लोक संस्कृति के सुरों की मल्लिका पम्मी नवल

गंगू रमोला, पंडों की पंचकेदार जात्रा, अनुसूया माता जागर, गंगा स्नाण, जगदी जोन, नंदा देवी, देवी देवरों आयों चि, जैसे प्रसिद्ध जागर गाने वाली लोकगायिका पम्मी नवल । सीमांत जनपद चमोली के बंड परगने के नौ गांव बंड पट्टी के गांव गडी(अगथल्ला) निवासी पम्मी नवल पेशे से शिक्षिका भी हैं । इसके साथ ही एक सफल जागर गायिका भी।


उत्तराखण्ड की विख्यात लोक गायिका श्रीमती पम्मी नवल(फोटो में)

गाँवों में देव कार्यों में जागर विधा से पहली बार साक्षात्कार हुआ । जागर का हुनर माता-पिता से विरासत में मिला। छात्र जीवन में सांस्कृतिक गतिविधियों में बढ़ चढकर हिस्सा लेना। बाद के दिनों में मायके ने लोकसंस्कृति की महत्ता बतलाई तो ससुराल में पति ने लोकसंस्कृति को संजोने में हर कदम पर साथ दिया। आज नौकरी के साथ-साथ जागर विधा के जरिये लोकसंस्कृति की अलख जगा रही हैं लोक गायिका पम्मी नवल।


पम्मी नवल को बचपन से ही जागर विधा ने बेहद प्रभावित किया था। जब भी आस पास के गांवो में पांडव नृत्य, बगडवाल, गुरिल भेरों, से लेकर अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता था, तो पम्मी नवल जरुर इन आयोजन को देखती। स्कूल के दिनों में भी गायन का बहुत शौक था। विद्यालय के समस्त सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हमेशा से ही प्रतिभाग किया । १९९० में चमोली के पोखरी विकासखंड के आलिशाल गांव के के० एल० टम्टा से शादी के बाद पति से मिले सहयोग ने पम्मी के जीवन की दिशा और दशा को बदल कर रख दी। अध्यापन के साथ साथ पम्मी ने पारम्पारिक लोकगीतों, जागरों को सहेजना शुरू कर दिया और गायन कार्य भी जारी रखा ।

लोकसंस्कृति के पुरोधा गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी और लोकगायिका रेखा धस्माना को अपना आदर्श मानने वाली पम्मी नवल को लम्बें संघर्ष और मेहनत के बाद २००० में इनकी पहली कैसेट बाडुली सरस्वती कम्पनी के माध्यम से लोगो के बीच आई, जिसको काफी सरहाना मिली। इसके बाद पम्मी ने पीछे मुडकर नहीँ देखा । पम्मी द्वारा गाए गए पहले ही जागर – हुराणी को दिन, तुणाणी निभीगे – ने जबरदस्त धूम मचा दी । इस जागर ने पहाड़ के हर गांव में धूम मचाई। उन दिनों कोई भी आयोजन ऐसा नहीं होता था जिसमे ये जागर नहीं लगता हो। इस जागर ने पम्मी नवल को जागर गायिका के रूप में स्थापित कर दिया। इसके बाद इन्होने गंगू रमोला, पंडों की पंचकेदार जात्रा, अनुसूया माता जागर, गंगा स्नाण, जगदी जोन, नंदा देवी, देवी देवरों आयों चि, जैंसे प्रसिद जागर गाये जिन्हें हर किसी ने पसंद किया। जागर के साथ साथ पम्मी ने परम्परागत खुदेड, झुमेलों, लौरी, बाजूबंद, कृष्ण रासलीला, शिव स्तुति जैसे गीत भी गा चुकी हैं। आने वाले दिनों में पम्मी नवल के भैरव जागर, भुमियाल जागर, बद्रीनाथ जागर, धारी देवी जागर, नरसिंह जागर, ग्वरिल जागर, श्रोताओं को सुनने को मिलेंगे। पम्मी नवल ने जागरों में लोक का हर चरित्र और शब्द को पिरोया है । — जगदी जोन व्हेगी मो, जय बोला जय बोला हो, बसंत पंचमी मा के देवो चढोला जौ-, जागर में बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर सभी देवी देवताओं की सुंदर स्तुतियों को उकेरा गया है, पौड़ी न टिहरी न देहरादून की, मिंछों बांध रौन्तेली चमोली की -, गीत के जरिये चमोली की सुंदरता और यहाँ की सादगी को चरितार्थ किया है। वही –हे घुघूती जा पार डांडीयों प्वोर उडी ज्ये, मेरा मैतियों मा रैबार सुने दये – गीत के जरिये अपने मायके की याद को घुघूती के जरिये प्रलक्षित किया है — ना जा ना जा फूंड फूंड, मनख्यों का बीच मंख्योत बिंग जा —- के जरिये लोगो को अपनी बेटी और बहुओं में कोई अंतर नहीं करने ले लेकर लोगो को अपनी विचारों में भी परिवर्तन लाने और रीति रिवाज को सहेजने का सन्देश दिया है। युगल गीत में – सुणा हे जी, सुणा गयली का बाबा, मिन कौथिग जाणा —— के जरिये कौथिग में जाने की जिद्द, अपने लिए सामन खरीदने और अपने सहेलियों और मैतियों को मिलने की जिद को बेहद ही सुंदर ढंग से उकेरा है। दूसरे युगल गीत—- नीलु बासदी मल्यो— बीर सिंह गांजेली कु गांज, बीर सिंह मेरा मन माया, तेरा मन क्या च — के जरिये प्रेम को दर्शाया है —-, स्वीणु सच ह्वेगी मेरु रत ब्याणी के जरिये —- सुबह सुबह देखे गए सपने को सच होने की मान्यता को उकेरा है, वहीँ लोगो को जंगल बचाने और पेड़ों को लगाने का सन्देश देता हुआ गीत —– हे दीदियो डाल्यु लगा, हे भूल्यो डाल्यु लगा, कुछ न पुण्य कमा, कुछ यन करा जमा,—- को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।
मैंने इनका गाया एक जागर ‘हूरणी’ वाला अपनी चिप पर लोड किया तो उसका बाकायदा अपने विद्यालय में इनके स्वर में गाना चलाया व अपने विद्यार्थियों से इनकी स्टाईल से नृत्य कराया तो लोग देखते ही रह गये।
ऐसी असाधारण उत्तराखण्डी संस्कृति प्रेमिका व गायिका को हमारी सदैव शुभकामनाएं।
उक्त जानकारी Graund 0 पेज पर श्री संजय चौहान जी सेे मिली, (सौजन्य सच्चिदानंद सेमवाल)