बर्बरता नहीं राष्ट्र वादिता ही बचा सकती है दुनियां को

हरीश मैखुरी

कुछ बर्बर विचारधारा के लोगों में देश का कन्सैपट है ही नहीं। एक तरह के लोग “मजहब”को श्रेष्ठ मानते हैं देश को नहीं। और दूसरी विचारधारा के लोग “दुनियां के मजदूरों एक हो का नारा देते हैं” राष्ट्रीय सीमाओं की परवाह नहीं करते। इन दोनों ही विचारधारा के लोग दुनियां पर हथियारों के बल पर विचार थोपने का ईरादा भी पाले बैठे हैं।

दो सौ साल पुरानी कम्युनिस्ट विचार धारा क्रांति के माध्यम से कम्युनिज्म थोपना चाहते हैं, जबकि 1450 साल पुरानी इस्लामिक विचारधारा आईएसआईएस माडल, जन संख्या विस्फोट और जिहाद के माध्यम से इस्लामीकरण थोपना चाहते हैं। लेकिन इन सबसे लाखों वर्ष पहले जहां दुनियां को राम ने, राजा भरत ने, कृष्ण ने शांति के माध्यम से राष्ट्र का विचार दिया था। वैदिक सभ्यता विकसित कर दुनियां को वैज्ञानिक तरीके से प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित कर एक वैज्ञानिक सभ्यता विकसित कर ली थी । जिसमें शास्त्र ही शस्त्र हैं। वही भू भाग भारत राष्ट्र कहलाता है। इस जैसा देश दुनियां में है भी नहीं, हम पहले राष्ट्र हैं जिसने शदियों पहले दुनियां को धर्मांधता नहीं राष्ट्रीयता का विचार दिया।

आज समूची दुनियां राष्ट्रीयता के सिद्धांत पर चलती है। आज राष्ट्रीयतायें दुनियां की सुन्दर फुलवारियों का रूप ले रही हैं, उनकी अपनी व्यवस्थाएं विकसित हो रही हैं। हालांकि कट्टरता के आधार पर कम्युनिस्टपंथ और मुस्लिमपंथ विस्तारवादी हैं। इन दोनों विचारधाराओं में राष्ट्र का तो कन्सैपट ही नहीं है, इसलिए इनमें राष्ट्रीय सोच का प्रश्न ही नहीं उठता। वहीं हथियारों के सौदागर भी दुनियां पर युद्ध थोपना चाहते हैं ताकि उनकी कम्पनियों के हथियार बिकेंगे और वे मालामाल होंगे। परन्तु इसी सोच में उनका अपना विनाश भी तय है जब हथियार खरीदने वाले बचेंगे ही नहीं तो हथियार खरीदेगा कौन? भ्रष्टाचार और लुटेरों के खिलाफ लड़ाई जारी रहे इसमें हम साथ हैं पर राष्ट्रीयता की खिलाफत कदापि नहीं। नेशन फस्ट वो भी पूरी भारतीय संस्कृति के साथ।