पलायन-पौड़ी में 370 और अल्मोड़ा में 256 गांव पूरी तरह खाली

♦रिपोर्ट – मधू डोभाल

उत्तराखण्ड के एक और दौरे से लौटा हूं, कई जगह विकास देखकर मन प्रसन्न भी है, लेकिन लगातार खाली हो रहे गांवों को देखकर दिल भारी सा होने लगता है। पता चला है कि पौड़ी जिले में ही 370 और अल्मोड़ा में 256 गांव पूरी तरह खाली हो गए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 10 सालों में पहाड़ के हर गांव से औसतन 25-30 परिवार पूरी तरह शहरों की ओर पलायन कर गए। हैरानी की बात ये है कि राज्य गठन से पहले पलायन बेहद कम होता था और अब तेजी से लोग शहरों और कस्बों की ओर जा रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि जो लोग थोड़ा भी संपन्न हो रहे हैं, गांवों को छोड़ने में लगे हैं। इस स्थिति में बदलाव आ सकता है, अगर हम गुजरातियों और राजस्थान के मारवाड़ियों का उदाहरण अपने सामने रख पाएं। हम सबको पता है कि राजस्थान के मारवाड़ की ज़मीन बेहद पथरीली होने के कारण ज़रूरत भर खेती नहीं हो पाती थी, इसीलिए वहां के लोगों ने पलायन किया और कोलकाता, जमशेदपुर, मुंबई जैसी जगहों पर जाकर मेहनत से छोटे छोटे कारोबार शुरू किए। इसी तरह गुजरात के पटेलों ने भी पूरी दुनिया में जा-जाकर कारोबार किया और अपनी अमिट छाप छोड़ दी। भारी कामयाबी हासिल करने के बाद मारवाड़ियां और पटेलों ने कभी भी अपने गांवों और संस्कृति, पहनावा और बोली-भाषा को नहीं छोड़ा और पूरी दुनिया में इन चीजों को बड़े गर्व के साथ अपने साथ रखा. लेकिन मुझे निजी तौर पर लगता है कि हम ज़्यादातर

उत्तराखण्डी जब गांवों से निकलते हैं, तो अपनी बोली, भाषा, पहनावा और खानपान सब कुछ ‘गांव के गधेरों’ में ही छोड़ आते हैं और अपने आप को शहरी दिखाने में गर्व महसूस करते हैं। अगर हम भी गुजरातियों और मारवाड़ियों की तरह अपने गांवों और संस्कृति को गर्व के साथ अपनाए रखें, अपने गांवों को अपना तीर्थ मानें और हर साल कम से कम एक बार वहां जरूर जाएं तो, कोई कारण नहीं कि उत्तराखण्डी संस्कृति पूरे देश और दुनिया में गर्व से अलग पहचान न बना पाए । इसी से पलायन का समाधान भी हो सकता है। कारोबार में कामयाबी हासिल करने वाले उत्तराखण्डियों को अपनी गांव और शहर के लिए भी कुछ न कुछ योगदान देना चाहिए, ताकि जो लोग वहां रह गए हैं, उनको रोजगार मिलता रहे। ज़रूरत है ऐसे ही किसी फॉर्मूले को लोकप्रिय करने की, ताकि हमारी महान संस्कृति हमेशा आगे बढ़ती रहे। जय भारत, जय उत्तराखण्ड.