखंड में सावन और प्रकृति प्रेम का हरेला पर्व
उत्तराखंड का पारंपरिक त्यौहार हरेला, 16 जुलाई 2020 को रै संग्रांद के दिन है। यह त्यौहार हिमालय पर्वत की तलहटी में बसे उत्तराखंड निवासियों का प्रकृति के प्रति प्रेम और जागरूकता को भी दर्शाता है कि हमको संतुलित वातावरण के लिए वृक्षारोपण करते रहना चाहिए।
सौर मास के अनुसार कर्क संक्रांति से पवित्र सावन मास का प्रारंभ होता है और भगवान सूर्य का दक्षिणायान का समय प्रारंभ होता है। कर्क संक्रांति से मकर संक्रांति तक के काल को दक्षिणायाण कहा जाता है और शास्त्रों में इसे देवताओं का रात्रि और पितरों का दिन का समय माना जाता है। हमारे 6 महीने के काल को देवताओं की 1 रात्रि और मकरसंक्रांति से कर्क संक्रांति, जिसे उत्तरायण कहा जाता है हमारे उस 6 मास के काल को देवताओं का 1 दिन कहा गया है, जिसे एक अहोरात्रि कहा जाता है।
ठीक आश्विन कृष्ण पक्ष में देवताओं की मध्यरात्रि और पितरों का मध्य दोपहर काल का समय होता है, इसलिए इस पक्ष को पित्र पक्ष कहा जाता है, जहां हम अपने पूर्वजों को अन्न और जल आदि का अपनी सामर्थ्य अनुसार दान करते हैं।
इस 6 महीने के काल में चूड़ाकर्म, गृहप्रवेश ,यज्ञोपवित,विवाह इत्यादि शुभ कर्मो का शास्त्रों में निषेध कहा गया है। विवाह इत्यादि कुछ संस्कार देव उठावनी एकादशी से प्रारंभ हो जाते हैं। अनुष्ठान इत्यादि पूजा पाठ कभी भी किया जा सकता है।
कर्क संक्रांति के पर्व पर पतझड़ वाले पौधों को छोड़कर सभी प्रकार के वृक्षों को लगाये जाने का विधान है, जिससे हमारी प्रकृति सदा हरीभरी बनी रहे जब प्रकृति हरि भरी होती है तो मनुष्य का जीवन भी उसी प्रकार से ऊर्जावान बना रहता है।
यह त्यौहार कुमाऊँ मंडल में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है और गढ़वाल मंडल में लोग अपने खेतों में या अन्य जगहों पर वृक्षारोपण करते हैं।
हरेला विशेष पूजा विधि:
हरेला के लिए पूजा स्थान में किसी जगह या छोटी डलियों में मिट्टी बिछा कर सात प्रकार के बीज (सप्त-धान्य)जैसे- गेंहूं, जौ, मूंग, उड़द, भुट्टा, गहत, सरसों आदि बोते हैं और ऊपर से किसी चीज से ढक देते हैं ताकि नमी बनी रहे। नौ दिनों तक उसमें गुनगुना जल और दूध को हल्दी में मिलाकर डालते हैं। बीज अंकुरित हो कर बढ़ने लगते हैं। हर दिन सांकेतिक रूप से इनकी गुड़ाई भी की जाती है और हरेले के दिन कटाई की जाती है।
यह सब देव कार्य घर के बड़े बुज़ुर्ग या पंडित करते हैं। हरेला जितना बढ़िया उगता है उसको उतना ही शुभ और समृद्धि वाला वर्ष माना जाता है।
हरेला के दिन इष्ट देवी देवताओं की पूजा और आरती की जाती है। विभिन्न प्रकार के नैवेद्य अर्पित किया जाता है और देवताओं को हरेला अर्पित करने के बाद आशीर्वाद स्वरूप अपने कान और सर में रखा जाता है। परिवार का कोई सदस्य अगर दूर हो तो पहले उसको भी पत्र के द्वारा हरेला भेजा जाता था। घर की चौखट पर दोनों तरफ और ऊपर, गाय के गोबर से हरेला के तिनकों को लगाया जाता है।
इस लोक त्यौहार और परम्परा का संबंध उर्वरता, खुशहाली, नव जीवन और विकास से जुड़ा है। कुछ लोग मानते हैं कि सात तरह के बीज सात जन्मों के प्रतीक हैं। कर्क संक्रांति हमारी 6 ऋतुओं में वर्षा ऋतु का समय होता है, इसमें हम लोग जो भी पेड़ पौधे लगाते हैं उनको प्रकृति के द्वारा ही वर्षा का जल पर्याप्त मिल जाता है जिसे पौधे आसानी से लग जाते है
इसी लिए इस दिन पेड़ पौधे लगाए जाते हैं।
वृक्षारोपण के महत्व को रेखांकित करते हुए, मत्स्य पुराण में एक वृक्ष को 10 पुत्रों के समान बताया गया है।
“दश कूप समा वापी, दशवापी समोहद्रः।
दशहृद समः पुत्रो, दशपुत्रो समो द्रुमः।”
यह दिन भगवान शिव और माता सती के विवाह के रूप में भी मनाया जाता है जिसमें मिट्टी के शिव, गौरी बनाए जाते हैं जिनको स्थानीय भाषा में डीकर कहा जाता है। डिकरों को अलग अलग रंगों से सजाया जाता है। कहीं कहीं पर हरेला के दिन बैलों को कार्य से मुक्ति दी जाती है।
आचार्य गोपाल दत्त सती(ज्योतिषाचार्य)
श्री बद्रीनाथ ज्योतिष केन्द्र,लखनऊ।
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पंडित संतोष खंडूरी  के अनुसार

*ओ३म् द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,*
*पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।*
*वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,*
*सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥*
*ओम् शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥*

यजुर्वेद के इस शांति पाठ मंत्र में सृष्टि के समस्त तत्वों व तक कारकों से शांति बनाये रखने के लिए प्रार्थना किया गया है। जैसे कि द्युलोक में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषधि में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी दिव्य गुण युक्त विद्वान पुरुषों में मानसिक शांति हो, यानि शान्ति और समृद्धि के लिए आवश्यक है कि मानव एक दुसरे क़े प्रति प्रेम, करुणा, और आदर का भाव रखें। ब्रह्म में शांति हो, शांति भी शांतिदायक हो, और जो इन तत्वों में शांति है वही शांति हमें प्राप्त हो अर्थात् नियम का पालन करने से शान्ति की प्राप्ति होती है । और नियम को तोड़ने से अशान्ति मिलती है।

*नियम मुख्यतः तीन प्रकार के होते है:-*
*१-शारीरिक नियम २:- सामाजिक नियम *
*३:- प्राकृतिक नियम*

*शारीरिक नियम तोड़ने की सजा (रोग)*
*सामाजिक नियम तोड़ने पर (दंड अथवा जेल)
*प्राकृतिक नियम तोड़ने पर (जलवायु परिवर्तन) 

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सभी को बधाई देते हुए कहा कि प्रकृति पूजन का प्रतीक, उत्तराखण्ड का लोकपर्व #हरेला की समस्त प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। अपने स्वास्थ्य के साथ-साथ जल, हिमालय तथा पर्यावरण आदि को बचाए रखने के लिए पेड़ों के महत्व को हम भली-भांति समझते हैं तो आइये, इस पावन अवसर पर हम संकल्प लें कि हर उत्तराखंडवासी एक पौधा अवश्य लगाए। वैश्विक महामारी कोरोना से बचाव के मानकों को विशेष रूप से ध्यान में रखते हुए पौधे अवश्य लगाएं।

आज प्रदेश में जगह जगह वृक्षारोपण भी किया गया

गढ़वाल के सांसद तीरथ सिंह रावत ने भी उत्तराखंड वासियों को और अपने संसदीय क्षेत्र वासियों को श्रावण संक्रांति की बधाई दी है इसी के साथ उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज उच्च शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पूर्व विधानसभा जनपद चमोली से उपाध्यक्ष डॉ अनुसूया प्रसाद मैखुरी, पूर्व काबीना मंत्री राजेंद्र सिंह भंडारी, बद्रीनाथ क्षेत्र के विधायक महेंद्र भट्ट, कर्णप्रयाग के विधायक सुरेंद्र सिंह नेगी रानी की विधायक मुन्नी देवी ने भी प्रदेशवासियों को बधाई दी है और पूरे प्रदेश में जगह जगह पर वृक्षारोपण भी किया गया। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज और सभी मंत्रियों और विधायकों ने भी अपने अपने क्षेत्रों में वृक्षारोपण किया 

प्रकृति और पर्यावरण के पावन पर्व हरेला के अवसर पर प्रदेश में 30 लाख से अधिक पौधे लगाए गए। सभी 13 जिलों में  रिकार्ड 3060315  पौधे लगाए गए। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने  प्रदेशवासियों से हरेला पर कम से कम एक पौधा जरूर लगाने का आह्वान किया था। प्रदेशभर में वन, उद्यान, प्रशासन के साथ ही  आमजन ने भी इसमें भागीदारी की। खास बात यह भी रही कि कोरोना के कारण विगत वर्षों की भांति वृक्षारोपण के बङे आयोजन नहीं किये गये फिर भी 30 लाख से अधिक पौधे लगाए गए।  मुख्यमंत्री ने इस पर प्रदेशवासियों को बधाई देते हुए कहा कि अब इन लगाए गए पौधों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी है।