मारा गया आदमखोर बाघ, आखिर लोग कब तक हिंसक जंगली जानवरों के साथ संघर्ष करेंगे?

 हरीश मैखुरी 

 उत्तराखंड के चमोली जनपद में थराली क्षेत्र में आतंक का पर्याय बने नरभक्षी बाघ को आखिर शुक्रवार को शिकारी टीम ने मार गिराया। आज शनिवार को इस चितेदार गुलदार का पोस्टमार्टम होगा। इस गुलदार ने हाल ही में इस क्षेत्र में दो घटनाओं को अंजाम दिया था जिसमें २९ जून को गैर बारम के ग्राम प्रधान देवेंद्र सिंह की १३ वर्ष की लड़की को खा गया था और उससे पहले २९ मई भी भी इसी क्षेत्र में मलतूरा गांव की ४ वर्षीय बच्ची को खा गया था। इससे क्षेत्रवासियों में खासा भय और आक्रोश दोनों था। इसी को देखते हुए वन विभाग ने इस चितेदार गुलदार को नरभक्षी घोषित करते हुए उसको मारने के लिए टीम गठित की। जिसमें गैरसैंण क्षेत्र से लखपत सिंह रावत और पौड़ी से जॉय हुकिल को बुलाया गया था जबकि एक वन विभाग की ओर से निशाने बाज अजय रावत भी थे इन तीन लोगों की टीम ने रणनीति और परिश्रम से बाद बाघ को घटनास्थल से 50 मीटर की दूरी पर ही अपनी बंदूक से ढेर कर दिया। वनक्षेत्र अधिकारी जुगल किशोर के अनुसार ‘इस आदमखोर के मारे जाने से क्षेत्रवासियों ने राहत की सांस ली है’। लेकिन बाग को नरभक्षी घोषित करने की इतनी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि तब तक नरभक्षी अनेक घटनाओं को कारित कर चुका होता है। 
  विडम्बना यही है कि उत्तराखंड के इतने कम क्षेत्रफल में ८ नेशनल पार्क और ६ नेशनल सेंचुरिया बनाकर आदमी को जंगली जानवरों के हवाले करने की रणनीति के तहत हमेशा से यहां के ग्रामीणों और हिंसक जंगली जीवो के बीच संघर्ष का प्राय रही है। यही कारण है कि यहां जंगली जानवरों और मनुष्यों का संघर्ष चलता रहता है यह क्रूरतापूर्ण व्यूह रचना है। दुनियां के धनपति देश अपने यहां औद्योगिक प्रदूषण फैलाते हैं और भारत में नेशनल पार्क और सेंचुरी बनवाते हैं जिससे यहां की हरियाली जैव विविधता और ऑक्सीजन का लाभ वे देश भी ले सकें। उत्तराखंड में बांध, आग, बाघ, बर्फबारी बरसात, बाढ़ और जंगली जानवरों द्वारा जान माल की त्रासदी झेलना यहां के लोगों की  नियति बन गया है। इस पर ना कोई सरकारें चिंतन करती है और ना नीति आयोग व योजना आयोग के लोग इसके लिए कोई कारगर रणनीति बनाते हैं। ग्रामीणों की फसलों का नुकसान हो या जानमाल का नुकसान हो जंगली जानवरों से संघर्ष अब उनकी नियति बन गया है।