मंत्रमुग्ध हो निहारतेे रहें नंदीकुंड का अद्वितीय सौन्दर्य

विश्व पर्यटन दिवस विशेष – संदीप सिंह गुसांईं

अंतिम और चौथा पड़ाव
नंदीकुंड@16500 feet

फोटो-सोहन परमार
बस मंत्रमुग्ध होकर निहारतेे रहे…नंदीकुंड का अद्वितीय सौन्दर्य

वैतरणी में जब हमने रात्रि विश्राम किया तो प्रकृति ने तड़के सुबह हमारी कडी़  परीक्षा ली 14500 फीट में जब ब्रम्ह मूहूर्त के समय तेज बारिश हो रही थी।खैर कुछ समय बाद मौसम खुला तो हमने चाय के साथ रात की रोटियों को गर्म कर खाया और चलना शुरु कर दिया।वैतरणी में ब्रम्हकमल बडी संख्या में खिले हुए थे।ब्रम्हकलम एक दैवीय पुष्प है जो समुद्र तल से करीब 13000 मीटर से अधिक ऊचाई पर पाया जाता है।पौराणिक मान्यता कि ब्रम्हकमल को नारायण भगवान ने भोलेशंकर की अराधना के लिए पृथ्वी पर भेजा।इसकी खूशबू इतनी तेज होती है कि आप बेहोश भी हो सकते है। और कस्तुरा कमल फेन कमल भी आलौकिक हैं 

वैतरणी से ग्लेशियर के मोरेन यानी पत्थरों पर चलकर आगे बढना था।कहीं रास्ता था तो कहीं बिल्कुल भी पता नही चल रहा था।घडी में करीब सात बजे होंगे जब हमने चलना शुरु किया था।उच्च हिमालयी क्षेत्रों में चलते हुए एक नई ऊर्जा का संचार होता है।मै हमेशा सोचना रहा हूं कि आखिर इतने सुन्दर नजारों को विगत 17 वर्षो में क्यों विकसित नही किया गया।नंदी कुंड ट्रैक भी नंदाराज यात्रा का मुख्य मार्ग जिसमें होमकुंड तक यात्रा होती है उसी तरह है।अभी मुश्किल से तीन सौ मीटर ही चले होंगे कि लक्ष्मण सिंह नेगी अचानक चिल्लाए गुसाईं जी फेनकमल……….अतभुद….गुलाबी और बैगनी जाल के बीच सफेद रेशों में लिफटा एक और दैवीय पुष्प जो ब्रम्हकमल से भी अधिक ऊचाई पर मिलता है।कई दुर्गम ट्रैक मैने अपने जीवन में किए लेकिन फेनकमल के दीदार नही हो पाए।पूरी राजजात यात्रा में फेनकमल और ब्रम्हकमल के दर्शन नही हुए होते भी कैसे भक्तों और सैलानियों ने सभी तोड दिए थे।केदारनाथ से वासुकी ताल जाते हुए भी फेनकमल नही मिला।सतोपंथ की यात्रा में भी फेनकल नही मिला।पहली बार फेनकलम दिखा तो मन और तन रोमांचित हो उठा।तभी लक्ष्मण जी ने बताया कि यहां पर सूर्यकमल भी है जी हां बिल्कुल सूरजमुखी फूल जैसा लेकिन बिल्कुल छोटा और नीलकमल भी दिखाई दिया।भारत में ब्रम्हकमल की कई प्रजातियां पाई जाती है और हम धन्य थे कि हम कई प्रजातियों को अपनी आखों में कैद करते जा रहे थे।वैतरणी से जैसे जैसे आगे बढते जा रहे थे नीचे पूरी घाटी का नजारा हमें स्तब्ध कर देता।पत्थरों पर कदम रखते आगे बढते गए।आप जब भी चढाई पर रहते है तो सांस फूलने लगती है और हम तो करीब समुद्रतल से करीब 15500 फीट की ऊचाई पर पहुच चुके थे।

सुबह जो बर्फबारी हुई थी उससे आस पास की चोटियों में बर्फ की हल्की परत अभी भी दिख रही थी।हवाएं लगातार तेजी से चल रही थी लेकिन इसके बावजूद चढाई में जाने के कारण पसीना आ रहा था।करीब ढाई किमी की चढाई को पूरा करने में काफी समय लग गया।चूंकि चढाई ने थकान बढा दी तो अचानक पैरों ने भी जवाब दे दिया।नंदीकुंड ट्रैक का ये सफर सबसे मुश्किल वक्त था।अभी घियाविनायक जो समुद्रतल से करीब 17500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है तक पहुचना भी एवरेस्ट फतेह के बराबर लग रहा था।अच्छी बात ये है कि लक्ष्मण नेगी और राजेन्द्र रावत लगातार हौंसला बढा रहे।थकान,कमजोरी और बर्फीली हवाओं की पीडा को झेलते हुए हम करीब 9 बजे घियाविनायक पहुचे।जैसे ही यहां पहुचे तभी कोहरे ने हमें चारों ओर से घेर लिया।ना मुझे सोहन दिख रहा था ना लक्ष्मण नेगी।इतना घना कोहरा मैने अपने जीवन में कहीं नही देखा लेकिन मां नंदादेवी की कृपा रही कि जल्द ही कोहरा भी हट गया।यहां से अब आगे का रास्ता ढलान का था।चारों तरफ केवल पत्थर ही पत्थर दिख रहे थे।ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कभी ये पूरा क्षेत्र एक ग्लेशियर रहा होगा और अब केवल उसका मोरेन ही था।ऐसे जगह स्थानीय लोग पत्थरों के चट्टे लगाते है जो आगे का मार्ग बताता है।खैर एक कठिन चढाई पार करने के बाद हमारे कदम तेजी से नंदीकुंड की ओर बढ रहे थे।अब और ज्यादा इंतजार नही हो रहा था।पिछले चार दिनों से हम इसी जादुई और दैवीय कुंड के दर्शन के लिए तो बुग्यालों,जंगलों और नदियों को पार करते जा रहे थे।अभी मुश्किल से केवल एक किमी ही आए होंगे तभी लक्ष्मण जी ने बताया कि ये स्थान धनियाढुंग है।आश्चर्य समुद्रतल से करीब करीब 16500 फीट में बिल्कुल धनिया के आकार की प्रजाति जो इस स्थान के अलावा कहीं और नही दिखाई दी।हमारी रफ्तार और तेज हो गई क्योंकि आसमान में बादलों की चहलकदमी भी तेज होती जा रही थी।जैसे ही नंदीकुंड दिखाई दिया तो नजरें एकटक देखती रही……ऐसा लगा जैसे जन्नत में पहुच गये…..अविश्वसनीय…..उच्च हिमालय में एक दुर्लभ कुंड……..नंदीकुंड के चारों ओर ब्रम्हकमल,फेनकमल,सूर्यकमल और अनेकों जडी बूटियों की खूशबू ने हमें मदहोश कर दिया था।आसमान में बादल उमड घुमड कर रहे थे और उनकी परछाई नंदीकुंड को नया स्वरुप दे रहा थी।
पौराणिक मान्यता है इस कुंड में सती नाग रहता था।एक बार मां नंदा देवी(पार्वती) यहां से गुजर रही थी तो उन्हे यह कुंड बेहद प्रिय लगा।सतीनाग से कुंड लेने के लिए मां पार्वती ने छोटी कन्या का रुप धारण कर लिया।धनियाढुंग में जैसे ही छोटी कन्या ने धनिया तोडा तो उसकी खूशबू सतीनाग को लग गई।सती नाग उस स्थान पर पहुचा और क्रोधित होते हुए नन्ही बालिका को डसने ही वाला था कि बालिका बोल पडी मामा ये जगह मुझे काफी पसन्द है।मामा शब्द सुनकर सती नाग का गुस्सा शांत हुआ और सती नाग ने ये कुंड मां पार्वती के लिए छोड दिया।एक दूसरी किवदंदी है कि नंदीकुंड ही वो स्थान है जहां महाकाली ने इसी स्थान पर रक्तबीज का वध किया था।कुंड के किनारे एक छोटा मंदिर है जहां पर करीब दो दर्जन प्राचीन हथियार रखे हुए है जिसमें तलवारें,खड्ग है।मान्यता है कि ये प्राचीन हथियार उसी देवासुर संग्राम के है।जैसे ही हम नीचे उतर कर मंदिर में दर्शन के लिए पहुचे तब तक लक्ष्मण सिंह नेगी जी पवित्र कुंड में स्नान कर चुके थे और हथियारों की पूजा अर्चना कर रहे थे।नंदीकुंड स्थानीय उर्गम घाटी के गांवों के साथ ही कलगोट,डुमक की अराध्य देवी है और जब बडी जात का आयोजन होता तो इसी स्थान पर छतोलियों के साथ स्थानीय ग्रामीण पहुचते है।लेकिन नंदा राजजात के विपरीत यहां मां नंदा को छोडने के बजाय लाने के लिए जाते है।नंदीकुंड में ब्रम्हकमल को नंदाअष्टमी के बाद ही स्थानीय लोग तोडते है।इसके पीछे पूर्वजों की पर्यावरण संरक्षण का संदेश रहा होगा क्योंकि नंदाअष्टमी के बाद ही ब्रम्हकमल में बीज बनने लगते है।नंदीकुंड केवल रहस्यमय ही नही आध्यात्मिक स्थल भी है।सोहन परमार इस पूरे नजारे को कैमरे में कैद कर रहा था कि अचानक लक्ष्मण जी पर घंटाकर्ण देवता प्रकृत हुए।सभी सदस्यों को उन्होने आशीर्वाद दिया और सफल होने की कामना की।मां नंदा की पूजा अर्चना के बाद कुछ देर वहा आराम किया।नंदीकुंड के चारों ओर घास का मैदान,फूलों की अंतहीन बगिया….कोहरा अचानक आता और चारो ओर अंधेरा कर देता।मन बस यही सोच रहा था कि हिमालय में कई दैवीय स्थल है जहां आने के बाद मन को शांति और ऊर्जा मिलती है।उर्गम घाटी के देवग्राम से करीब 60 किमी का पैदल सफर तय कर नंदीकुंड पहुच कर हमें भी एहसास हो रहा था कि वाकई में ये एक जादुई कुंड है जहां भक्ति के साथ ही शक्ति का भी अहसास मिलता है।अब तेजी से कदम वापस बढाने शुरु किया।वापस आते समय चढाई थी तो मुश्किल होने लगी।करीब 1 बजे घियाविनायक और 3 बजे वैतरणी पहुंचे

।उतरते समय संदीप पंवार के पैर में बहुत तेज दर्द शुरु होने लगा।किसी तरह दर्द से कराहते हुए संदीप भी वैतरणी पहुचा।तीन बजे कोहरा और बर्फीली हवाओं ने दिक्कत पैदा करनी शुरु कर दी।कुलदीप बंगारी ने कहा कि यहां रात नही बिता सकते।मनपाई बुग्याल जाना होगा।अभी तक करीब 10 किमी चल चुके थे।उच्च हिमालय में औसत करीब 10 किमी ही चलना होता है।अब फैसला करना था कि आगे बढना है या नही।संदीप पंवार को पूछा तो उसने हां कहा फिर तीन बजे खाना खाने के बाद हम मनपाई के लिए निकल पडे।कुलदीप बंगारी पोर्टर टीम को लेक आगे निकल पडा।और हम धीरे धीरे वापस मनपाई के लिए चलने लगे।करीब दो घंटे चलने के बाद अंधेरा बढने लगा।मौसम अब साफ हो चुका था और चांदनी रात में बुग्लायों से होकर हम आगे बढते जा रहे थे।रात करीब 8 बजे हम मनपाई बुग्याल पहुचे।और अगले दिन बंशीनारायण से देवग्राम यानी उर्गम घाटी……….नंदीकुंड ट्रैक जिन्दगी भर आंखों और दिल दिमाग में बसा रहेगा।