गौरी लंकेस की हत्या पर मीडिया दो फाड़

 

डाॅ हरीश मैखुरी

गौरी लंकेस की हत्या को लेकर देश का मीडिया दो धड़ों में बंटा नजर आता है। एक तरफ वांमपंथी व इस्लामिक मीडिया है जिसका इशारा है कि गौरी लंकेश कीं हत्या संभवयता हिन्दुराष्ट्रवादियों द्वारा कराई गई हो,  जबकि दूसरी तरफ राष्ट्रवादी चिंतराष्ट्रवादी मीडिया गौरी लंकेश की हत्या से स्तब्ध है और वे इसे कायर लोगों की करतूत बता रहे हैं।

महिला पत्रकार गौरी लंकेस की हत्या निंदनीय है और किसी भी स्थिति में इस बहादुर महिला पत्रकार की हत्या का समर्थन नहीं किया जा सकता। जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने वाली यह महिला पत्रकार कहीं न कहीं समाज को उसकी शक्ल अपनी लेखनी के आईने में दिखाती थी। गौरी लंकेश जब कन्हैया कुमार और उमर खालिद को अपने बेटे जैसे बताने के चलते चर्चा में रही तब राष्ट्रवादी मीडिया ने इसकी जमकर आलोचना की।

 कर्नाटक राज्य का अलग झंडा तैयार करने को लेकर भी वे खासी चर्चाओं में रहीं। अक्सर वामपंथिओं और नक्सलियों से नजदीकियों की चर्चा के चलते यह पत्रकार कभी राष्ट्रवादी चिंतक के रुप में नहीं उभर पाई। ज्यादातर वेअपनी हिन्दू  विरोधी छवि के लिए जानी जाती रही ,  इसी कारण कल  जब इनकी हत्या हुई तो वामपंथी मीडिया जज की भूमिका में आ गया और कयास लगाने लगे कि संभवतया इनकी हत्या हिन्दु राष्ट्रवादियों द्वाराकराई  गई हो। इसलिए महिला पत्रकार गौरी लंकेस को सैक्यूलर का प्रमाणपत्र देने वाले आज कह रहे हैं कि उनकी हत्या हिन्दू विरोधी छवि के कारण की गयी। लेकिन साथ में मीडिया नहीं बता रहा है कि कर्नाटक सरकार में पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं। यदि पत्रकार की हत्या हुई है तो यह जिम्मेदारी कर्नाटक सरकार और स्थानीय पत्रकार की क्यों नहीं है। क्या कर्नाटक में शासन चलाने वाली पार्टी के लोग इसकी हत्या का दोष हिन्दुवादी संगठनों पर मड़कर राजनीतिक लाभ भी ले सकते हैं ठीक वैसे ही जैसे हिन्दुवादी संगठनों के लिए ऐसा कहा जा रहा है। इस मामले की सीबीआई अथवा उउच्च स्तरीय जांच  होनी चाहिए। ताकि इस ब्लाइंड मर्डर से पर्दा उठे और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहो।