नारी शिक्षा की प्रणेता-सावित्री बाई फ़ूले


रिपोर्ट–संदीप
नारी शिक्षा की प्रणेता–सावित्री बाई फुले ।
हम शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाते हैं लेकिन पहले महिलाओं को शिक्षा का अधिकार नहीं था । महिला शिक्षा के लिए सर्वप्रथम पहल श्रीमती सावित्री देवी फुले ने ही की थी ।यद्यपि वेदों एवं धर्मग्रन्थों में कुछ विदुषी महिलाओं का वर्णन आता है लेकिन वे राजघरानों एवं कुलीन घरानों से सम्बंधित थी । आम महिलाओं की शिक्षा के लिए सबसे पहले संघर्ष करने वाली सावित्री बाई ही थी जिनके संघर्ष का परिणाम सुखदायी एवं सफल रहा और आज समाज में महिला हर क्षेत्र में पुरुष से कंधा मिलाते हुए कार्य कर रहीं हैं । महाराष्ट्र में उनके जन्मदिन को भी शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है ।

सावित्री बाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र स्थित सतारा के गांव नायगांव में हुआ था. उस समय महिलाओं को पढ़ने की आजादी नहीं थी, लेकिन फुले ने हिम्मत दिखाते हुए अपनी शिक्षा पूरी की. 1848 में उन्होंने पहला महिला स्कूल पुणे में खोला था. इसके बाद उन्होंने कई महिला स्कूल खोले और उन्हें शिक्षित किया.
कहा जाता है कि जब वह स्कूल जाती थीं तो महिला शिक्षा के विरोधी लोग पत्थर मारते थे, उन पर गंदगी फेंक देते थे. महिलाओं का पढ़ना उस समय पाप माना जाता था. सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंचकर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं.
दलित परिवार से संबंध रखने वाली सावित्रीबाई फुले की शादी 9 साल की उम्र में ही ज्योतिबा फुले से हो गई थी. उस समय फूले की कोई शिक्षा नहीं हुई थी. समाज में व्याप्त कुरीतियां और महिलाओं की हालत देख सावित्रीबाई फुले ने दलितों और महिलाओं को सम्मान दिलाने का प्रण लिया. बिना किसी आर्थिक मदद के फुले ने लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोल दिए थे. उस दौर में ऐसा सोच पाना भी आसान नहीं थास लेकिन सावित्रीबाई फुले ने ऐसा करके दिखाया. उन्होंने छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम
किया ।