रानी लक्ष्मीबाई ने 18 जून 1858 को जब अंतिम बार लड़ा ग्वालियर में अभूतपूर्व युद्ध

✍️प्रस्तुति- हरीश मैखुरी
चमक उठी सन 57 में वह तलवार पुरानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

📯 *’मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’* 📯 महारानी लक्ष्मीबाई (मनुबाई) का जन्म काशी में 19 नवंबर 1835 को हुआ। इनके पिता मोरोपंत व माता भागीरथी बाई थी। सन्‌ 1850 में उनका विवाह राजा गंगाधर राव हुवा। सन 1851 में उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई लेकिन चार माह पश्चात उस बालक का निधन हो गया जिस सदमें से 21 नवंबर 1853 को गंगाधर चल बसे। उनके दत्तक पुत्र बालक दामोदर राव को राजसिंहासन पर बैठाया गया जो लार्ड डलहौजी ने गोद की नीति के बिरुद्ध था और 7 मार्च 1854 को झांसी पर अंगरेजों का अधिकार होगया। 23 मार्च 1858 को झांसी का ऐतिहासिक युद्ध आरंभ हुआ, रानी अकेले ही अपनी पीठ के पीछे दामोदर राव को कसकर घोड़े पर सवार हो, अंगरेजों से युद्ध करती रहीं। बहुत दिन तक युद्ध का क्रम इस प्रकार चलना असंभव था। सरदारों का आग्रह मानकर रानी ने कालपी प्रस्थान किया, परन्तु अंग्रेज सेनापति सर ह्यूरोज अपनी सेना के साथ संपूर्ण शक्ति से रानी का पीछा करता रहा और आखिरकार उसने ग्वालियर का किला घमासान युद्ध करके अपने कब्जे में ले लिया। रानी लक्ष्मीबाई इस युद्ध में भी अपनी कुशलता का परिचय देती रहीं। 18 जून 1858 को ग्वालियर का अंतिम युद्ध हुआ और रानी ने अपनी सेना का कुशल नेतृत्व किया। वह बुरीतरह घायल हो गईं और अंततः उन्होंने वीरगति प्राप्त की। वंदेमातरम👏

केवल तलवार ही नहीं वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई ने बंदूकें भी चलाई उनकी बंदूकें आज भी विक्टोरिया मेमोरियल हॉल, कोलकाता में रखीं हुई हैं 🙏🚩