संस्कृत शिक्षक फिरोज खान की नियुक्ति के संदेश

हरीश मैखुरी 

डाॅ फिरोज खान शौक से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत पढायें। वहाँ संस्कृत फैकल्टी हेतु अनेक संकाय हैं जैसे वेद, साहित्य, व्याकरण, ज्योतिष, पुराण, दर्शन आदि लेकिन उनकी नियुक्ति विषय विशेषज्ञता की बजाय शाजिसन गुरु-शिष्य परम्परा संकाय में की गयी, जहां सनातन धर्म विशेष की शिक्षा – दीक्षा का प्रावधान है, आपत्ति इस पर है। ये ठीक है तो पोप या मौलवी जी जगह को क्यों न उन विषयों के जानकार पंडित वहां नियुक्त किए जांय? जो लोग बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में मुस्लिम संस्कृत शिक्षक की नियुक्ति का विरोध दर्ज कराने पर हाय-तौबा मचा रहे हैं वे भारत के सभी सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों, जेएनयू और एएमयू में संस्कृत की तालीम की मांग नहीं कर रहे क्यों?, मदरसों और अन्य विश्व विद्यालय के छात्रों को संस्कार, संस्कृति और संस्कृत शिक्षा से वंचित क्यों रखना चाहिए?, मुस्लिम संस्कृत सीखें संस्कृत बोलें संस्कृत और संस्कृति का आचरण करें इसमें किसी को कोई आपत्ति क्यों होनी चाहिए? तभी तो विरासत साझा होगी और भाईचारा मजबूत होगा। हम लोग दिनभर में हजारों उर्दू के शब्द उच्चारित करते हैं, हमें पता भी नहीं चलता वैसे ही मुस्लिम भी दिन भर में देवनागरी के हजारों शब्द उच्चारित करते हैं उन्हें पता भी नहीं चलता। यही हमारी साझी सांस्कृतिक विरासत है। वैसे भी भारत के सभी मुसलमान सनातन धर्म से ही धर्मांतरित होकर मुस्लिम बने हैं, इसलिए वे घर वापसी का हक रखते हैं, इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन सनातन धर्म संस्कृति, संस्कार और संस्कृत के विद्वान गुरु शिक्षक बनने की पहली योग्यता यही है कि अहर्ता साथ – साथ वह व्यक्ति गो भक्षी या मांसाहारी नहीं होना चाहिए। वह नैष्ठिक व्यक्ति होना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त में उठें स्नान ध्यान तपस्या साधना करें भगवान का नाम स्मरण करें अभक्ष्य न खाएं तो कोई दिक्कत ही नहीं है इस पद पर उसकी नियुक्ति हो सकती है। क्योंकि संस्कृत के गुरू की यही मौलिक पात्रता है। यही सूत्र है तभी वह विद्या सिद्ध होती है नियुक्ति के किसी ऐजेंडे विशेष के तहत किए जाने के मूल में शंका विशेष रूप से ये बतायी गयी कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत विषय में नियुक्ति के बाद कहीं अरबी कबीलों का एजेंडा यहां न चले, ऐसा तो अनर्थ ही कहा जाएगा। क्योंकि यह अर्हता से अधिक योग्यता और पात्रता का सवाल है। वैसे भी जिस तेजी से जनसंख्या विस्फोट हो रहा है और संस्कृत पढ़ाने वाली पीढ़ी समाप्त हो रही है 1950 के बाद तो खान पठान बंधुओं के रहमो करम पर ही संस्कृत और संस्कृति का दायित्व रहना है, इस नियुक्ति का यही संदेश है। लेकिन उससे भी मजेदार बात ये कि जो मनुवाद के नाम पर भारत की चार करोड़ साल पुरानी ऋषि मुनियों की संस्कृति और संस्कृत को कोसते हैं, वे खान की नियुक्ति पर फूले नहीं समा रहे इसीलिए खान बंधु से संस्कृत का ज्ञान लेना आवश्यक है। वैसे ही इस भाषा पर संकट है, मुस्लिम इसे आगे बढाये यह हर्ष का विषय है इस पर यज्ञ हवन करके आपत्ति नहीं है अपितु आपति गुरू शिष्य परम्परा विंग  में शाजिसन नियुक्ति पर है जो सही है। इस बात को फिरोज के विद्वान पिता ने भी स्वीकार किया है।