New guru सच्चे गुरु ही अच्छे गुरु

  • धर्मपाल रावत की कलम से 
    हमारे गुरु जी श्री BS Rawat जी (ग्राम-भरपूर, पट्टी-साबली, ब्लॉक-बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल… जिन्होंने मुझे 1993-1994 (10th में) जनता इंटर कॉलेज- पाली-खाटली में गणित व भौतिक विज्ञान पढ़ाई…
    आज गुरुजी से देहरादून उनके आवास पर लगभग 23 साल बाद मेरी भेंट हुई…थोड़ी बहुत कुछ चर्चा हुई… मेरे इन गुरुजी का मेरे जीवन में विशेष प्रभाव है..  गुरुजी पढ़ाने में(अन्य शिक्षकों की अपेक्षा) बहुत सख़्त मिजाज के थे… आज भी उस समय के लड़के उनकी मार नहीं भूल पाये होंगे., हालाँकि पढ़ाई में मेधावी छात्र और शरीफ होने के कारण मुझे शायद ही कभी गुरुजी की मार या डाँट पड़ी हो…! ऐसा मुझे याद नहीं है।
    मगर गुरुजी के याद कराये कई सूत्र., परिभाषाएं, नियम आदि मुझे आज 23 साल भी अच्छी तरह याद हैं। चाहे वो गणित में गुणनखण्ड करने हों, चक्रव्रद्धि ब्याज निकालना हो., वर्ग/आयत का क्षेत्रफल, परिमाप हो sin©, cos© हो., sin30°= 1/2 हो, tan45°=1, π का मान 22/7(3.14) हो, आदि (कीबोर्ड में square और अन्य चिह्न न होने के कारण बहुत सी चीजें छूट रही हैं)
    या भौतिकी में 6 मूल राशि और उनके मात्रक हों, गति के तीनों सूत्र v=u+at आदि हो., न्यूटन के नियम हों, बल(f)= ma(द्रव्यमान x त्वरण) हो, सदिश/अदिश राशि हो, ऊष्मा, रेखीय/क्षेत्रीय प्रसार आदि गुणांक हो, या आर्कमिडीज का सिद्धांत इत्यादि मुझे आज भी अच्छी तरह याद हैं.. और इतना दावा है कि इन विषयों में मैं बिना पढ़े आज भी कम से कम 50% नम्बर ला सकता हूँ (10th में)
    ये सब गुरुजी की ही कृपा है जिनके इस तरह पढ़ाने के अंदाज से मैं एक ठीक-ठाक छात्र(उस समय) बन पाया… हालांकि बाद में मैं इसको जारी नहीं रख पाया, ये चाहे मेरी लापरवाही रही हो., उचित मार्गदर्शन न रहा हो या आर्थिक स्थिति आदि., रही हो… जो भी हो… मगर आज जो कुछ थोड़ा-बहुत दिमाग चलता है तो इन्हीं गुरुजी की बदौलत चलता है।
     हालाँकि तत्कालीन मेरे अन्य गुरुजनों का भी बहुत सहयोग और कृपा दृष्टि रही मेरे ऊपर (इस पर चर्चा किसी और दिन करुँगा)., मगर इन गुरुजी के कारण मेरी याददाश्त उस समय काफी तीक्ष्ण हुई(अब भी थोड़ी बहुत है.,) लेकिन मुझे अफ़सोस है कि मैं किन्हीं कारणों से अपने समस्त गुरुजनों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया…
    कारण (10th के बाद) मेरी शिक्षा के प्रति अरुचि, संगत, लापरवाही, किस्मत या कुछ और…? (इसी बीच जब मैं 11वीं में था तो मेरे पूज्य पिताजी का भी स्वर्गवास हो गया था., बस तभी से सब चौपट हो गया…)  वरना उस समय के लगभग मेरे सभी सहपाठी और गुरुजनों को भी लगता था कि ये लड़का आगे चलके जरुर कुछ करेगा…! मगर अफ़सोस ऐसा मैं कर नहीं पाया… इसका पूर्ण रूप से मैं खुद को ही दोषी और जिम्मेदार मानता हूँ।
    लेख ज़रा लंबा हो रहा है अतः विराम लेता हूँ.. फिर कभी किसी अन्य गुरूजी से भेंट होगी तो जरुर यहाँ fb में चर्चा करुँगा… फिलहाल मैं अपने समस्त गुरुजनों को नमन करता हूँ और बस इतना ही कहूँगा:-
    गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागु पाय।
    बलिहारि गुरु आपणे गोविन्द दियो बताय।।