पोता लापता दादी धरने पर, सरकार रजाई में

 

गुणानंद जखमोला की कलम से – 

80 वर्षीय दलित बुजुर्ग बंजुरी देवी को न्याय चाहिए

दलितों के मसीहा किधर सोए हो रजाई में? 

गंगी के राकेश की तलाश और न्याय में देर क्यों?
देहरादून में जैसे ही शाम ढलती है हवा बदन को चीर कर हड्डियों पर सीधे धाबा बोल देती है। जब तापमान छह और नौ डिग्री के बीच हो और मसूरी की हवाएं सीधे आ रही हों तो घरों के अंदर दोहरी रजाई में भी ठिठुरन होती है। ऐसी भीषण सर्दी की रातों में एक 80 वर्षीय बुजुर्ग महिला परेड ग्राउंड के धरना स्थल पर बिना टेंट खुले आसमां के नीचे न्याय की गुंहार लगा रही है। उसका पोता राकेश एक पखवाडे़ से लापता है। न जिंदा मिला और न ही मुर्दा।

टिहरी गढ़वाल के गंगी गांव निवासी राकेश के परिजनों का आरोप है कि राकेश ढोल बजाने का काम करता है। गांव में एक सवर्ण की शादी थी और सवर्णों ने राकेश को दारू पिला दी, इसके बाद वह ढोल बजाने लायक नहीं रहा तो वह घर चला आया। आरोप है कि सवर्ण उसे घसीटते और मारते-पीटते घर से ले गये और उस दिन से उसका पता नहीं है। लगभग एक पखवाड़ा बीत चुका है। जिलाधिकारी ने घनसाली के एसडीएम और एसडीएम ने पुलिस को जांच सौंपी है, पहले तो गांव के चारों दलित परिवार डर से गांव से भाग गये थे लेकिन अब पुलिस के दबाव के कारण कुछ लोग गांव लौट गये और कुछ  दादी के साथ देहरादून में धरना दे रहे हैं।

मैं वहां रविवार गया, संभव है कि आज कुछ हुआ हो, यदि नहीं हुआ तो दलितों के मसीहा और प्रशासन को जागना चाहिए। इस तरह का भेदभाव का दबाव समाज हित में नहीं हैं और इस मामले में घनसाली पुलिस की भूमिका की जांच भी होनी चाहिए, जो राकेश को तो तलाश नहीं रहे, दलितों पर समझौते का दबाव बना रहे हैं। (सौजन्य – मोहित डिमरी )