1990 में कश्मीर में हुए दुर्दांत नरसंहार के सबक

जिन कश्मीरी हिन्दुओं के बंगले हुआ करते थे केसर और सेब की खेतियां थी, नौकरिया थीं वे आज 30 साल बाद भी तम्बूओं में रह रहे हैं, सिर्फ इसलिए कि मुस्लिम आबादी कश्मीर में बढ़ गई थी, फिर वे हिन्दुओं की खेतियां, बेटियां, नोकरी, घर सब लूटते चले गए। हिन्दू रोता बिलखता रहा और 1990 में तो कश्मीरी मुस्लिमों ने इतने घाव दिये कि हिन्दुओं को घर बार छोड़ तम्बूओं में आना पड़ा। इस दौर के ISIS से भी ज्यादा ब्रूटल और डरावना था 1990 का वो कत्लोगारत। उसके एक पीड़ित कश्मीरी हिन्दू ने जो दर्द तीस साल बाद मीडिया के सामने बयां किया, अंदाजा लगाया जा सकता है। लिंक है 

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कश्मीर में तब भी फारूख अब्दुल्ला था,  भाईचारा भी कहा जाता था, कानून था पुलिस थी, प्रशासन था, पर इसके बावजूद “नारा ए तकबीर अल्लाह हो अकबर” नारे लगा के जो दुर्दांत नरसंहार किया गया वह देश के माथे पर कलंक है। एक अनुमान के अनुसार करीब 28 हजार महिलायें बलात्कार की शिकार हुई, 50 हजार लोगों का कत्लोगारत हुआ और चार लाख कश्मीरी हिंदू कश्मीर से खदेड़ दिए गए। इतने दुर्दांत नरसंहार के बावजूद  इस मामले में  ना f.i.r. हुई ना किसी को सजा हुई  ना दोषियों को फांसी हुई  ना पीड़ितों को मुआवजा मिला  और ना 30 साल के बाद भी कश्मीर के पंडित  वापस अपने घरों में बसाए गए, इससे बड़ी त्रासदी  के उदाहरण दुनिया में नहीं है। कुछ लोग आंतरिक सुरक्षा, आतंक, जनसंख्या विस्फोट और घुसपैठियों की बजाय बेरोजगारी पर चर्चा करने का ज्ञान देते हैं। आजकल कुछ लोग कश्मीर में इन्टरनेट के लिए परेशान हैं। लेकिन ये कभी 30 सालों से दरबदर कश्मीरी हिन्दुओं पर बात नहीं करते हैं,  इसीलिए समय रहते सचेत नहीं हुए तो रोजगार तो दूर की बात है भागने की जगह भी नहीं मिलेगी, कहाँ भागोगे? हस्र फिर वही हो सकता है। 

कितने ही बड़े बंगले बना लो यदि जिहाद की गिरफ्त में आए तो सब कुछ छोड़कर भागना ही नियति रहता है। और सिवाय रोने को कुछ नहीं बचता ये कश्मीर के सबक हैं। 1990 में कश्मीर में हुए दुर्दांत नरसंहार को भूलने की बजाय सचेत रहने का सबक है 

बिखरा भारतीय हर समस्या का कारण है और सँगठित भारतीय हर समस्या के समाधान की ग्यारंटी है। अपनी संतान को कैसा भविष्य देना चाहते हैं, निर्णय तो लेना ही होगा ।