“मोदी ने बदल दी भारत की छवि”

कुलदीप कठैत

सन 2014 जबसे मोदी सरकार आयी है, हमें विकसित देशों से ऋण मिलना बन्द हो गया या दूसरे शब्दों में अगर कहें तो हमने ऋण लेना लगभग बंद कर दिया है। मैंने एक लंबा शासनकाल यूपीए गवर्नमेंट का देखा है। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह का। ये लोग जब भी अमेरिका, जापान, फ़्रांस या जर्मनी जब भी जाते थे हम लोग इनकी उपलब्धियों का अंदाज़ा इस बात से लगाते थे कि कितना ऋण इनको वहां से मिला ?

हमारे प्रधानमंत्री पूरी यात्रा में हीन भावना से ग्रसित दिखाई देते। हम लोग भले ही इसे मैत्री यात्रा कहें पर ये मित्रता न होकर हमे हीन भावना में धकेलने की साजिश होती थी और बदले में विकसित देशों को मिलता था हमारे अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप का अधिकार। अब यूपीए वालों को कौन समझाए मित्रता बराबर वालों में होती है मालिक और कर्मचारी में नहीं। इस मामले में भारत और पाकिस्तान दोनों एक ही नजरिये से देखे जाते थे। यानि पाकिस्तान भी ऋण पाने के लिए दौड़ लगाता था और भारत भी और इस मामले में भी पाकिस्तान भारत पर भारी पड़ता था। पाकिस्तान को जहां अमेरिका और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से भारी भरकम ऋण मिलता था वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा भी पाकिस्तान को हासिल होती थी। पाकिस्तान को आतंकवाद से लड़ने वाला देश कहकर प्रचारित किया जाता था, उसके लिए लंबे चौड़े फण्ड की व्यवस्था की जाती थी। यानी हमारी विदेश नीति भी पूरी तरह विफल थी।
बेइज्जती का आलम ये था कि जब भी हमारे प्रधानमंत्री अमेरिका यात्रा का प्रोग्राम बनाते तो उससे पहले विदेशमंत्री के साथ एक शिष्ट मंडल अमेरिका जाता जहां उनकी रूटीन तलाशी होती। फिर विदेश मंत्री के साथ अमेरिकी अधिकारी बातचीत करते और दो प्रधानमंत्रियों की मीटिंग की और वांछित ऋण की रुपरेखा तैयार होती। भारत की छवि विदेशों में एक भीख मांगने वाले देश के रूप में प्रचारित हो चुकी थी। मोदी जी का पहला अमेरिकी दौरा शायद किसी प्रधानमंत्री का पहला ऐसा दौरा था जिसमे भारत ने किसी भी प्रकार का ऋण नहीं लिया था। एक अखबार ने गलती से एक कार्टून प्रचारित किया था जिसमे मोदी जी ओबामा के आगे याचक की भूमिका में हैं। दूसरे दिन उस अखबार को वहां के स्थानीय भारत निवासियों और अमेरिकी अधिकारियों से भी इतनी झाड़ मिली कि उस अखबार के मालिक को सार्वजनिक रूप से क्षमा याचना करनी पड़ी।