उत्तराखंड के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों के अधिकांश लोग मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की चार धाम परियोजना भागीरथ प्रयास है जो अधूरे मैं रुक गई?

Most people in the inaccessible hilly areas of Uttarakhand believe that Prime Minister Modi’s Char Dham project is a Bhagiratha effort that has been incomplete.

आलेख : एडवोकेट हरीश पुजारी

मोदी जी का ड्रीम प्रोजेक्ट चार धाम परियोजना खटाई में पड़ गया है। चार धाम यात्रा के साथ-साथ मोदी योजना यह थी कि चीन व नेपाल सीमा तक एक ऐसा मोटर मार्ग बनाया जाए जिससे हमारे सैनिक कुछ ही घण्टों में दिल्ली से चलकर सीमा तक पँहुच जायें व साथ ही साथ भारी हथियार, तोपगाडी, विमान आदि के लिए भी इसी मोटर मार्ग को हेलीपैड के रूप में भी प्रयुक्त किया जाए।

परन्तु 8 सिंतबर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सीमावर्ती क्षेत्र के निवासियों को बहुत ज्यादा झटका लगा है कि अब बनाई जाने वाली रोड की चौड़ाई मात्र 5.5 मीटर ही रहेगी। जबकि सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार के Solicitor General Tushar Mehta ने पुरजोर तर्क रखा था कि उक्त मोटर मार्ग की चौड़ाई कम से कम 7 मीटर होनी चाहिए ताकि यात्रीगण के अलावा वर्तमान चीन-नेपाल द्वारा सीमा पर पैदा संकट का सामना करने के लिए भारतीय सेना, तोपखाने को सुगमता हो।
10.09.2020 आज के टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित लेख के अनुसार एक प्रसिद्ध पर्यावरण विद ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को ऐतिहासिक माना है, और कहा है कि न्यायालय के इस निर्णय से उनकी न्याय पालिका में पुनः आस्था जाग गयी है।।
इससे यह प्रतीत हो रहा है कि अब न्यायालयों को सही न्याय करने का प्रमाण पत्र इनके द्वारा दिया गया है।
खैर……………
परन्तु धरातल में वास्तविकता इसके बिल्कुल उलट है, 5.5 मीटर चौड़ी रोड तो जनरल खण्डूड़ी ने राजमार्ग एवं परिवहन मंत्री रहते हुए ही ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक अपने कार्यकाल में बनवा दी थी और अब 2016 से चारधाम परियोजना का जो कार्य शुरू हुआ उसमें लगभग 90% पहाड़ों की कटिंग इस 7 मीटर मोटर मार्ग के लिए हो चुकी है, और इस कार्य में हजारों अरब रुपया व लाखों का मुआवजा मिल चुका है। वर्तमान में इस योजना के लिए सड़क के दोनों ओर कई भवन तोड़े गए हैं और हजारों नाली खेत की जमीन ठेकेदारों ने काट डाला है।
अब इस नए मापदण्ड से क्या लोगों की जमीन या मकान वापस बनवा कर सरकार देगी?
दिल्ली व देहरादून में बैठे चिंतक व पर्यावरण प्रेमियों को इस सड़क बनने से हिमालय के टूटने का खतरा महसूस हो रहा है, परन्तु हिमालय तो लगभग टूट चुका है “अब का वर्षा जब कृषि सुखाने” वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
हमारी मांग है कि भारत सरकार माननीय न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर कर उक्त निर्णय में संशोधन कर पुनः 7 मीटर चौड़ी सड़क बनाने का आग्रह करे।
चलते-चलते हमारा यह भी कहना है कि जो लोग हिमालय को हरा-भरा रखना चाहते हैं, यहां शेर, चीते, बाघ आदि के लिए अभयारण्य बनवा रहे हैं, नदी-नालों का लगता है इन लोगों को काउफी चिंता है, परन्तु क्या इन संगठनों ने कभी आदमखोर बाघों द्वारा मासूम बच्चों की हत्या जो हिमालय क्षेत्र में रोजाना हो रही है के खिलाफ कोई आवाज उठाई है या कोई कार्य योजना भारत सरकार या प्रदेश सरकार को सौंपी है कि किस प्रकार मासूम बच्चे बाघ के शिकार न बन सके, किस प्रकार महिलाएं बाघ भालू के रोज-रोज के आतंक से बच पायें।
हमारा मानना है कि पहाड़ों में चाहे कश्मीर हो, चाहे हिमालय, उत्तराखंड, असम, मेघालय हो मोटर मार्ग जीवन रेखा(Life Line) है, और विकास का पर्याय है। और आज पहाड़ों के 90% लोग यहां सुगम मोटर मार्ग बनवाने के पक्ष में है।
अतः मेरा माननीय प्रधानमंत्री महोदय, भारत सरकार व प्रदेश सरकार से निवेदन है कि पुनः सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जाए कि यहां बनने वाली चार धाम परियोजना की चौड़ाई 7 मीटर ही रखी जाए।
मेरा लेख बिना बहुगुणा के प्रसंग के कभी पूरा नहीं होता एक उदाहरण प्रस्तुत है–
जब हेमवतीनंदन बहुगुणा ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए वर्ष 1973- 74 में अनुसूचित जाति जनजाति के आरक्षण के साथ-साथ उत्तराखंड के पहाड़ों के छात्र-छात्राओं को मेडिकल कॉलेजों और इंजीनियरिंग कॉलेजों में 5% आरक्षण की व्यवस्था प्रदेश में अलग से की थी तो इस आदेश के विरुद्ध एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में State of UP vs. Pradip Tandon इस आधार पर दाखिल थी कि उत्तराखंड में पहाड़ों में शिक्षा का स्तर भारतवर्ष में सबसे जादा है, यहां I.P.S. – I.A.S. मैं बहुत ज्यादा लड़के बाजी मारते हैं यहां से कई गवर्नर, कई मुख्यमंत्री, कई वैज्ञानिक है ऐसे में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा पहाड़ के लड़कों को मेडिकल, इंजीनियरिंग मैं प्रवेश के लिए 5% का आरक्षण संविधान के विरुद्ध है।
जब इस मामले की 1974 मैं सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही थी तो बहुगुणा ने प्रदेश सरकार के वकील जो सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे थे तो उनको अलग से दिल्ली, उत्तर प्रदेश भवन में बुलावाया और विस्तार से पहाड़ों की भौगोलिक संरचना उन्हें समझाने का प्रयास किया, परंतु वकील महोदय ठीक से बहुगुणा जी की बात समझ नहीं पा रहे थे, इस पर बहुगुणा ने तत्काल उन्हें एक हेलीकॉप्टर उपलब्ध करवाया, और कहा कि आप 7 दिनों के लिए पूरे पहाड़ के एक-एक गांव का, कस्बे का हवाई सर्वे करें ताकि आप समझ सके कि पहाड़ों में लोक कितनी मुसीबतों में हैं।
19.11.1974 को भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश श्रीयुक्त ए.ऐन. रे व दो अन्य न्यायाधीशों ने उत्तर प्रदेश सरकार के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद ऐतिहासिक निर्णय दिया कि ” उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों के लोग आर्थिक सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से अत्यंत पिछड़े हैं, वहां आवागमन के साधन नहीं है, संपर्क मोटर मार्ग नहीं है, वहां स्कूल कॉलेज नहीं है, मेलों लोगों को पैदल चलकर गांव पहुंचना पड़ता है, ऐसे में वहां के छात्रों को दिया जाने वाला आरक्षण संविधान सम्मत है।”
(सन्दर्भ उ.प्र. राज्य बनाम प्रदीप टण्डन सुप्रीम कोर्ट खलिंग 1975(2) पृष्ठ संख्या 761)
भले ही उपरोक्त मसला आरक्षण का था, तुरंत चार धाम परियोजना में भी उत्तराखंड के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करने वाले अधिकांश लोग आज भी मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की चार धाम परियोजना वास्तव में भागीरथ प्रयास थी जो कि अधूरे मैं ही रुक गई है।
अतः पुनः सर्वोच्च न्यायालय की शरण में भारत सरकार, उत्तराखंड सरकार या यहां के निवासियों को पुनर्विचार याचिका के लिए गुहार लगानी चाहिए।।।।