चमोली की मानसी नेगी और परमजीत सिंह बिष्ट का गोल्डमेडल बन गया उत्तराखंड की धरोहर

चमोली ब्रेकिंग – ‘राष्ट्रीय खेलो इंडिया खेलो प्रतियोगिता’ में चमोली जिले की मानसी नेगी और परमजीत सिंह बिष्ट ने वाक रेस में जीता गोल्ड मेडल। उत्तराखंड का नाम किया रोशन। ये दोनों मेडल बन गये राज्य की धरोहर। ब्रेकिंग उत्तराखण्ड डाट काम न्यूज की ओर से इनके कोच श्री गोपाल सिंह बिष्ट और लता झिंक्वांण, शिक्षकों,  चमाेली जनपद व प्रदेश वासियों को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं। 

राष्ट्रीय स्तर पर खेलो इंडिया खेलो प्रतियोगिता में चमोली ही नहीं बल्कि उत्तराखंड का नाम रोशन करने वाली मानसी नेगी और परमजीत सिंह बिष्ट ने भारी अभावों और सीमित संसाधनों के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा से देश में नाम रौशन कर दिया। ये युवा सीमांत चमोली जिले के गांवों से उभरकर आए हैं। इनकी सफलता पर साथी छात्र छात्राओं, गुरुजन सहित गांव व जिला जश्न में है।

तीन हजार मीटर वाक रेस में गोल्ड मैडल लेने वाली मानसी नेगी ने तो चमोली की बालिकाओं को मानो कुछ अलग करने का हौसला दिया है। गोपेश्वर के नैग्वाड़ स्थित कन्या जूनियर हाइस्कूल में दसवीं की छात्रा मानसी नेगी चमोली के दशोली ब्लाक के दूरस्थ गांव मजोठी की रहने वाली है। पेशे से मैकेनिक मानसी के पिता लखपत सिंह नेगी की 2016 में मृत्यु हो चुकी है। मानसी की मां शकुंतला देवी गांव में ही खेती मजदूरी कर बेटी को आगे बढ़ने का हौसला देती रही। यही कारण है कि बेहद अभावों में भी उसके अंदर कुछ अलग करने का जज्बा हमेशा रहा। उसने तीन हजार मीटर वाक रेस में प्रथम स्थान प्राप्त कर चमोली ही नहीं बल्कि उत्तराखंड का भी नाम रोशन किया है। मानसी की प्रारंभिक शिक्षा कक्षा तीन तक अलकनंदा पब्लिक स्कूल मजोठी में हुई। इस स्कूल के बंद हो जाने के कारण उसने आठवीं तक की पढ़ाई नेशनल पब्लिक स्कूल व नवीं से कन्या हाइस्कूल नैग्वाड़ में की है। मानसी का कहना है कि अगर इसी तरह सही मार्गदर्शन व आगे बढ़ने के लिए संसाधन मिले तो वह ओलम्पिक  में भी नाम रोशन कर सकती है। वह इस सफलता का श्रेय मां सहित गुरुजनों को देती है और कहती है कि उनकी विद्सयभी ने उसे हौसला दिया। 


नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में पांच हजार मीटर वाक रेस में प्रथम पायदान पर आकर गोल्ड मैडल लेने वाले ग्राम खल्ला, पोस्ट आफिस मंडल निवासी परमजीत सिंह बिष्ट इंटर कालेज बैरागना में कक्षा 11 का छात्र है। परमजीत के पिता जगत सिंह बिष्ट खल्ला में ही गांव की छोटी सी दुकान चलाते हैं। मां हेमलता देवी गृहणी है। अभावों की जिंदगी जीने वाले परमजीत को दौड़ लगाने की आदत घर से बैरागना स्कूल तक तीन किमी जाने के दौरान ही पड़ी थी। प्रतिदिन घर का काम निपटाने के बाद विद्यालय पहुंचने के लिए उसे दौड़ लगानी पड़ती थी